मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019उत्तराखंड में विकास कम CM ज्यादा: 21 साल में सिर्फ 4 CM चुने, फिर 11 कैसे बने?

उत्तराखंड में विकास कम CM ज्यादा: 21 साल में सिर्फ 4 CM चुने, फिर 11 कैसे बने?

Pushkar singh Dhami को BJP ने 6 महीने में बनाया तीसरा सीएमग

मुकेश बौड़ाई
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>Uttarakhand| उत्तराखंड में बदला गया मुख्यमंत्री</p></div>
i

Uttarakhand| उत्तराखंड में बदला गया मुख्यमंत्री

(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

21 साल का राज्य, चार बार चुनाव और 11 मुख्यमंत्री... पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की जब से स्थापना हुई है, तभी से यहां सिर्फ मुख्यमंत्री बदले जा रहे हैं. बीजेपी हो या कांग्रेस, दोनों दलों ने एक परंपरा बना दी है कि 5 साल तक कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं करेगा. अब बीजेपी ने एक कदम आगे बढ़कर राज्य को तीन महीने में ही तीसरा सीएम दे दिया है.

तीन महीने में तीसरे CM पुष्कर सिंह धामी

त्रिवेंद्र सिंह रावत के 4 साल के कार्यकाल के बाद जब तीरथ सिंह को सीएम बनाया गया तो, ये एक बड़ा और चौंकाने वाला फैसला था. सभी को लगा कि 4 साल की एंटी इनकंबेंसी का ठीकरा तीरथ सिंह रावत के सिर फोड़ दिया गया है, इसीलिए उन्हें पार्टी ने कुछ महीनों के लिए नाइट वॉचमैन की तरह भेजा है.

लेकिन बीजेपी नेतृत्व को जल्द समझ आने लगा कि उनका चुनाव गलत था और अगर तीरथ सिंह रावत के चेहरे पर चुनाव लड़ा तो पार्टी को बड़ी हार का भी सामना करना पड़ सकता है. इसीलिए अब चार महीने पूरे होने से पहले तीरथ सिंह रावत की भी छुट्टी कर दी गई. अब पुष्कर सिंह धामी को बीजेपी ने अपना नया मुख्यमंत्री बनाया है, जिनके चेहरे पर पार्टी चुनाव लड़ेगी.

मुख्यमंत्री आखिर क्यों पूरा नहीं कर पाते कार्यकाल?

अब सवाल ये उठता है कि जब उत्तराखंड में बीजेपी और कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ चुनाव जीतकर आते हैं तो उनके मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा क्यों नहीं कर पाते हैं? इसका सीधा जवाब है, दोनों दलों में होने वाली गुटबाजी... हालांकि 2017 के बाद बीजेपी ने जो कुछ किया, उसमें गुटबाजी के साथ-साथ दिल्ली से लिए गए गलत फैसले भी जिम्मेदार हैं. आइए पहले थोड़ा पीछे जाकर देखते हैं कि उत्तराखंड की राजनीति में क्या-क्या हुआ.

कई सालों की लड़ाई और आंदोलन के बाद साल 2000 में उत्तराखंड की स्थापना हुई. उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड नया राज्य बना, जिसके बाद लोगों ने विकास के सपने देखने शुरू कर दिए.

पहली अंतरिम सरकार में बीजेपी के नित्यानंद स्वामी को उत्तराखंड का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया. लेकिन नए राज्य में नेताओं और पार्टियों की नई महत्वकांक्षाएं भी झलकने लगीं. पहले ही साल शुरू हुई गुटबाजी का नतीजा ये रहा कि 2001 अक्टूबर में स्वामी को अपना इस्तीफा सौंपना पड़ा. इसके बाद भगत सिंह कोश्यारी मुख्यमंत्री बने.

बीजेपी-कांग्रेस की अंदरूनी कलह

इसके बाद 2002 में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें बीजेपी को हराकर कांग्रेस ने सरकार बनाई. जिसमें नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने और तिवारी ही ऐसे अकेले सीएम हैं, जिन्होंने 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा किया.

उत्तराखंड की जनता ने हर बार सत्ता परिवर्तन किया है, लेकिन इसके बावजूद सीएम बदलने का सिलसिला जारी रहा. 2007 में फिर बीजेपी सत्ता में आई और 2012 तक तीन मुख्यमंत्री बदल दिए. मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी, रमेश पोखरियाल निशंक और चुनाव से ठीक पहले फिर से भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया गया.

यहां इसका सबसे बड़ा कारण बीजेपी में दो गुटों का होना माना गया. जिसमें एक गुट भगत सिंह कोश्यारी का था और दूसरा खंडूरी धड़ा था. साथ ही इस दौरान मौजूदा शिक्षा मंत्री और पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक पर भी पार्टी के अंदर राजनीति के आरोप लगे थे.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

2012 में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और कांग्रेस ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया. लेकिन उत्तराखंड में आई आपदा और बहुगुणा के कामकाज के तरीकों से उनके अपने ही विधायक नाराज हो गए. विधायक हरीश रावत को सीएम पद पर चाहते थे, जिसके बाद 2014 में हरीश रावत को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बना दिया.

लेकिन एक महत्वकांतक्षी गुट और था, जो नहीं चाहता था कि हरीश रावत सीएम बनें. इस गुट में कद्दावर नेता सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत और सुबोध उनियाल शामिल थे. क्योंकि सभी खुद को मुख्यमंत्री की दौड़ में मान रहे थे. इसके बाद इन नेताओं ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया. कांग्रेस के लिए ये बड़ा नुकसान था, इसीलिए पार्टी को 2017 में सबसे बुरी हार झेलनी पड़ी. जहां कांग्रेस 70 में से सिर्फ 11 सीटों पर सिमटकर रह गई.

दोनों TSR पर बीजेपी की भूल सुधार

अब बात करते हैं मौजूदा कार्यकाल की, यानी 2017 विधानसभा चुनावों के बाद की... 2017 में बीजेपी ने राज्य में बंपर जीत दर्ज की और पार्टी ने तमाम राजनीतिक विश्लेषकों को चौंकाते हुए आरएसएस के करीबी त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बना दिया. इसके बाद से ही पार्टी में सुगबुगाहट तेज हो गई, लेकिन सभी आवाजों को वक्त रहते दबा लिया गया. कांग्रेस से बीजेपी में आए बड़े नेताओं के धड़े को ये फैसला पसंद नहीं आया. लेकिन इस बार केंद्र के इस फैसले से राज्य की जनता भी खुश नहीं दिखी, सीएम के सुस्त और अड़ियल रवैये से जनता में गुस्सा था.

विधायकों और जनता की नाराजगी के बाद पार्टी ने 4 साल बाद अचानक 10 मार्च 2021 को त्रिवेंद्र को हटाकर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी थमा दी. एक ऐसे नेता जिनका राजनीतिक सफर कुछ खास नहीं रहा और विधानसभा चुनाव में टिकट काट दिया गया, उसे मुख्यमंत्री बना देना बीजेपी के लिए भारी पड़ गया. जनता इस फैसले से ही नाराज थी कि, तीरथ सिंह रावत ने आते ही विवादित बयान दे दिए, जिसके बाद सोशल मीडिया पर बीजेपी की खूब किरकिरी हुई. कुंभ में कोरोना विस्फोट और इसे लेकर रावत के फैसलों ने भी केंद्रीय नेतृत्व को बता दिया कि उनका चुनाव सही नहीं था.

अब नाकामियों के चलते एक और मुख्यमंत्री को कुर्सी से उतारना बीजेपी के लिए कतई आसान नहीं था. लेकिन इस बार एक ऐसा विकल्प था, जिससे सीएम भी बाहर और पार्टी को सफाई भी नहीं देनी पड़ी. तीरथ सिंह रावत का दुर्भाग्य रहा कि कोरोना के चलते चुनाव आयोग ने उपचुनावों को स्थगित कर दिया, जिसके चलते पार्टी को उनसे इस्तीफा लेने का सुनहरा मौका मिल गया. संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए रावत की विदाई कर दी गई. दोनों रावत को लेकर लिए गए गलत फैसलों को केंद्रीय नेतृत्व ने भले ही सुधारने की कोशिश की हो, लेकिन लोगों तक जो मैसेज पहुंचना था, वो पहुंच चुका है.

जनता के साथ लगातार खिलवाड़

अब इन 20 सालों में राज्य की जनता ने सिर्फ 4 मुख्यमंत्रियों के नाम पर अपनी मुहर लगाई थी, लेकिन सत्ता में बैठने वाली पार्टियां जीतने के बाद जनता का हर बार मखौल उड़ाती रहीं. बीजेपी और कांग्रेस ने जनभावनाओं को दरकिनार कर हमेशा अपने राजनीतिक हित साधने के लिए अपनी सुविधानुसार मुख्यमंत्री बदले. हालांकि जनता ने हर बार सत्ता परिवर्तन कर उन्हें सबक सिखाने का काम भी किया. अब बीजेपी ने जो चार महीने में तीन मुख्यमंत्री जनता के सामने रखे हैं, उसका हिसाब अगले 6 महीने में जनता जरूर मांगेगी. फिलहाल जो राज्य में माहौल है, उसे देखकर लगता नहीं है कि सिर्फ चेहरा बदल देने से बीजेपी 5 साल की एंटी इनकंबेंसी को कम कर पाएगी.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT