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‘हिम्मत करो, आवाज उठाओ और देश के लोकतंत्र को बचा लो’ बीजेपी के बागी नेता यशवंत सिंह ने बगावत का सबसे बड़ा बिगुल बजा दिया है.
पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने अपनी ही पार्टी पर फिर निशाना साधा है. इंडियन एक्सप्रेस में लिखे लेख में उन्होंने अपनी ही पार्टी के सांसदों से पार्टी लीडरशिप के खिलाफ बुलंद आवाज उठाने की अपील कर डाली है.
सिन्हा के मुताबिक 'दोस्तों, हम सबने 2014 लोकसभा चुनाव में पार्टी की जीत के लिए बहुत मेहनत की. हम में से कई ने तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ संसद के भीतर और बाहर संघर्ष किया. लेकिन अब समय आ गया है कि हिम्मत करो, आवाज उठाओ और देश के लोकतंत्र को बचा लो'.
यशवंत सिन्हा ने इस लेख में सरकार को दाएं, बाएं सभी तरफ से जबरदस्त तरीके से घेरा है. उनके मुताबिक अर्थव्यवस्था, विदेश नीति, महिला सुरक्षा और आंतरिक लोकतंत्र जैसे हर मोर्चे पर मौजूदा सरकार से बहुत निराशा हुई है. उन्होंने सभी सांसदों से अपील की है कि चुप्पी तोड़ें वरना देर हो जाएगी.
यशवंत ने लिखा है कि 2014 के चुनाव में जीत के लिए पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मेहनत की थी. कार्यकर्ताओं की मेहनत के दमपर ही हमने इतनी बड़ी जीत हासिल की, पूरी पार्टी ने नरेंद्र मोदी को समर्थन किया था. सरकार अब चार साल पूरे कर चुकी है और पांच बजट पेश कर चुकी है. लेकिन ऐसा लगता है कि हम मतदाताओं का विश्वास खो चुके हैं.
यशवंत सिन्हा ने देश की मजबूत अर्थव्यवस्था के सरकार के दावों पर कटाक्ष किया कि तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में किसानों की हालत खराब नहीं होती है, युवा बेरोजगार नहीं होते, छोटे व्यापारों का खात्मा नहीं होता और सेविंग्स-इन्वेस्टमेंट में इस तरह गिरावट नहीं होती, जिस तरह पिछले चार सालों में देखने को मिली है.
पूर्व वित्तमंत्री का आरोप है कि भ्रष्टाचार एक बार फिर से सिर उठाने लगा है. कई बैंक घोटाले सामने आए हैं और घोटाला करने वाले देश से बाहर भागने में कामयाब रहे हैं और सरकार असहाय सी देखते रह गई है.
यशवंत सिन्हा ने पीएम मोदी के पसंदीदा विषय विदेश नीति पर भी सवाल उठाया.
सिन्हा ने लिखा, ‘हमारे पड़ोसियों के साथ रिश्ते मधुर नहीं हैं. चीन क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाता जा रहा है और हमारे हित प्रभावित हो रहे हैं. पाकिस्तान में हमारे बहादुर जवानों ने शानदार तरीके से सर्जिकल स्ट्राइक की लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ.’
यशवंत सिन्हा ने अपने लेख में कहा है कि लोकतंत्र खतरे में है. देश की ज्यादातर संस्थानों की छवि से खिलवाड़ किया जा रहा है. सिन्हा ने लिखा है कि पिछले चार सालों में सबसे बड़ा खतरा हमारे लोकतंत्र के लिए पैदा हुआ है. इस दौरान लोकतांत्रिक संस्थाओं का वजूद खतरे में है.
सिन्हा ने लिखा है कि अगर मौजूदा दौर की तुलना अटल बिहारी वाजपेयी के दौर से की जाए तो उस दौरान हम लोगों को स्पष्ट निर्देश था कि विपक्ष के साथ सामंजस्य बनाकर सदन को सुचारू ढंग से चलाया जाना चाहिए. इसलिए विपक्ष जो भी चाहता था, उन नियमों के अधीन स्थगन प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव पेश होते थे और अन्य चर्चाएं होती थीं.
सिन्हा के मुताबिक पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र पूरी तरह से खत्म हो गया है. मित्रों ने मुझे बताया कि यहां तक कि पार्टी की संसदीय दल की बैठकों में भी उनको अपने विचार रखने का मौका नहीं मिलता.
यशवंत सिन्हा ने कहा कि मौजूदा सांसदों के लिए 2019 चुनावों में टिकट हासिल करना मुश्किल होगा, और अगर उन्हें टिकट मिल भी गया तो उनका जीतना "मुश्किल" होगा.
सिन्हा ने लिखा कि ऐसा लगता है कि पार्टी का लक्ष्य सिर्फ चुनाव जीतना ही रह गया है. उन्होंने लिखा, ‘मुझे नहीं पता है कि अगले लोकसभा चुनावों में किसको दोबारा टिकट मिलेगा, लेकिन मैं कह सकता हूं कि काफी लोगों को टिकट नहीं मिलने वाला है. हमें ये याद रखना चाहिए कि पिछले चुनाव में पार्टी को सिर्फ 31 फीसदी वोट मिला था, यानी 69 फीसदी खिलाफ गया था. अगर विपक्ष एकजुट हो जाता है तो पार्टी का पता भी नहीं लगेगा.’
सिन्हा ने अपने लेख में लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से भी आवाज उठाने की अपील की है. सिन्हा ने पार्टी सांसदों से कहा है कि राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर अपनी आवाज उठाने के लिए यही सही वक्त है.
(इनपुट इंडियन एक्सप्रेस से)
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