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राहुल गांधी ने शुक्रवार को कहा है कि अगर आम चुनावों के बाद उनकी सरकार आई तो वो नीति आयोग को खत्म कर देंगे. राहुल ने इसकी जगह फिर से योजना आयोग को लाने की बात कही है. राहुल ने एक ट्वीट किया -'नीति आयोग ने सिर्फ दो काम किए हैं. एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रचार और दूसरा डाटा में गड़बड़ी. नीति आयोग की जगह जो योजना आयोग बनाएंगे उसमें सिर्फ 100 लोग काम करेंगे, जिसमें जाने-माने अर्थशास्त्री भी होंगे.' अब सवाल ये है कि आखिर राहुल गांधी ऐसा क्यों कह रहे हैं? आखिर उन्हें नीति आयोग से क्या शिकायत है?
मोदी सरकार से पहले देश में जो भी विकास का काम हुआ (या नहीं हुआ) उसकी रूपरेखा तैयार करने का जिम्मा योजना आयोग का था. 1950 में कांग्रेस की सरकार ने योजना आयोग का गठन किया था. पहले आयोग की भूमिका होती थी सलाहकार के तौर पर. योजना की सलाह मंत्रालयों को दी जाती थी और फिर उसपर बातचीत होती थी, विमर्श होता था. लेकिन मोदी सरकार आने के बाद न सिर्फ योजना आयोग का नाम बदल दिया गया, काफी हद तक काम भी बदल दिया गया. नाम रखा गया नीति आयोग.
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इसे समझना है तो ONGC के गैस और ऑइल फील्ड्स को निजी हाथों में देने के किस्से से समझ सकते हैं. ONGC अपने 158 ऑइल एंड गैस फील्ड्स को एक्सप्लोर नहीं कर पा रहा था. पिछले साल नीति आयोग ने सुझाव दिया कि क्यों न इन्हें निजी हाथों में दे दिया जाए ताकि देश में ज्यादा पेट्रो पदार्थों का उत्पादन हो सके. ONGC और सरकार के भी कुछ धड़ों ने इस बात का पुरजोर किया कि आखिर क्यों अरबों की लागत से खोजे गए तेल के कुएं प्राइवेट हाथों में देने चाहिए.
मसला सुलझाने के लिए नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी, जिसने आखिर ये बात मनवा ही ली कि 64 ऑइल फील्ड निजी हाथों में दे दिए जाएं. चाहे वो किसानों को सालाना 6 हजार देने की बात हो, नोटबंदी का मामला हो, इलेक्ट्रिक व्हीकल की पॉलिसी या फिर विनिवेश का मामला, मोदी सरकार की कई फ्लैगशिप योजनाओं को लागू करवाने में नीति आयोग फ्रंटफुट पर था. हालत ये है कि नीति आयोग के CEO अमिताभ कांत को कई बार सचिवों का सचिव तक कह दिया जाता है.
हाल ही में राहुल गांधी ने ऐलान किया यूपीए की सरकार आई तो वो गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की न्यूनतम आमदनी 12 हजार रूपए सुनिश्चित करेगी. कांग्रेस ने इसे 'न्याय' योजना नाम दिया. इस 'न्याय' योजना को राजीव कुमार ने चुनावी जुमला बताते हुए सरकारी खजाने पर बड़ा बोझ बताया.
राजीव कुमार ने ट्वीट में ये लिखा -
इस बयान का कांग्रेस ने तो विरोध किया ही, चुनाव आयोग ने भी इसे चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन माना और जवाब मांगा. राजीव कुमार ने इस पर जवाब देने के लिए 5 अप्रैल तक का समय मांगा था, लेकिन आयोग ने उन्हें 2 अप्रैल तक का वक्त दिया है.
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मोदी सरकार बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ कि नीति आयोग ने जीडीपी ग्रोथ के आंकड़े दिए. कांग्रेस ने इस पर तो सवाल उठाए ही, नीति आयोग ने नए तरीके से नई सीरीज पर आधारित जो आंकड़े पेश किए कांग्रेस ने भी उसे खारिज किया. 2014-18 के लिए आयोग ने जीडीपी ग्रोथ की दर 7.4% बताई. इकनॉमी के जानकारों ने भी कहा कि ये ग्रोथ रेट सही नहीं है.
अगर पुरानी सीरीज के आधार पर आकलन किया जाए तो ग्रोथ रेट एक से डेढ़ परसेंट कम ही रहेगी. पिछले साल जून में जब प्रधानमंत्री ने नीति आयोग के चौथे गवर्निंग काउंसिल की बैठक के मंच से अर्थव्यवस्था की सुनहरी तस्वीर दिखाई तब भी कांग्रेस ने कहा था कि ये अर्धसत्य है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने तब ट्वीट किया था -
कोई ताज्जुब नहीं कि राहुल गांधी नीति आयोग को आंकड़ों के साथ गड़बड़ी करने वाली संस्था बता रहे हैं.
2018 में जब राहुल गांधी मोदी सरकार से लगातार मांग कर रहे थे कि किसानों का कर्ज माफ किया जाए तब भी नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने तल्ख टिप्पणी की थी. राजीव कुमार ने कहा था -
पिछले साल सितंबर में नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार के लिए आरबीआई के पूर्व गवर्नर की नीतियों को जिम्मेदार बताया. तब भी कांग्रेस ने राजीव के इस आरोप को हास्यास्पद करार दिया था. कांग्रेस का कहना था कि ये टोपी ट्रांसफर करने जैसा है. तब कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा था कि जब यूपीए जा रही थी तो बैंकों का एनपीए 2 लाख करोड़ था लेकिन 2018 आते-आते ये 12 लाख करोड़ हो गया.
इसी साल जनवरी में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के अध्यक्ष और एक सदस्य ने बेरोजगारी पर बनाई नेशनल सैंपल सर्वें ऑफिस (NSSO) की रिपोर्ट को जारी न करने का विरोध करते हुए इस्तीफा दे दिया था.
मोहनन ने जवाब दिया - उनकी रिपोर्ट फाइनल थी, न कि ड्राफ्ट. और संस्थाओं की इसी बेकद्री से खफा होकर उन्होंने इस्तीफा दिया है न कि पर्सनल कारणों से. मोहनन ने तब ये कहा था कि सरकारी आंकड़ों को जारी करने की प्रक्रिया में नीति आयोग को अनावश्यक दखल नहीं देनी चाहिए.
कुल मिलाकर नीति आयोग की जगह फिर से योजना आयोग लाने की मंशा के पीछे कांग्रेस के पास कई कारण हैं - इनमें लोकशाही में संस्थाओं के अधिकार बचाने से लेकर कांग्रेसी विरासत को बचाए रखना तक शामिल हैं.
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Published: 30 Mar 2019,02:18 PM IST