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UP चुनाव: बाहुबली राजा भैया 29 साल से हैं विधायक, जानें कितनी सीटों पर है प्रभाव

अबकी बार कुंडा सीट पर राजा भैया को क्यों मिल रही है टक्कर?

शिवम चतुर्वेदी
पॉलिटिक्स
Updated:
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Raghuraj Pratap Singh

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उत्तर प्रदेश चुनाव के पांचवें चरण में मतदान होने वाला है. राजा भैया की कुंडा सीट पर भी वोट डाले जाने हैं. वे अपनी जनसत्ता पार्टी से चुनाव में हैं. ऐसे में समझते हैं कि अवध क्षेत्र के प्रतापगढ़ जिले में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया का क्या प्रभाव है.

1993 से राजा भैया जीत रहे हैं चुनाव

राजा भैया का कुंडा में ऐसा प्रभाव है कि वे लगातार यहां से जीतते आए हैं. साल 1993 में राजा भैया ने पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर कुंडा विधानसभा सीट से जीत दर्ज की थी, जिसके बाद यह सिलसिला जारी है. अभी भी राजा भैया कुंडा विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर विधायक हैं.

समय-समय पर राजा भैया ने कई राजनीतिक पार्टियों से हाथ मिलाया, जिसमें भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी शामिल है. दो बार राजा भैया उत्तर प्रदेश की कैबिनेट में मंत्री भी रहे.

मायावती शासन में जाना पड़ा था जेल

एक दौर मायावती का था जिसमे राजा भैया को जेल जाना पड़ा था, लेकिन समय का पहिया बदला. 2012 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीते और अखिलेश की कैबिनेट में जेल मंत्री का पद संभाला. लेकिन जो राजा भैया कभी समाजवादी पार्टी के करीबी हुआ करते थे. वही राजा भैया अब समाजवादी पार्टी से दूर हो चुके हैं.

एसपी ने राजा भैया के करीबी को दिया टिकट

इस बार कुंडा विधानसभा सीट से एसपी ने राजा भैया के करीबी रहे गुलशन यादव को टिकट दिया है. 30 नवंबर 2018 को लखनऊ के रमाबाई मैदान में रैली करके राजा भैया ने अपनी पार्टी का एलान किया था.

राजा भैया ने उस रैली में आरक्षण में प्रमोशन का विरोध किया था और उस दौरान चल रहे एससी एसटी एक्ट को लोकसभा में संशोधित किए जाने का विरोध भी किया था.

राजा भैया की 24 से अधिक सीटों पर प्रभाव

राजा भैया राजनीतिक रूप से किसी पार्टी को कितना फायदा या नुकसान पहुंचा सकते हैं, यह इस बात से समझा जा सकता है की राजा भैया अब तक भले ही कुंडा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते रहे हों, लेकिन उत्तर प्रदेश की करीब 24 से अधिक सीटों पर उनका प्रभाव रहा है.

कुंडा और आसपास के इलाकों में राजा भैया की छवि काफी प्रभावी है. खासकर ठाकुर समाज में. कहा जाता है कि प्रतापगढ़ के आसपास के सभी जिलों में ठाकुर समाज किसे वोट देगा यह तय करने में राजा भैया महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

2019 में राजा भैया के भाई की हुई थी बुरी हार

राजा भैया के चचेरे भाई अक्षय प्रताप सिंह जब 2019 में जनसत्ता पार्टी के टिकट पर प्रतापगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़े तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा. अक्षय प्रताप सिंह को सिर्फ 46,963 वोट ही मिल सके थे. चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार संगम लाल गुप्ता ने 436291 वोटों के साथ जीत दर्ज की थी.

इस चुनाव में प्रतापगढ़ और आसपास के जिलों में जो माहौल दिख रहा है, उसे देखकर शायद एक या दो सीट निकल जाए. बाकी जगहों पर प्रभाव कम है. पहली सीट खुद राजा भैया की कुंडा विधानसभा से निकल सकती है और दूसरी सीट कौशांबी संसदीय क्षेत्र की बाबागंज विधानसभा है. दोनों सीटों पर हमेशा से ही राजा भैया का दबदबा रहा है.

1993 से ही राजा भैया के समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार ही बाबागंज विधानसभा से जीतते आ रहे हैं. इस बार भी राजा भैया ने बाबागंज विधानसभा से वर्तमान निर्दलीय विधायक विनोद कुमार को टिकट दिया है.
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राजा भैया ने 22 सीटों पर उतारे हैं अपने उम्मीदवार

राजा भैया ने अपनी पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक से प्रतापगढ़, प्रयागराज, कौशांबी, उन्नाव, सीतापुर, अमेठी की 22 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.

स्थानीय पत्रकार शिवराम गिरी कहते हैं कि राजा भैया की जनसत्ता पार्टी कुंडा और बाबागंज विधानसभा आसानी से जीत लेगी इसमें कोई दो मत नहीं है. पर कुंडा और बाबागंज विधानसभा के अलावा अन्य सीटों पर जनसत्ता पार्टी का वैसा असर नहीं है. जनसत्ता पार्टी एक नई पार्टी है जिसकी वजह से उन्होंने अपने कम उम्मीदवार इस बार चुनावी मैदान में उतारे हैं.

राजा भैया ने अपने गृह जनपद प्रतापगढ़ की 5 विधानसभा सीटों में से केवल दो पर ही उम्मीदवार उतारे हैं. यह वही 2 सीटें हैं जिनका जिक्र हम पहले कर चुके हैं. कुंडा और बाबागंज. जाहिर है खुद राजा भैया को भी यहां जीतने की उम्मीद नहीं होगी. प्रतापगढ़ की ही एक विधानसभा है रामपुर खास. रामपुर खास विधानसभा का जिक्र करना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि यहां से कांग्रेस जीतती रही है.

रामपुर खास पर कांग्रेस जीतती रही है

सन 1980 में कांग्रेस पार्टी से पहली बार रामपुर खास से प्रमोद तिवारी विधायक चुने गए थे, जिसके बाद कभी भी प्रमोद तिवारी ने हार नहीं हुई. 2014 में प्रमोद तिवारी के राज्यसभा सांसद बन जाने के बाद चुनाव हुए. उनकी बेटी आराधना मिश्रा मोना ने जीत दर्ज की, वह मौजूदा विधायक हैं. इस बार 2022 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से वह अपनी किस्मत आजमा रही हैं.

रामपुर खास राजा भैया के लिए हमेशा से चुनौती वाली सीट रही है. राजा भैया हर बार अपने समर्थित उम्मीदवार को प्रमोद तिवारी के खिलाफ रामपुर खास में उतारते रहे हैं. हर बार हार मिली है. लेकिन आज जब राजा भैया अपनी पार्टी बना चुके हैं तब उन्होंने रामपुर खास से अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है. कहा तो यह भी जा रहा है कि प्रमोद तिवारी और राजा भैया के बीच रंजिश का दौर खत्म हो चुका है और आने वाले समय में शायद प्रमोद तिवारी और राजा भैया एक साथ आ सकते हैं.

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Published: 25 Feb 2022,05:36 PM IST

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