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योजनाओं से लेकर राजनीति तक, 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) में महिलाओं (Women) पर काफी जोर दिया गया, लेकिन शायद ही कभी उन्हें कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी से परे देखा गया.
इस साल महिला आरक्षण विधेयक पर खूब बातें हुईं, लेकिन क्या महिलाओं की चुनावी भागीदारी में कोई बढ़ोतरी देखी गई? इस बार कितने महिला उम्मीदवार जीते?
एक नजर में, देखें तो चार राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में दो प्रमुख राष्ट्रीय दलों (बीजेपी और कांग्रेस) के 148 महिला उम्मीदवार थे. रविवार, 3 दिसंबर को, बीजेपी ने जारी नतीजों में पहले तीन राज्यों में स्पष्ट बहुमत हासिल किया, जबकि तेलंगाना में कांग्रेस ने जीत हासिल की.
सभी की निगाहें मिजोरम पर भी थीं, जहां कई सालों से कोई महिला विधायक नहीं है. इसके भी नतीजे सोमवार, 4 दिसंबर को आ गए.
इस बार की चुनावी जीत का विश्लेषण दर्शाता है कि चुनाव जीतने वाली महिलाओं के वोट शेयर का अनुपात कई समकालीन पुरुष उम्मीदवारों की तुलना में ज्यादा है.
आइए देखते हैं.
बीजेपी के लिए चुनाव जीतने वाले 115 उम्मीदवारों में से 9 महिलाएं हैं. उनमें से दो बड़े नाम हैं- पूर्व सीएम वसुंधरा राजे जो झालरापाटन से जीतीं और सांसद दीया कुमारी विद्याधर नगर सीट से विजयी हुईं. दोनों ने 1 लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की.
हालांकि कांग्रेस के साथ से सत्ता चली गई, लेकिन 69 विजेता उम्मीदवारों में से नौ महिलाएं हैं.
दो निर्दलीय उम्मीदवारों, डॉ. रितु बानावत और डॉ. रितु चौधरी ने भी अपनी सीटें जीत ली हैं.
इस साल केवल 10% उम्मीदवार महिलाएं हैं, जो 2018 के चुनावों में 12% से कम है.
कांग्रेस के लिए ज्यादा बदलाव नहीं हुआ, क्योंकि महिला उम्मीदवार 13.1% (2018) से 14.1% (2023) ही हुईं.
ये ध्यान दिया जाना चाहिए कि राजे, जो निश्चित रूप से राज्य की राजनीति में सबसे प्रमुख चेहरों में से एक हैं, को चुनावी प्रचार के दौरान किनारे कर दिया गया था और दीया कुमारी लगातार आगे बढ़ी हैं. उन्होंने उस सीट से जीत हासिल की है जिसे एक अन्य बीजेपी नेता नरपत सिंह राजवी का क्षेत्र कहा जाता है.
महिला मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए बीजेपी द्वारा 'लाडली बहना योजना'जैसी कल्याणकारी योजनाओं के बड़े पैमाने पर जोर देने के बावजूद, लैंगिक नजरिए से देखें तो मैदान में कोई बड़ा या लोकप्रिय चेहरा नहीं था.
163 विजेता उम्मीदवारों में से 21 महिलाएं हैं, इनमें हट्टा से उमादेवी लालचंद खटीक और मंडला से संपतिया उइके शामिल हैं, दोनों ने 1 लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की है.
1 लाख वोट-क्लब में शामिल होने वाली गायत्री राजे पवार ने देवास सीट और अर्चना दीदी ने बुरहानपुर सीट जीती है.
कांग्रेस के लिए चुनाव जीते 65 उम्मीदवारों में से केवल पांच महिला उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है.
मध्य प्रदेश में, 2,534 उम्मीदवारों में से केवल 253 उम्मीदवार महिलाएं थीं, इसे 2018 से मामूली बदलाव माना जाएगा, जब 235 उम्मीदवार महिलाएं थीं.
बीजेपी ने 28 और कांग्रेस ने 30 महिलाओं को मैदान में उतारा. 2018 में, ये संख्या क्रमशः 24 और 27 थी.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्टों से विश्लेषण किए गए आंकड़ों के अनुसार, किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल ने इन राज्यों के चुनावों में लगभग 33% महिला उम्मीदवारों को शामिल करने की कोशिश नहीं की.
छत्तीसगढ़ में इस बार बीजेपी के 54 विजेता उम्मीदवारों में से नौ महिलाएं हैं. ये एक ऐसा राज्य है जहां 2003 में अलग राज्य के रूप में अपने पहले चुनाव के बाद से महिला प्रतियोगियों और निर्वाचित विधायकों की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है.
बीजेपी के लिए, लक्ष्मी राजवाड़े ने भटगांव से 1 लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की, जबकि लता उसेंडी की कोंडागांव से 80,000 से ज्यादा वोटों से जीत हुई.
कांग्रेस की कुल 11 महिला उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है और ये उसके 35 विजेता उम्मीदवारों में से लगभग एक तिहाई हैं.
2018 में, सिहावा निर्वाचन क्षेत्र से लक्ष्मी ध्रुव (कांग्रेस) ने महिला उम्मीदवारों के बीच सबसे ज्यादा 56% वोट शेयर के साथ जीत हासिल की थी. इस बार कांग्रेस की अंबिका मरकाम ने 84 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की है.
2003 में केवल पांच महिलाओं के निर्वाचित होने से लेकर 2018 में 16 महिलाओं के निर्वाचित होने तक, राज्य में महिला विधायकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है.
एक और फेक्टर जो देखने को मिलता है वो ये है कि कई महिला विधायक एक से ज्यादा बार चुनी गई हैं- जैसे कि छत्तीसगढ़ की पूर्व महिला और बाल मंत्री और कोंडागांव (एसटी) सीट से बीजेपी की लता उसेंडी जिन्होंने 2018 और 2013 में अपनी हार को उलट दिया है.
महिला विधायकों के मामले में तेलंगाना सबसे खराब स्थिती वाले राज्यों में से एक है. 2014 में राज्य का दर्जा हासिल करने के बाद से, चुनावी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि यहां महिला उम्मीदवारों की भारी कमी हो गई है, और चुनावी तौर पर पाटने के लिए एक काफी बड़ा लिंग अंतर है.
राज्य में कुल 11 महिला उम्मीदवार चुनाव जीतीं. कांग्रेस के 64 विजयी उम्मीदवारों में से, केवल चार ही महिलाएं हैं- लक्ष्मी कांथा राव थोटा, यशस्विनी ममीडाला, दानसारी अनसूया सीताक्का और मट्टा रागमयी.
BRS के 39 विजेता उम्मीदवारों में से केवल तीन महिलाएं हैं.
2014 में पहली विधान सभा के दौरान महिला विधायकों का अनुपात महज 7.6% था, फिर 2018 में ये प्रतिशत और गिरकर 5% हो गया.
2018 में, 136 महिलाओं ने अपना नामांकन दाखिल किया, जो दाखिल किए गए कुल 1,782 नामांकनों में से केवल 8 प्रतिशत था.
राज्य में महिला नेताओं की स्पष्ट अनुपस्थिति प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं को कम टिकट दिए जाने के कारण भी है.
के चन्द्रशेखर राव (केसीआर) की पहली निर्वाचित सरकार में कोई महिला मंत्री नहीं थी और केवल 2019 में कैबिनेट विस्तार में दो महिला सदस्यों को जोड़ा गया था.
इस तथ्य के बावजूद कि जीतने वाली महिलाओं की संख्या में गिरावट आ रही है, सीटों पर उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है- 1962 में 4.6% से 2023 में 9.7% तक.
इसलिए, चुनाव नतीजे एक स्पष्ट तस्वीर पेश करते हैं कि भले ही शासन में महिलाओं की भूमिका को कुछ हद तक मान्यता दी गई हो, लेकिन महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारने और चुनने में समानता हासिल करना अभी भी काफी दूर है.
इसके अलावा, एक महिला की उम्मीदवारी को उनकी पार्टी की गतिशीलता, राज्य की राजनीति, जाति और अन्य स्थानीय कारकों से अलग करके नहीं देखा जा सकता है, चाहे वह कल्याणकारी योजनाएं हों या एक या अधिक राज्यों में मजबूत हिंदुत्व का जोर हो।
महिला आरक्षण विधेयक, जिसका लक्ष्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करना है, माना जाता है कि इसे 2029 से पहले लागू नहीं किया जाएगा, हालांकि प्रमुख राजनीतिक दलों को इस बारे में बहुत कुछ सोचना होगा कि क्या वे 2024 के लोकसभा चुनाव तक ज्यादा महिला नेताओं को सक्रिय रूप से शामिल करना चाहते हैं.
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