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यह चौंकाने वाली बात है कि एक ऐसी पार्टी जो किसी भी चीज से सहमत न होने पर सड़कों पर उतरने के लिए जानी जाती है, उस पार्टी ने ममता बनर्जी के सबसे भरोसेमंद करीबियों में से एक के लिए ऐसा नहीं किया.
प्रवर्तन निदेशालय यानी ED (ईडी) द्वारा पश्चिम बंगाल के मंत्री पार्थ चटर्जी के घर पर छापा मारा गया था. फिर 26 घंटे की तलाशी, जब्ती और मंत्री की गिरफ्तारी हुई. लेकिन छापेमारी और गिरफ्तारी के बाद से टीएमसी TMC का एक भी कार्यकर्ता सड़कों पर नहीं उतरा.
23 जुलाई को ईडी ने चटर्जी को सरकारी स्कूलों में शिक्षकों, क्लर्कों और कर्मचारियों की भर्ती में कथित अनियमितता के मामले में गिरफ्तार किया था. पार्थ की गिरफ्तारी उनकी 'करीबी सहयोगी' अर्पिता मुखर्जी के आवास से 21 करोड़ रुपये नकद बरामद होने के बाद हुई थी.
TMC सुप्रीमो ममता बनर्जी ने पार्थ चटर्जी पर पार्टी के रुख को दोहराते हुए कहा कि उस पैसे से न तो उनका न ही उनकी पार्टी का कोई संबंध है. उनकी पार्टी में कोई भी चाहे मंत्री हो या विधायक अगर कोई चोरी में दोषी पाया जाता है, तो उसे सजा दी जाएगी.
ममता के इस बयान से पहले टीएमसी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी जहां पार्टी ने मुखर्जी और उनके आवास पर मिले पैसों से सीधे तौर पर खुद को दूर कर लिया था.
प्रेस कॉन्फ्रेंस कुणाल घोष, फिरहाद हकीम, अरूप विश्वास और चंद्रिमा भट्टाचार्य द्वारा आयोजित की गई थी. घोष ने स्पष्ट तौर पर कहा कि अगर अदालतें उन्हें दोषी पाती हैं तो चटर्जी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने समय सीमा के अंदर जांच करने का अनुरोध भी किया. समय सीमा के अंदर जांच का अनुरोध करना एक ऐसी बात है जिसे आपने अक्सर किसी पार्टी को कहते हुए नहीं सुना होगा.
इसलिए पिछले मामलों के विपरीत पार्टी ने इस मामले में बहुत ही कूटनीतिक (जब तक दोषे सिद्ध न हो जाए तब तक निर्दोष बने रहने का) रुख अपनाया है. जबकि पहले इस तरह के मामलों पर पार्टी जोरदार विरोध करती थी.
मई 2021 में सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (CBI) ने जब नारद रिश्वत मामले में फिरहाद हकीम, मदन मित्रा, सुब्रत मुखर्जी और शोवन चटर्जी को गिरफ्तार किया था, तब कई टीएमसी कार्यकर्ताओं ने कोलकाता के निजाम पैलेस स्थित सीबीआई के मुख्यालय और बीजेपी प्रदेश मुख्यालय का घेराव किया था.
इस मामले में सीएम ममता बनर्जी ने CBI ऑफिस में धावा बोलते हुए लगभग 6 घंटे तक धरना दिया था. उन्होंने चार नेताओं की बिना शर्त रिहाई या उन्हें (ममता बनर्जी) भी गिरफ्तार करने की मांग की थी.
2019 में शारदा चिट-फंड मामले के संबंध में जब सीबीआई ने कोलकाता के तत्कालीन पुलिस आयुक्त और बनर्जी के चहेते माने जाने वाले राजीव कुमार को गिरफ्तार करने की कोशिश की थी तब सीएम ममता बनर्जी कोलकाता के एस्प्लेनेड में दो दिवसीय धरने पर बैठी थीं.
2017 में रोज-वैली चिटफंड मामले में जब सांसद सुदीप बंधोपाध्याय को गिरफ्तार किया गया था तब ममता बनर्जी ने बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर हमला बोला था.
वहीं 2018 में सारदा मामले के संबंध में जब CBI ने मदन मित्रा को गिरफ्तार किया था तब पार्थ चटर्जी सहित कई टीएमसी कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया था.
इसमें कोई संदेह नहीं कि अभी भी पार्थ चटर्जी TMC के सबसे महत्वपूर्ण नेताओं में से एक हैं. वह पार्टी के महासचिव, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और प्रशासनिक मामलों के लिए बनर्जी के जाने-माने व्यक्तियों में से एक हैं. पार्टी के शुरुआती दिनों से ही वह बनर्जी के वफादार सिपाही रहे हैं और अपने सहयोगियों की गिरफ्तारी का विरोध करने में हरदम सबसे आगे रहे हैं.
और यह पार्टी में उनका कद ही है जो खामोशी को और भी ज्यादा चौंकाने वाला बनाता है.
पार्थ चटर्जी से कथित संबंधों की चर्चा के बीच अर्पिता मुखर्जी के आवास से बड़ी मात्रा में नकदी जब्त की गई है. इसे ही पार्टी की कूटनीतिक स्थिति के सबसे संभावित कारण के तौर पर देखा जा है. टीएमसी नेताओं से जुड़े लगभग हर मामले में उन्हें कथित घोटाले से जोड़ने के प्रत्यक्ष प्रमाण या मनी लिंकिंग के निशान मिले हैं. इस बार, बात कमरे से बाहर आ गई.
TMC इस समय पेचीदा स्थिति में है, क्योंकि अगर वे चटर्जी का पूरी तरह से समर्थन करती है तो पार्टी का स्टैंड उन हजारों एसएससी (SSC) उम्मीदवारों को और ज्यादा क्रोधित करने (भड़काने) वाला हो सकता है जो शायद खुद के साथ 'विश्वासघात' महसूस कर रहे होंगे. ये उम्मीदवार लगभग 500 दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. राज्य के लगभग 70 फीसदी युवा SSC भर्ती परीक्षाओं में शामिल होते हैं. यही युवा पार्टी के लिए एक अहम वोटर बेस यानी कि मतदाता आधार हैं.
वहीं दूसरी ओर, चटर्जी और परेश अधिकारी (इसी मामले में आरोपी एक अन्य नेता) को निष्कासित करने की मांग के बावजूद TMC इन्हें बाहर नहीं कर सकती. यदि नेताओं को निष्कासित किया जाता है तो पार्टी के सामने दो बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.
पहला, पिछले कुछ समय से केंद्रीय एजेंसियां विपक्षी नेताओं का पीछा कर रही हैं. TMC भी इनमें से एक . टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव को समय-समय पर पूछताछ के लिए बुलाया जाता है. यदि जांच पूरी होने से पहले पार्टी द्वारा चटर्जी को निष्कासित कर दिया जाता है, तो टीएमसी नेताओं के पीछे पड़ने के लिए केंद्रीय एजेंसियों को और ज्यादा प्रोत्साहन मिलेगा.
हालांकि, कोई यह तर्क दे सकता है कि पार्टी या कम से कम ममता बनर्जी ने अपने कुछ नेताओं की "खामियों" को स्वीकार किया है. चटर्जी के घर पर छापेमारी से एक दिन पहले शहीद दिवस की रैली में ममता बनर्जी ने कहा था कि :
पार्टी के दो शीर्ष नेताओं द्वारा गलती करने वालों को दंडित करने और पार्टी में भ्रष्ट नेताओं के लिए कोई जगह न होने की बात कहने के एक दिन बाद यदि टीएमसी अपने वादे से पीछे हट जाती है तो यह विडंबना ही होगी.
लंबे समय से यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि चटर्जी और उत्तराधिकारी अभिषेक बनर्जी के बीच (खास तौर पर बनर्जी की 'एक व्यक्ति एक पद' की नीति को लेकर) मतभेद रहा है. बनर्जी ने राजनीति में आने के बाद से चटर्जी को एक संरक्षक के तौर पर देखा है, रिपोर्ट्स के अनुसार बनर्जी कथित तौर पर खुद को चटर्जी से अलग करना चाहती हैं और उनकी कार्यशैली से सहमत नहीं है.
चटर्जी का दावा है कि गिरफ्तार होने के बाद उन्होंने चार बार सीएम ममता बनर्जी से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. यहां तक कि उनके गिरफ्तारी मेमो में भी बनर्जी का नाम और नंबर है.
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