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राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की पहली अमेरिका यात्रा ने एक महत्वाकांक्षी द्विपक्षीय एजेंडा निर्धारित किया है. क्वाड्रीलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग या क्वाड की आमने-सामने की इस बैठक में ऑस्ट्रेलिया और जापान के प्रधानमंत्रियों के साथ मिल कर एक कदम आगे की ओर बढ़े हैं.
भारत के पास खुश होने के कारण हैं, क्योंकि इसकी दो सबसे बड़ी सुरक्षा चिंताओं-चीन और पाकिस्तान पर विशेष ध्यान दिया गया है. इनपर क्वाड देशों के बीच समन्वय और एक्शन को बढ़ावा मिला है.
योजना ताकत और दिमाग का इस्तेमाल कर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ी यकी गई प्रतिबद्धताओं पर डटे रहते हुए, एक तरफ चीन की विस्तारवादी योजनाओं को रोकना और दूसरी तरफ अफगानिस्तान में पाकिस्तान की महत्वाकांक्षाओं पर नजर रखना है.
भारत-अमेरिका और क्वाड, दोनों के संयुक्त बयानों में पाकिस्तान की विदेश नीति के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कोड “परदे के पीछे से आतंकियों के इस्तेमाल” की निंदा की गई और अफगानिस्तान में आतंकवाद से मुकाबला करने की जरूरत पर जोर दिया गया.
बयानों में इस बात पर जोर दिया गया कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवादियों को शरण देने या ट्रेनिंग देने के लिए नहीं किया जाए. इन सब के केंद्र में मिल जुल कर नीतियां बनाने का वादा और पिछले महीने भारत की अध्यक्षता के दौरान पारित यूएन सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 2593 पर टिके रहना था.
तालिबान और पाकिस्तान में उनकी भलाई चाहने वालों के लिए ये चेतावनी है. और जहां तक भारत का मामला है ये एक अच्छी शुरुआत है. अगर दबाव में भी ऐसी ही स्थिति बनी रही-क्योंकि चीन के जरिए दबाव आएगा, तो ये साबित हो जाएगा कि लोकतांत्रिक देश “कानून का शासन” लागू कर सकते हैं.
क्वाड की बैठक से पहले मोदी और बाइडेन की द्विपक्षीय बैठक हुई जिसमें उन्हें कुछ अच्छा वक्त साथ बिताने का मौका मिला.
मुलाकात के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति गर्मजोशी से भरे थे और दोस्त के जैसे मिले. तय बातचीत के मुद्दों से अलग भारत में अपने संभावित रिश्तेदारों को खोजने को लेकर मजाक भी किया. ओवल के दफ्तर में खुशी और ठहाकों भरा माहौल था. लेकिन बाइडेन ने विनम्रता से अपने मेहमान को याद दिलाया कि अमेरिका-भारत की साझेदारी सिर्फ एक साथ मिलकर काम करने के बारे में ही नहीं है बल्कि इस बारे में भी है कि “हम कौन हैं”.
मूल्यों पर उपदेश देने के बजाय अमेरिका ने विनम्रता से कहा कि अमेरिका समेत सभी देशों में लोकतांत्रिक मूल्यों की निरंतर रक्षा की जरूरत है. ये उन पुराने दिनों से एकदम अलग है जब अमेरिकी राजनयिक भारत को मूल्यों का पाठ पढ़ाने से पहले कुछ भी नहीं सोचते थे.
अहम बैठकों के बाद जारी कई बयान और फैक्ट शीट्स बीजिंग और इस्लामाबाद को कुछ समय से लिए व्यस्त रख सकते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि चीन की आक्रामक और कब्जा करने वाली नीति क्वाड के पुनर्जन्म का कारण बना है. एक संयुक्त मोर्चे का प्रतिनिधित्व करने के लिए क्वाड नेता उम्मीद से ज्यादा जल्दी साथ आए .
पीएम मोदी के दौरे का दूसरा अहम हिस्सा क्वाड शिखर सम्मेलन था. इस सम्मेलन को कामयाब माना गया. पहला इस कारण कि कुछ सदस्य देश पिछली हिचकिचाहट को पीछे छोड़ते हुए “चीन की चुनौती” के तौर पर देखे जा रहे एक गठबंधन में खुलकर साथ आए.
दूसरा कारण ये है कि क्वाड ने अपने एजेंडे का विस्तार वैक्सीन वितरण, जलवायु परिवर्तन और उभरती टेक्नोलॉजी से लेकर अंतरिक्ष, साइबर सुरक्षा और STEM (साइंस, टेक, इंजीनियरिंग और मैथ्स) क्षेत्रों में स्कॉरलशिप प्रदान करने के लिए एक क्वाड फेलोशिप तक किया.
गति और एजेंडा के विस्तार में तेजी इसलिए आई क्योंकि 2020 में चीन ने सीमा पर साफ तौर पर भारत की जमीन हड़पने की कोशिश की और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ व्यापारिक प्रतिबंध लगाए क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने चीनी व्यापार और निवेश नीतियों के खिलाफ सवाल उठाने और कोविड-19 महामारी की उत्पत्ति की वास्तविक जांच की मांग करने का साहस किया था.
कुछ महीने पहले तक भी भारत सरकार “क्वाड” शब्द जोर से कहने पर संकोच कर रही थी, लेकिन वाशिंगटन मॉन्यूमेंट के सामने पीएम मोदी जो बाइडेन, स्कॉट मॉरिशन और योशीहिदे सुगा के साथ फोटो खिंचवाते नजर आए. हालांकि इन देशों के साथ आने की असली पृष्ठभूमि चीन और हिंद-प्रशांत महासागर इलाके में उसका बढ़ता प्रभाव था.
चारों नेताओं ने अपने शुरुआती बयान में चीन का जिक्र कभी नहीं किया लेकिन क्वाड शिखर सम्मेलन का उद्देश्य, रूप-रेखा और संदेश, चीन और उसके दोस्त पाकिस्तान के लिए ही था. मोदी ने क्वाड को “वैश्विक अच्छाई के लिए एक बल” बताया, बाइडेन ने चारों लोकतांत्रिक देशों के “सकारात्मक एजेंडा” पर जोर दिया और सुगा ने सदस्यों के बीच “मजबूत एकजुटता” की बात की.
ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिशन चीन का नाम लेने के सबसे करीब आए. जब उन्होंने एक विश्व व्यवस्था बनाने की बात की जो स्वतंत्रता की पक्षधर हो, जहां जोर जबरदस्ती न हो और जहां विवादों को शांतिपूर्वक निपटाया जाए. ये सभी चीन की नीती के खिलाफ हैं.
लेकिन नेता एक “स्वतंत्र और खुला हिंद-प्रशांत” कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं और चीन का प्रभाव कैसे कम कर सकते हैं? इसका जवाब है बेहतर विकल्प प्रदान करना और चारों ओर असुरक्षा को कम करना, क्योंकि चीन का खेल जमीन और अर्थव्यवस्था दोनों से जुड़ा है, वो टेक्नोलॉजी को नियंत्रित कर बुनियादी ढांचे के निर्माण और कर्ज में देशों को दबा कर निर्भरता पैदा करता है.
अगर कोई एक शब्द है जिसके जरिए क्वाड नेताओं का विजन दिखता है तो वो है टेक्नोलॉजी. वो मोर्चा जहां चीन के साथ मुकाबले का फैसला किया जा सकता है. क्वाड के संयुक्त बयान में कहा गया है कि महत्वपूर्ण और उभरती हुई टेक्नोलॉजी का उद्देश्य आज दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों का समाधान करने के लिए होना चाहिए, चाहे वह समान विकास सुनिश्चित करना हो या जलवायु परिवर्तन से लड़ना या महामारी को नियंत्रित करना.
अगले महीने से COVAX सहित वैक्सीन का निर्यात फिर से शुरू करने के भारत के फैसले का क्वाड के सदस्य देशों ने स्वागत किया. बयान में कहा गया है कि 2022 के अंत तक एक अरब खुराक की डिलीवरी का इस साल मार्च के वर्चुअल क्वाड शिखर सम्मेलन में तय किया गया लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा.
एक नई कोशिश सेमीकंडक्टर और उनके पुरजों जैसे महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी की सप्लाई चेन में क्षमता का आकलन और कमजोर बिंदुओं का पता लगाएगी. चीन पर निर्भरता कम करने के लिए 5 जी तकनीक में विविधता एक और आवश्यक विचार है. क्वाड तकनीकी मानकों को निर्धारित करना चाहता है और जहां कई स्टेकहोल्डर की बात हो वहां एक आम सहमति आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहता है.
विजन काफी बड़ा है और महत्वाकांक्षा काफी आगे तक जाने की है. बाइडेन प्रशासन ने क्वाड के विचार को दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ाया है और अगर भारत अपने कार्ड सही तरीके से खेलता है तो नई सप्लाई चेन बनने के साथ ही ये मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में एक बड़ा हिस्सा हासिल कर सकता है.
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