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बंगाल और असम चुनाव- कई चरणों के चुनाव का किसी को फायदा हो सकता है?

जहां बीजेपी की मजबूत पकड़ है, वहां पहले चरणों में होगी वोटिंग 

इशाद्रिता लाहिड़ी & आदित्य मेनन
पॉलिटिक्स
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सियासी घमासान के बीच पश्चिम बंगाल में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है. असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में भी इसी साल चुनाव होने हैं, इन पाचों राज्यों के चुनाव कितने चरण में होंगे और कब होंगे, ये पूरी जानकारी चुनाव आयोग ने दी.

लेकिन अब चुनाव की तारीखों को लेकर नया विवाद शुरू हो चुका है. तीन राज्यों के चुनाव एक ही चरण में होंगे, लेकिन पश्चिम बंगाल में 8 चरणों और असम में तीन चरणों में विधानसभा चुनाव होंगे.

पश्चिम बंगाल में 8 चरणों में चुनाव कराने को लेकर खुद सीएम ममता बनर्जी ने सवाल उठा दिए हैं. ममता ने कहा कि चुनाव आयोग ने तारीखों का ये ऐलान पीएम मोदी और अमित शाह के इशारों पर किया है. साथ ही उन्होंने पूछा कि इतने चरणों में चुनाव का फायदा किसे होगा? आइए जानते हैं कि पश्चिम बंगाल में 8 चरणों में होने वाले चुनावों का पार्टियों पर क्या और किस तरह से असर पड़ सकता है.

बंगाल- अन्य राज्यों में चुनावों के बाद होगी 70 फीसदी वोटिंग

पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी पार्टी टीएमसी तारीखों के ऐलान के बाद से ही लगातार बीजेपी पर हमलावर है. कहा जा रहा है कि कुछ लोगों को खास फायदा पहुंचाने के लिए कई चरणों में चुनाव कराए जा रहे हैं. पश्चिम बंगाल की सीएम ममता ने इसे लेकर कहा,

“इसे लेकर एक सवाल ये भी उठता है कि बिहार में 240 विधानसभा सीटें हैं, यहां 3 चरणों में चुनाव हुए. लेकिन असम जैसे छोटे राज्य में भी तीन चरणों में चुनाव होना है. वहीं तमिलनाडु में 234 सीटें हैं, यहां एक ही चरण में चुनाव है. केरल में भी एक चरण में ही चुनाव होगा. लेकिन पश्चिम बंगाल जहां 294 सीटें हैं, यहां 8 अलग-अलग चरणों में चुनाव क्यों हो रहा है? इसके जरिए किसे फायदा पहुंचाया जा रहा है?”

1 ही जिले में तीन चरणों में होगा मतदान

पश्चिम बंगाल के 23 जिलों में से 10 जिलों में अलग-अलग चरणों में मतदान हो रहा है. लेकिन इससे भी दिलचस्प बात ये है कि एक जिले साउथ 24 परगना में तीन चरणों में वोट डाले जाएंगे. यहां से कुल 31 विधानसभा सीटें आती हैं.

चुनाव के पहले दो चरण, 27 मार्च और 1 अप्रैल को होने वाले चुनाव, जंगमहल क्षेत्र से शुरू होंगे. इसके अलावा झारग्राम, बांकुरा, पुरुलिया, पूर्व, मिदनापुर और पश्चिम बन्नापुर जिलों में वोटिंग होगी. खास बात ये है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने इन जिलों में बड़ी जीत हासिल की थी. इन जिलों के 7 संसदीय क्षेत्रों में से, बीजेपी ने पांच सीटें जीती थीं.

पहले चरण में जिन 30 विधानसभा सीटों पर वोटिंग होने जा रही है, उनमें से लोकसभा चुनावों में 16 पर बीजेपी की बढ़त थी, वहीं टीएमसी को 10 सीटों पर बढ़त हासिल हुई थी. लेकिन टीएमसी की इन 10 सीटों में से 4 पर सिसिर अधिकारी को वोट पड़े थे, जो हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए सुवेंदु अधिकारी के पिता हैं. सुवेंदु के बीजेपी में जाने के बाद सिसिर को लेकर भी काफी चर्चाएं हैं. लेकिन अगर ऐसा हुआ तो इन सीटों पर टीएमसी को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है. अगर वरिष्ठ नेता सिसिर अधिकारी बीजेपी में शामिल होते हैं तो टीएमसी के लिए डैमेज कंट्रोल का मौका काफी कम होगा.

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दूसरे चरण में सीएम ममता की सीट पर चुनाव

अब अगर दूसरे चरण के चुनावों की बात करें तो इसमें जंगलमहल के अलावा साउथ 24 परगना की 4 विधानसभा सीटें भी शामिल हैं. ये गोसाबा, काकद्वीप, सागर और पथरप्रतिमा जैसे क्षेत्र हैं, जिन्होंने मई 2020 में चक्रवात अम्फान के दौरान बड़े पैमाने पर नुकसान झेला. इसके साथ ही यहां देरी से राहत पहुंचने या बिल्कुल भी नहीं पहुंचने की शिकायतें भी आईं. हालांकि इन सभी चार सीटों पर 2019 में टीएमसी आगे थी.

इस चरण में शामिल 30 विधानसभा सीटों में से एक नंदीग्राम से खुद सीएम ममता बनर्जी ने चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. लेकिन चुनावी जानकारों का कहना है कि इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है. क्योंकि दूसरे ही चरण में सीएम ममता की सीट का बज खत्म हो जाएगा.

इसके अलावा तीसरे और चौथे चरण में हुगली और हावड़ा में जंग देखने को मिलेगी. अब हावड़ा में जिन 7 विधानसभा सीटों पर तीसरे चरण में वोटिंग होगी, उनमें से सभी सीटों पर 2019 में टीएमसी को बढ़त थी. वहीं हुगली की 8 सीटों में से 6 सीटों पर टीएमसी ने बढ़त बनाई थी. पश्चिम बंगाल में तीसरे चरण के लिए वोटिंग 6 अप्रैल को होगी, तब तक बाकी के राज्यों में वोटिंग खत्म हो जाएगी. लेकिन इस वक्त तक बंगाल में 294 सीटों में से सिर्फ 91 सीटों पर वोटिंग हुई होगी. इसके 23 दिन बाद पश्चिम बंगाल में अंतिम चरण का मतदान होगा.

लंबे चुनावों का बीजेपी को क्या फायदा?

अब सवाल ये बनता है कि आखिर इतने लंबे चुनाव का बीजेपी को क्या फायदा पहुंचेगा. राजनीतिक आलोचकों का कहना है कि इससे सबसे बड़ा फायदा पार्टी को ये होगा कि चुनाव के अंत तक बड़े नेता बंगाल में डेरा डाले रहेंगे. क्योंकि बाकी सभी राज्यों के चुनाव हो चुके होंगे.

एक दूसरी बात ये है कि बीजेपी के लिए मटुआ वोट काफी जरूरी हैं, इसीलिए साउथ 24 परगना, नॉर्थ 24 परगना और नादिया में सभी विधानसभा सीटों पर तब वोट डाले जाएंगे, जब असम में चुनाव खत्म हो जाएगा. इससे बीजेपी असम में नागरिकता कानून पर चुप्पी बनाए रख सकती है और पश्चिम बंगाल में इसे अपने मुख्य चुनावी एजेंडे के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है.

नॉर्थ बंगाल के जिलों में चौथे चरण में होने वाले चुनावों पर नजर डालें तो यहां भी अलीपुरद्वार और कूचबिहार में राजबोंगशी लोगों का दबदबा है. जबकि दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी और कलिम्पोंग इसके बाद पांचवे चरण में आएंगे. अब हो सकता है कि अलग-अलग डेमोग्राफी और चुनावी मुद्दों के चलते ये फैसला लिया गया.

पांचवें और छठे चरण में नॉर्थ 24 परगना, नादिया और पूर्वी बर्दवान में वोटिंग होगी. जिन क्षेत्रों में बीजेपी को 2019 में ज्यादा फायदा नहीं हुआ था.

अब अगर अंतिम दो चरणों यानी 7वें और 8वें चरण की बात करें तो इसमें उन जिलों में वोटिंग होगी, जहां बीजेपी और टीएमसी में कांटे की टक्कर है. साथ ही इनमें टीएमसी को बीजेपी से थोड़ी बढ़त हासिल है. इन चरणों में कोलकाता, मुर्शिदाबाद और बीरभूम जैसे जिले शामिल हैं. हालांकि, मालदा, दक्षिण दिनाजपुर और पश्चिम बर्धमान में भी इन दो चरणों में वोटिंग होगी, जहां बीजेपी ने 2019 में अच्छा प्रदर्शन किया था. जबकि पार्टी ने मालदा में दो संसदीय सीटों में से एक पर जीत हासिल की थी.

असम में बीजेपी की पकड़ वाली सीटों पर पहले चुनाव

पश्चिम बंगाल की ही तरह असम विधासभा चुनावों को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. क्योंकि शुरुआती चरण में उन सीटों पर चुनाव कराए जा रहे हैं, जिन पर बीजेपी की पकड़ है. वहीं जिन सीटों पर बीजेपी पीछे है, वहां सबसे आखिर में चुनाव होंगे. असम में 27 मार्च को पहले चरण, 1 अप्रैल को दूसरे और 6 अप्रैल को तीसरे चरण की वोटिंग होगी.

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