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उत्तराखंड को अलग राज्य बने 17 साल हो चुके हैं, 3 विधानसभा चुनाव देख चुका ये पहाड़ी राज्य 5 साल पर सरकार तो बदल देता है लेकिन वोटरों के पास विकल्प के तौर पर बीजेपी और कांग्रेस है.
उत्तराखंड की राजनीति में भूचाल सा आया हुआ है, भारी तादाद में कांग्रेसी नेताओं ने बगावत की और बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी ने 14 बागियों को इस विधानसभा चुनाव में टिकट भी दे दिया है. राज्य कांग्रेस की अदरूनी हालत भी ठीक नहीं है. कार्यकर्ताओं के एक बड़े तबके ने पाला बदल लिया है.
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राज्य के वोटरों को इस बात का इल्म है कि प्रदेश के मुद्दों के अलावा दागियों और बागियों को भी चुनावी मुद्दा बनाने की कवायद जारी है. जाहिर है वोटरों की नजर भी इस मुद्दे पर रहेगी लेकिन ये बात भी गौर करने वाली है कि दल-बदलू राजनीति इस पहाड़ी राज्य के लिए नया नहीं है. गठन के बाद से ही चुनावों से पहले भारी पैमाने पर बीजेपी और कांग्रेस में बागियों का आना- जाना लगा रहता है.
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उत्तराखंड की राजनीति को समझने के लिए पहाड़ी और मैदानी इलाकों का समीकरण समझना जरूरी है. राज्य गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में बंटा है. 2017 विधानसभा चुनाव के मद्देनजर गढ़वाल क्षेत्र में बीजेपी का पलड़ा भारी दिख रहा है अगर निर्दलीय खेल न बिगाड़ें तो, वहीं कुमाऊं इलाकों में कांग्रेस की पकड़ मजबूत है.
कोटद्वार से हरक सिंह रावत बीजेपी उम्मीदवार हैं. इलाके के राजपूत वोटरों को टारगेट करने के लिए पूर्व कांग्रेसी हरक सिंह रावत को पार्टी ने कोटद्वार सीट तो दे दी लेकिन मौजूदा विधायक और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सुरेंदर सिंह नेगी की क्षेत्र पर जबरदस्त पकड़ है. 2012 विधानसभा चुनाव में सीएम बीसी खंडूरी को नेगी ने ही शिकस्त दी थी.
चौबट्टाखल में सियासी पारा गर्म है क्योंकि पार्टी के बड़े नेता और पूर्व सांसद सतपाल महराज मैदान में हैं. उनके खिलाफ कांग्रेस के राजपाल सिंह बिष्ट हैं लेकिन तीरथ अगर सतपाल महाराज के समर्थन में आते हैं तो बीजेपी का पलड़ा भारी हो सकता है.
वहीं यमकेश्वर से बीसी खंडूरी की बेटी रितु खंडूरी बीजेपी उम्मीदवार हैं.
कुमाऊं क्षेत्र में कांग्रेस की लहर इसलिए बताई जा रही है कि इसी इलाके के अल्मोड़ा से मौजूदा सीएम हरीश रावत आते हैं. कहा जा रहा है कि 70 साल के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता रावत के पक्ष में इमोशनल फैक्टर काम कर सकता है.
मैदानी इलाकों में हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर के नतीजे निर्णायक साबित हो सकते हैं. यहां जिसे भी ज्यादा सीटें मिलेंगे वही पार्टी बहुमत के आसपास पहुंचेगी. हरिद्वार में 11 विधानसभा सीटें हैं और ऊधमसिंह नगर में 10.
राज्य के बड़े चुनावी मुद्दे
राज्य की जनता लोकल मुद्दों पर वोट करती है, पलायन और विकास उनकी दुखती रग है लेकिन अफसोस उत्तराखंड के चुनावी दंगल में किसी भी क्षेत्रीय या नेशनल पार्टी के पास इन दो मुद्दों पर ठोस प्लान नहीं है. भ्रष्टाचार और सड़क की बातें हो रही हैं लेकिन देवभूमि को तो रोजगार, शिक्षा, कृषि की नई तकनीक की दरकार है.
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15 फरवरी को राज्य में मतदान है, चुनाव प्रचार थम चुका है. 70 विधानसभा सीटों वाला ये पहाड़ी राज्य अपने नए सीएम की ताजपोशी के लिए तैयार हो रहा है. दोनों बड़ी पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस का समीकरण अगर बिगड़ा तो बसपा और निर्दलीय उम्मीदवारों के सहारे सरकार बनेगी.
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