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साल 2020 में कोरोना महामारी ने लगभग हर चीज पर ब्रेक लगा दिया था, लेकिन बिहार चुनाव ने बता दिया कि इलेक्शन तो अपने ही स्टाइल में होते हैं और होते रहेंगे, फिर चाहे कुछ भी हो. नेताओं की रैलियों के लिए सिर्फ गाइडलाइन जारी थीं, पालन होता कहीं नहीं नजर आया. लेकिन अब आने वाले साल यानी 2021 में भी राजनीति के कई नए रंग देखने को मिलेंगे. 2021 में करीब 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन फिलहाल सबसे ज्यादा चर्चा सिर्फ पश्चिम बंगाल की हो रही है. तो हम आपको बताएंगे कि 2021 में किन राज्यों में क्या समीकरण रहने वाले हैं.
जिन राज्यों में चुनाव हैं, उनमें ये भी देखना होगा कि कौन सी पार्टी पिछले कुछ सालों में कितनी मजबूत हुई है और किस पार्टी ने अपनी जमीन खो दी है. साथ ही नए साल में कुछ नई पीढ़ियों के हाथों में कमान नजर आने वाली है. जानिए 2021 में क्या रहने वाली है भारतीय राजनीति की पूरी कहानी.
सबसे पहले बात करते हैं राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों की. नए साल में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, पुडुचेरी और केरल में विधानसभा के चुनाव होंगे. लेकिन इनमें से सबसे बड़ा राज्य पश्चिम बंगाल है और यहां चुनाव से करीब 5 महीने पहले ही घमासान छिड़ चुका है. तो पहले इसी राज्य की बात कर लेते हैं.
पश्चिम बंगाल में विधानसभा की कुल 294 सीटें हैं. अगर पिछले चुनाव, यानी 2016 विधानसभा चुनावों की बात करें तो तब ममता बनर्जी का राज्य में एकछत्र राज था. यानी टीएमसी के आस-पास भी कोई पार्टी नजर नहीं आ रही थी. इस चुनाव में टीएमसी ने 294 सीटों में से कुल 211 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं दूसरा नंबर कांग्रेस का था. जिसने 44 सीटें जीती थीं. लेकिन बीजेपी पश्चिम बंगाल में सिर्फ 3 सीटें ही जीत पाई थी. यानी पार्टी का यहां कोई वजूद नहीं था. लेकिन अब लग रहा है कि बीजेपी ममता के गढ़ में सेंध लगा चुकी है.
लेकिन ये हम पांच साल पहले की बात कर रहे थे, अब तस्वीर कुछ अलग नजर आ रही है. आप कहेंगे कि तस्वीर तो चुनाव के बाद ही साफ होगी, लेकिन इस बीच एक अहम चुनाव और हुआ था. साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में जो प्रदर्शन किया, उसने तमाम राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया.
अब आपको इस बात का अंदाजा हो चुका होगा कि पश्चिम बंगाल चुनाव अब टीएमसी बनाम बीजेपी की लड़ाई है. इसीलिए ये विधानसभा चुनाव अब काफी अहम हो चुका है.
तो पश्चिम बंगाल की इस चुनावी जंग को समझाने के लिए हमने आपको बीजेपी और टीएमसी के अब तक के आंकड़े बताए, लेकिन 2021 में होने वाले चुनाव में कौन सी पार्टी क्या प्रदर्शन कर सकती है इसे भी जान लेते हैं.
पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता लगातार बिसात बिछाने का काम कर रहे हैं. हाल ही में सुवेंदु अधिकारी समेत कई नेताओं ने टीएमसी से इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन कर ली. यानी बीजेपी काफी एग्रेसिव तरीके से पश्चिम बंगाल चुनावों में उतर चुकी है.
अब अगर टीएमसी की बात करें तो 2021 में पार्टी को बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है. भले ही पार्टी के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने दावा किया हो कि बीजेपी दहाई के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाएगी, लेकिन पार्टी में चल रही हलचल और कानून व्यवस्था को लेकर टीएमसी के खिलाफ माहौल बना है. जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है.
कांग्रेस हर राज्य में अपना वजूद बचाने की कोशिश में जुटी है. पश्चिम बंगाल में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 44 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. लेकिन इस बार कांग्रेस को यहां भी अपना अस्तित्व खोने का खतरा मंडरा रहा है.
इन सबके अलावा बिहार में अपना कमाल दिखाने वाले असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने भी बंगाल चुनाव के लिए कमर कस ली है. ओवैसी की एंट्री से सबसे ज्यादा चिंता ममता बनर्जी को है. क्योंकि ओवैसी ममता के अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंध लगाने का काम करेंगे. कुल मिलाकर ओवैसी बंगाल के समीकरण बिगाड़ने का काम कर सकते हैं. बिहार की तरह बंगाल में भी उन पर बीजेपी की 'बी' पार्टी होने के आरोप लगाए जा रहे हैं.
बंगाल में जहां बीजेपी लोकसभा चुनाव के बाद आत्मविश्वास से भरी है और उसे पता है कि अब राज्य में राजनीतिक जमीन मिल चुकी है. लेकिन तमिलनाडु में ऐसा नहीं है. 234 सदस्यों वाली इस विधानसभा में बीजेपी को पिछले चुनाव में एक भी सीट नहीं मिल पाई थी.
बीजेपी के साथ फूट की खबरों और इस बुरे प्रदर्शन के बावजूद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और एआईएडीएमके के जॉइंट कोऑर्डिनेटर ई पलानीस्वामी ने कहा कि अगला चुनाव भी बीजेपी के साथ गठबंधन में लड़ा जाएगा. बीजेपी ने राज्य में वेल यात्रा निकालकर खुद की जमीन तलाशने की कोशिश जरूर की है, वहीं अमित शाह भी राज्य का दौरा कर चुके हैं. लेकिन इसके बावजूद पार्टी के लिए मिशन तमिलनाडु की ये राह कठिन है.
तमिलनाडु में जहां बीजेपी अपनी जमीन तलाशने की कोशिश में जुटी है, वहीं कांग्रेस और डीएमके 2019 लोकसभा चुनाव के बाद आत्मविश्वास से भरे हैं. क्योंकि दोनों पार्टियों ने मिलकर 39 में से कुल 31 लोकसभा सीटों पर कब्जा किया था. जिनमें से 23 डीएमके और 8 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं. यूपीए के खाते में कुल 33 सीटें आईं थीं. अब राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी डीएमके एमके स्टालिन के नेतृत्व में चुनावों को लेकर अभियान शुरू भी कर चुकी है.
अब तमिलनाडु की राजनीति में एक बड़ा तूफान आते-आते थम गया है. हम बात कर रह हैं सुपस्टार रजनीकांत के उस ऐलान की, जिसमें उन्होंने कहा था कि वो पॉलिटक्स में उतर रहे हैं और 31 दिसंबर को बड़ा ऐलान करेंगे. लेकिन इससे ठीक एक हफ्ते पहले रजनी की तबीयत बिगड़ गई और उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ा. कुछ दिन हॉस्पिटल में रहने के बाद जब वो डिस्चार्ज हुए तो उन्होंने अपना फैसला वापस ले लिया और कहा कि वो राजनीति से फिलहाल दूर रहेंगे और पार्टी नहीं बनाएंगे.
एक और सुपरस्टार कमल हासन पहले ही अपनी पार्टी मक्कल निधि मैयम लॉन्च कर चुके हैं और चुनावों की तैयारी कर रहे हैं. कमल हासन साफ कर चुके हैं कि वो राज्य की मुख्य पार्टियों के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. जिसके बाद उनके रजनीकांत की पार्टी के साथ चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं. अब इन तमाम समीकरणों को देखते हुए तमिलनाडु का चुनाव भी काफी दिलचस्प हो गया है. साथ ही ये चुनाव राज्य के दो दिग्गज नेताओं जयललिता और डीएमके के करुणानिधि के निधन के बाद पहला विधानसभा चुनाव है.
साल 2021 में केरल विधानसभा का कार्यकाल भी पूरा होने जा रहा है. यहां जून में चुनाव हो सकते हैं. 140 सीटों वाली इस विधानसभा में सीपीआई(एम) के नेतृत्व वाले एलडीएफ की सरकार है और पिनराई विजयन मुख्यमंत्री हैं. दक्षिण का ये राज्य भी बीजेपी के लिए काफी मुश्किल भरा है. यहां भी पार्टी का वजूद लगभग ना के बराबर है. पिछले विधानसभा चुनाव (2016) की बात करें तो 140 सीटों में से बीजेपी ने 98 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत सिर्फ 1 सीट पर ही मिल पाई. तब बीजेपी ने यहां पहली बार खाता खोलकर इतिहास रचा था. सीपीएम को सबसे ज्यादा 58 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस ने 22 सीटें जीती थीं.
पिछले चुनाव में सीपीएम के नेतृत्व में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) ने कुल 91 सीटें अपने नाम की थीं, वहीं कांग्रेस के नेतृ्त्व वाले गठबंधन संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) को कुल मिलाकर 47 सीटें मिल पाईं थीं. जिसके बाद राज्य में एलडीएफ ने सरकार बनाई.
यानी पिछले विधानसभा चुनाव के आंकड़ों को देखें तो केरल में लेफ्ट के आगे बीजेपी का कोई वजूद नहीं है. 2021 के चुनाव में बीजेपी की कोशिश रहेगी कि वो राज्य में पैर जमाने के लिए जमीन तलाशे.
केरल में अब बीजेपी का पहला टारगेट ईसाई समुदाय है, जो कांग्रेस नेतृत्व वाले यूडीएफ से इसलिए नाराज चल रहे हैं, क्योंकि इसमें इंडियन यूनियन मु्स्लिम लीग का प्रभाव बढ़ रहा है. जिसके बाद कुछ ईसाई नेताओं का समर्थन बीजेपी को मिल सकता है. वहीं कांग्रेस के यूडीएफ की कोशिश सीपीएम के वोट बैंक में सेंध लगाने की होगी. हालांकि निकाय चुनाव से जो तस्वीर सामने आई है वो पूरी तरह से सीएम पिनराई विजयन के पक्ष में नजर आ रही है.
अब हर जगह ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का जिक्र हो रहा है तो आप सोच रहे होंगे कि वो केरल में भी चुनाव लड़ने आ सकते हैं. लेकिन ओवैसी ने साफ कर दिया है कि वो केरल और असम में चुनाव नहीं लड़ेंगे. ओवैसी का कहना है कि वो केरल में आईयूएमएल को डिस्टर्ब नहीं करेंगे.
असम की 126 विधानसभा सीटों पर भी अगले साल मई आखिर या फिर जून में चुनाव हो सकते हैं. असम में बीजेपी का शासन है और सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री हैं. ये ए ऐसा राज्य है, जहां बीजेपी ने पिछले 10 सालों में जोरदार वापसी की है. थोड़ा पीछे 2011 में हुए असम विधानसभा चुनावों को देखते हैं. जब बीजेपी को राज्य की 126 सीटों में से सिर्फ 5 सीटें मिली थीं. यानी बीजेपी राज्य में काफी ज्यादा पीछे थी. इस चुनाव में कांग्रेस को 78 सीटों पर जीत मिली थी. लेकिन इसके बाद 2016 में जो चुनाव हुए, उन्होंने तस्वीर बदलकर रख दी. राज्य में भगवा लहराया और बीजेपी ने 60 सीटों पर कब्जा किया. वहीं कांग्रेस 26 सीटों पर सिमट गई.
बीजेपी ने अपने ही अंदाज में स्थानीय पार्टियों के कंधे पर हाथ रखकर नॉर्थ-ईस्ट के इस राज्य में कमल खिलाया. बीजेपी ने 2016 विधानसभा चुनाव से पहले असम गण परिषद (एजीपी) और बीपीएफ से समझौता किया था. लेकिन इस बार इन साथियों को किनारे लगाने की कोशिश हो रही है. हाल ही में हुए बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (BTC) चुनाव के दौरान बीजेपी ने कट्टरपंथी यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (UPPL) के साथ नया गठबंधन बनाया और बीपीएफ को किनारे कर दिया.
विधानसभा चुनाव 2021 का सेमीफाइनल कहे जाने वाले बीटीसी चुनाव में कुल 40 सीटों में से बीजेपी को 9 सीटें, UPPL को 12 और GSP को एक सीट मिली. जिसके बाद तीनों दलों ने इन चुनावों में बहुमत हासिल किया. इससे पहले बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद पर राज करने वाली पार्टी बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (BPF) इस बार भी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और 17 सीटों पर जीत हासिल की. लेकिन बहुमत तक नहीं पहुंच पाई.
अब कांग्रेस की अगर बात करें तो उसने अगले विधानसभा चुनावों के लिए तैयारी शुरू कर दी है. पार्टी ने 2021 चुनावों के लिए दो लेफ्ट दलों से हाथ मिलाया है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रिपुन बोरा ने हाल ही में ऐलान किया था कि सीपीआई और सीपीआई(एमएल) कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे. इसके बाद कांग्रेस दावा कर रही है कि वो बीजेपी को कड़ी टक्कर देगी. वहीं अगर कांटे की टक्कर होती है तो बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ भी आने वाले चुनावों में अहम भूमिका निभा सकती है.
अब केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी की बात करते हैं, जहां इसी साल जून या उसके आखिरी तक चुनाव हो सकते हैं. यहां पर कांग्रेस की सरकार है. यहां सिर्फ 30 विधानसभा सीटें हैं. जिनमें कांग्रेस का दबदबा कायम है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 30 में से 15 सीटें अपने नाम की थीं. कांग्रेस के साथ डीएमके ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था. जिसे 2 सीटों पर जीत हासिल हुई. लेकिन बीजेपी खाता तक नहीं खोल पाई.
राज्य में बीजेपी की कोशिश इस बार खाता खोलने की होगी. वहीं कांग्रेस और डीएमके गठबंधन एक बार फिर बहुमत का आंकड़ा छूना चाहेगा. लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती एन रंगासामी की एआईएनआरसी है, जिसने 2011 चुनाव में कांग्रेस को करारी मात दी थी. रंगासामी ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई थी. अब वो एक बार फिर कांग्रेस को झटका दे सकते हैं.
अब आपने जाना कि नए साल में देश का चुनावी माहौल कैसा रहेगा. राज्यों में चुनाव होंगे और सरकारें बनेंगीं. लेकिन इस साल के अंत में अगले चुनावों की तैयारियां भी जोरों पर होंगीं. सबसे बड़ा चुनाव 2022 में उत्तर प्रदेश में होने जा रहा है. जिसके लिए अभी से सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है. 2021 के अंत तक यहां सियासी घमासान शुरू हो जाएगा. वहीं इसके बाद दूसरा बड़ा राज्य पंजाब है. जहां 2022 में ही चुनाव होंगे. इनके अलावा उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा चुनाव के लिए भी बिसात 2021 के अंत में ही बिछनी शुरू होगी.
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Published: 30 Dec 2020,08:49 PM IST