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उत्तराखंड (Uttarakhand) के रूड़की में बुधवार 27 अप्रैल को एक संभावित सांप्रदायिक झगड़े को भड़कने से रोक दिया गया. हरिद्वार जिला प्रशासन ने हिंदुत्व संगठनों द्वारा दादा जलालपुर गांव में बुलाई गई महापंचायत करने की अनुमति नहीं दी. ये वही गांव है, जहां इस महीने की शुरुआत में हनुमान जयंती के जुलूस के दौरान हिंसा हुई थी. महापंचायत से पहले जिला प्रशासन ने धारा 144 लगा दी, चारों तरफ बड़ी संख्या में पुलिस की तैनाती कर दी गई और इसके आयोजकों आनंद स्वरूप महाराज और सागर सिंधुराज को सुरक्षात्मक नजरबंदी में रख लिया गया.
प्रशासन की ये तेजी मंगलवार को उत्तराखंड के मुख्य सचिव को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के उस साफ निर्देश की वजह से थी जिसमें कहा गया था कि वो वादा करें कि कोई अप्रिय स्थिति पैदा नहीं होगी और कोई अस्वीकार्य बयान नहीं दिए जाएंगे.
इस पूरे एपिसोड में पत्रकार से राजनीतिज्ञ बने उमेश कुमार की अहम भूमिका रही, जो हरिद्वार के खानपुर से निर्दलीय विधायक हैं. दादा जलालपुर गांव उमेश कुमार की विधान सभा सीट के तहत आता है.
उमेश कुमार सक्रिय रूप से रूड़की में सांप्रदायिक वातावरण को नुकसान पहुंचाने वाले प्रयासों के खिलाफ बोलते रहे हैं और लगातार ऐसे मामलों के खिलाफ पुलिस को बुलाते रहे हैं जिससे वो ऐसे किसी भी मामले को भड़कने न दे और तुरंत सख्त कदम उठा सके.
26 अप्रैल को तय हिंदू महापंचायत से ठीक एक दिन पहले उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा, जाति और धर्म को लेकर मुझे लेक्चर न दें. मैं दंगे नहीं होने दूंगा. ऐसी राजनीति पर धिक्कार है. जो भी दोषी होगा, चाहे वो जिस भी समुदाय से हो, उसे जेल भेजा जाना चाहिए. कुछ इलाकों में धारा 144 लगे.
इसमें दिलचस्प ये है कि कुमार ने इस पोस्ट पर कुछ स्थानीय लोगों के कमेंट्स का भी जवाब दिया. इनमें से कई कमेंट्स में उन्होंने उन अफवाहों का खंडन किया जिसमें कहा गया था कि जो लोग हिंसा में शामिल हैं, उन्हें छोड़ दिया जाएगा.
सांप्रदायिक संघर्ष भड़काने के खिलाफ उमेश कुमार ने ऐसे कई और पोस्ट किए हैं.
25 अप्रैल को उन्होंने लिखा, मेरी सलाह में उत्तराखंड सरकार को दंगे भड़काने की साजिश को नाकाम करने के लिए कुछ क्षेत्रों में धारा 144 लगा देनी चाहिए.
27 अप्रैल को उन्होंने सरकार से अपील की थी कि शोभा यात्रा और ईद की नमाजों पर ड्रोन से निगरानी रखें और अगर किसी भी समुदाय का कोई व्यक्ति हिंसा भड़काने की कोशिश करता है तो उसे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत आरोपी बनाकर गिरफ्तार करें.
23 अप्रैल कुमार ने हरिद्वार जिले के दूसरे गैर बीजेपी विधायकों के साथ मिलकर उत्तराखंड के डीजीपी से मुलाकात की और उन्हें एक ज्ञापन सौंपा जिसमें पुलिस से ये अपील की गई थी कि वह अपने दृष्टिकोण में निष्पक्ष रहे और शांति भंग करने की किसी भी कोशिश के खिलाफ सख्त कदम उठाए.
इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वालों में कांग्रेस की विधायक ममता राकेश, फुरक़ान अहमद, अनुपमा रावत, रवि बहादुर और वीरेंद्र कुमार शामिल थे. वहीं बीएसपी से विधायक सरवत क़रीम अंसारी और मोहम्मद शहज़ाद ने भी इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए.
इस ज्ञापन और हिंसा के खिलाफ कुमार के कमेंट्स के बाद कुछ दलों ने उन पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाया.
कुछ स्थानीय लोगों ने सोशल मीडिया पर उमेश कुमार पर ये आरोप भी लगाए कि उन्होंने हिंदुओं से वोट लिए, लेकिन अब मुसलमानों को बढ़ावा दे रहे हैं.
कुमार ने अपने फेसबुक अकाउंट के जरिए ऐसे कुछ आरोपों का जवाब भी दिया. 27 अप्रैल को उन्होंने अपनी एक तस्वीर लगाई जिसमें वो एक गाय को खिला रहे थे. इसका कैप्शन था—मुझे अपनी श्रद्धा और अपने कर्तव्यों को लेकर किसी से लेक्चर नहीं चाहिए. मेरे लिए मानवीयता और धर्म दोनों महत्वपूर्ण हैं. दूसरे लोगों के लिए हो सकता कि उनका धर्म सबसे ऊपर हो. हर किसी को अपने धर्म का अनुसरण करने की आज़ादी होनी चाहिए.
जब प्रशासन ने महापंचायत के लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया तब कुमार ने कहा, कहां हैं वो लोग जो मुझे हिंदू विरोधी कह रहे थे? क्या अब बीजेपी की सरकार भी हिंदू विरोधी है क्योंकि, उसने महापंचायत के लिए इजाजत देने से मना कर दिया है?
28 अप्रैल को उमेश कुमार ने एक वीडियो पोस्ट किया. इसमें उन्होंने कहा, कुत्ते के काटने, सांप के काटने और जहरीले भोजन का इलाज है. लेकिन अगर कोई आपके दिमाग में जहर भर दे, तो इसका कोई इलाज नहीं है.
हालांकि उमेश कुमार ने 27 अप्रैल को तनाव बढ़ने से रोकने में सकारात्मक भूमिका निभाई, लेकिन ये साफ नहीं है कि उन्होंने इसी महीने की शुरुआत में हुई हिंसा से प्रभावित या कथित तौर पर विस्थापित लोगों की मदद की या नहीं.
उमेश कुमार उत्तराखंड के एक जाने माने पत्रकार और समचार प्लस 24x7 के एडिटर इन चीफ हैं. राज्य में हुए कई बड़े राजनीतिक स्टिंग्स के पीछे वो रहे हैं. इन स्टिंग्स ने हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के पतन और बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को हटाने में बड़ी भूमिका निभाई है.
हालांकि कुमार ने कहा है कि मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ उनके अच्छे संबंध हैं. यहां तक कि उन्होंने धामी के लिए खानपुर सीट छोड़ने का भी ऑफर दिया था, जब धामी अपनी सीट हारने के बाद भी दूसरी बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने.
कुमार के बारे में ये भी कहा जाता है कि वो वरिष्ठ बीजेपी नेता अनिल बलूनी के और यहां तक कि कई केंद्रीय और राज्य स्तरीय कांग्रेस नेताओं के भी करीबी हैं. वो बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के आलोचक भी रहे हैं.
इस महीने की शुरुआत में उन्होंने उत्तराखंड जनता पार्टी का गठन किया था जिसका मुख्य मुद्दा था, क्लीन गर्वनेंस. हालांकि उनके चुनाव को कोर्ट में चुनौती दी गई है क्योंकि, कथित तौर पर ऐसा कहा गया कि नॉमिनेशन पेपर भरते समय उन्होंने अपने खिलाफ आपराधरिक मामलों की जानकारी नहीं दी थी. सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर मई की शुरुआत में फैसला सुना सकती है.
कुमार कुछ मौकों पर सांप्रदायिकता को लेकर बोल चुके हैं. बीजेपी के समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर कुमार ने कहा, लोग नौकरी, हेल्थकेयर और शिक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वो समान नागरिक संहिता के बारे में कुछ भी कैसे जान सकते हैं?
वह खुले तौर पर क्रिकेटर मोहम्मद शमी के समर्थन में भी आ चुके हैं, जब साल 2021 में शमी को सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा था. दिलचस्प है कि कुछ महीने बाद शमी ने Dhandera में उमेश कुमार के समर्थन में रोड शो भी किया था.
हरिद्वार जिले में खास करके रूड़की और इससे सटे क्षेत्रों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के प्रयास, नए नहीं हैं. पिछले कुछ सालों में यहां मुसलमानों द्वारा डेमोग्राफिक टेकओवर का आरोप लगाकर उग्र हिंदुत्व अभियान चलाए गए हैं. ये और ज्यादा तेज हो गया जब यति नरसिंहानंद को जूना अखाड़ा का महामंडलेश्वर नियुक्त किया गया. इससे हरिद्वार जिले में उनका प्रभाव बढ़ गया.
पिछले साल हरिद्वार में धर्म संसद के दौरान सिंधुराज ने हिंदुओं से खुद को हथियारों के साथ तैयार करने का आह्वान किया और कहा कि मुसलमानों को उसी तरह मार देना चाहिए और यहां से भगा देना चाहिए, जैसा म्यांमार में हुआ.
हालांकि उन्हें तब सिटिंग एमएलए प्रणव सिंह चैंपियन की वजह से टिकट देने से मना कर दिया गया. प्रणव सिंह कांग्रेस पार्टी से बीजेपी में आए थे. सिंधुराज और कई दूसरे लोगों ने प्रणव सिंह के खिलाफ ये कोशिश की थी कि उन्हें टिकट न मिले, जिन्हें लेकर पहले से ही कई तरह के विवाद थे.
हालांकि चैंपियन को टिकट नहीं मिला लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी देवयानी सिंह को टिकट दिलवा दिया.
इस बीच उमेश कुमार चुनावों में वाइल्ड कार्ड की तरह उभरे और उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (BSP) के प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ बहुत कम अंतर से जीत हासिल की. दूसरी तरफ चैंपियन का किला ढह गया और देवयानी सिंह तीसरे नंबर पर रहीं.
हालांकि जहां प्रणव सिंह चैंपियन हार के बाद अपने घावों को सहला रहे हैं और उमेश कुमार चुनाव को लेकर कानूनी चुनौती का सामना कर रहे हैं, इस बीच सिंधुराज और बीजेपी में दूसरे गुट एक बार फिर इस क्षेत्र में खुद को साबित करने में लगे हैं.
इनमें से कई इस उम्मीद में हैं कि उमेश कुमार का चुनाव रद्द हो जाएगा और फिर नए सिरे से चुनाव होंगे. इसे लेकर आकलन ये है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को देखते हुए उमेश कुमार या बीएसपी या कांग्रेस के किसी उम्मीदवार के लिए ये आसान नहीं होगा कि इस साल दोबारा चुनाव होने पर वो जीत स
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