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कुंभ की तरह चारधाम यात्रा पर उत्तराखंड सरकार की जिद,HC ने लगाई रोक

तीरथ सिंह कैबिनेट न चारधाम यात्रा को लोगों के लिए खोलने का फैसला लिया था

Published
भारत
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कोरोना की दूसरी लहर की दस्तक के बावजूद उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कुंभ में सभी को आने का खुला न्योता दिया, जिसका नतीजा उत्तराखंड और पूरे देश ने देखा. लेकिन अब एक बार फिर उत्तराखंड सरकार चारधाम यात्रा (Chardham Yatra) को लेकर उत्साहित नजर आ रही है. कोरोना को नजरअंदाज कर सरकार लोगों को यात्रा में शामिल होने की तैयारी कर रही थी, लेकिन एक बार फिर हाईकोर्ट ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया. हाईकोर्ट ने चारधाम यात्रा पर रोक लगा दी है.

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नैनीताल हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

तीरथ सिंह रावत कैबिनेट ने चारधाम यात्रा को लोगों के लिए खोलने का फैसला किया था. जिसके बाद 1 जुलाई से यात्रा की शुरुआत होने जा रही थी. लेकिन कुंभ की तरह हाईकोर्ट ने एक बार फिर इस मामले में संज्ञान लेते हुए यात्रा पर रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया. हाईकोर्ट ने चारों धामों की लाइव स्ट्रीमिंग के भी आदेश दिए.

इससे पहले 23 जून को हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से अपने फैसले पर विचार करने को कहा था. साथ ही सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि, धार्मिक स्थलों पर बड़ी सभाओं और चारधाम यात्रा को इजाजत देने जैसे फैसलों से कोरोना को एक बार फिर आमंत्रित नहीं किया जाना चाहिए. साथ ही इस दौरान हाईकोर्ट ने साफ कहा कि उत्तराखंड में होने वाली कोरोना मौतों और कुंभ के बीच संबंध से इनकार नहीं किया जा सकता है.

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यानी कुंभ के घातक फैसले के बाद एक बार फिर चारधाम यात्रा को लेकर भी उत्तराखंड सरकार राज्य के लोगों को खतरे में डालने की कोशिश कर रही है. इससे पहले भी तीरथ सिंह रावत की जिद ने उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण को तेजी से बढ़ाने का काम किया था.

इससे पहले भी हाईकोर्ट उत्तराखंड सरकार को कोरोना को लेकर कई बार फटकार लगा चुका है. जब तीरथ सिंह रावत को सीएम की कुर्सी दी गई थी तो, उन्होंने कोरोना की दूसरी लहर के बीच जोश में आकर सबसे पहले यही ऐलान कर दिया था कि बिना किसी प्रतिबंध के लोग कुंभ मेले में शामिल हो सकते हैं, साथ ही रावत ने कहा था कि दुनियाभर से लोग कुंभ में स्नान करने आ सकते हैं. इसके बाद नैनीताल हाईकोर्ट ने बिना कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट के कुंभ में आने पर प्रतिबंध लगा दिया था और सरकार को कोरोना नियमों में ढील देने को लेकर फटकार लगाई थी.

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कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट सिर्फ औपचारिकता

अब सरकार के तर्क की बात करते हैं. सरकार ने कुंभ की ही तरह एक बार फिर तर्क दिया है कि चारधाम यात्रा में कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट के बिना लोग शामिल नहीं हो सकते हैं. लेकिन इस नियम की हकीकत कुछ और ही है. उत्तराखंड में कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह गई है. कुंभ में फर्जी रिपोर्ट घोटाले में भले ही टेस्टिंग कंपनी पर आरोप लगे हों, लेकिन पूरे उत्तराखंड में आने वाले तमाम लोग जो रिपोर्ट लेकर आ रहे हैं, उनमें आधी से ज्यादा रिपोर्ट फर्जी या फिर काफी पुरानी हैं. इन कोरोना रिपोर्ट्स को दोबारा क्रॉस चेक नहीं किया जाता है, कई चेक पोस्ट तो ऐसी हैं, जहां पर दूर से ही रिपोर्ट देखकर लोगों को सीमा में घुसने की इजाजत दी जा रही है.

तो अगर सरकार चारधाम यात्रा के लिए कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट को रामबाण इलाज मान रही है, तो ही उतना ही घातक साबित हो सकता है, जितना कुंभ को माना जा रहा है. यात्रा में शामिल होने वाले लोग भी फर्जी रिपोर्ट का इस्तेमाल कर सकते हैं और अगर इनमें से कोई भी संक्रमित हुआ तो एक बार फिर उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में कोरोना विस्फोट हो सकता है.
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तीरथ सिंह रावत की राजनीतिक मजबूरियां

उत्तराखंड में करीब 8 महीने के लिए सीएम की कुर्सी पर बैठे तीरथ सिंह रावत के सामने कई राजनीतिक मजबूरियां हैं. क्योंकि पिछले 4 साल के कार्यकाल में बीजेपी सरकार जनता तक अपने काम पहुंचाने में नाकाम रही, लोगों की सरकार के खिलाफ जबरदस्त नाराजगी है तो ऐसे में कुंभ और चारधाम यात्रा जैसे धार्मिक आयोजनों से सरकार लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है. क्योंकि अगले 6 महीने बाद विधानसभा चुनाव सामने होंगे, ऐसे में सरकार के सामने ज्यादा कुछ करने के लिए वक्त नहीं है.

हालांकि अगर कुंभ को उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो इस फैसले से सरकार को फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ है. क्योंकि भले ही सरकार बार-बार ये तर्क दे रही हो कि कुंभ ने कोरोना फैलाने का काम नहीं किया, लेकिन हाईकोर्ट से लेकर तमाम लोगों ने माना कि कुंभ और कोरोना से होने वाली मौतों का संबंध था.

इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी की खुद कुंभ को खत्म करने को लेकर पहल ने ये बता दिया कि तीरथ सिंह रावत सरकार का फैसला काफी घातक था और इसे लेकर बीजेपी सरकार की छवि धूमिल हुई. अब 7 जुलाई तक फिलहाल चारधाम यात्रा पर रोक लगाई गई है, इसके बाद देखना होगा कि उत्तराखंड सरकार इसे लेकर क्या फैसला लेती है.

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