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मध्यप्रदेश ( Madhya Pradesh) की राजनीति में आने वाले दिन दिलचस्प होने वाले हैं, एक तरफ राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) की प्रदेश में एंट्री, तो दूसरी तरफ इस यात्रा के माध्यम से प्रदेश के लोगों तक अपनी पहुंच दुरुस्त करने की चुनौती भी है. हालांकि सोशल मीडिया पर तो यात्रा को अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है लेकिन मध्यप्रदेश में क्या माहौल रहता है ये देखने वाली बात होगी. लेकिन ऐसा क्यों?
मध्य प्रदेश के किस्सों में आज पढ़िए धरातल पर प्रदेश में इस यात्रा के क्या मायने हैं और कांग्रेस के लिए क्या चुनौतियां हैं?
2018 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर सत्ता पाने और फिर महज 15 महीने में ही विधायकों के दल बदलने के चलते सरकार के गिर जाने वाली कांग्रेस के सामने जनता के मन में विश्वास सुदृढ़ करने की सबसे बड़ी चुनौती है, लेकिन ये अकेली समस्या नही है.
चुनौती नंबर 1 - प्रदेश में यात्रा का केंद्र है मालवा निमाड़ का क्षेत्र, और यह क्षेत्र ध्रुवीकरण (polarisation) के दंश से जूझता रहा है. इसी ध्रुवीकरण के माहौल में संघ (RSS) की इस पूरे क्षेत्र में पकड़ है. प्रदेश भर में ध्रुवीकरण की लहरें पहुंचती हैं तो पैदा यहीं होती है. ऐसे में इस क्षेत्र में यात्रा से कांग्रेस संघ की पैठ के बराबर पहुंचने का प्रयास करेगी.
चुनौती नंबर 2 - प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने से और लगभग दो दर्जन विधायकों के दल बदलने के बाद निचले कार्यकर्ताओं में निराशा है. लगभग 20 सालों से राजनीतिक जलालत और मारामारी के दिनों से लड़ते लड़ते कार्यकर्ताओं के हिम्मत की भी भारी परीक्षा चल रही है. ऐसे में यात्रा के दौरान जमीनी कार्यकर्ताओं को साधने का भी प्रयास है और चुनौती भी.
चुनौती नंबर 3 - क्या ध्रुवीकरण को खतम करने की मंशा है या सॉफ्ट हिंदुत्व का रास्ता अपनाएंगे?
यात्रा के रूट में हाल ही में कुछ बदलाव की चर्चाएं भी जोरों पर हैं. उज्जैन में बाबा महाकाल के दर्शन, महू में अंबेडकर के जन्मस्थली के दर्शन नर्मदा नदी में स्नान के कार्यक्रम चीख चीखकर इशारा कर रहे हैं कि प्रदेश में कांग्रेस ध्रुवीकरण के माहौल के बीच सॉफ्ट हिंदुत्व की रेखा पर चलते हुए आगे बढ़ेगी. अब चुनौती ये रहेगी कि ऐसे में बाकी लोगों को साथ लाने में कितना सक्षम होगी? क्योंकि AIMIM और AAP की भी तैयारी जोरों पर है और दोनों की मेहनत भाजपा से ज्यादा कांग्रेस के लिए ज्यादा घातक हो सकती है.
चुनौती नंबर 4 - ये चुनौती यात्रा के बाद शायद ज्यादा मुखर होकर निकले लेकिन यात्रा से विंध्य, महाकौशल, और बुंदेलखंड जैसे हिस्सों का नदारद होना भी एक समस्या बन सकती है. आपको बता दें कि विंध्य, बुंदेलखंड में कांग्रेस ने 2018 चुनावों में कुछ खास प्रदर्शन नही किया था और 2023 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस यहां बेहतर प्रदर्शन करना चाहेगी.
प्रदेश की राजनीति के जानकारों की मानें तो कांग्रेस ने इन क्षेत्रों को यात्रा में शामिल न करने का रिस्क इस बात पर उठाया है कि यहां संघ की पकड़ उतनी पुरजोर नही है. भाजपा को जीत भले ही मिली हो लेकिन संघ की पहुंच मालवा निमाड़ अंचल के मुकाबले यहां बहुत कम है और यहां राजनीति अभी भी जातीय ढांचे पर ज्यादा टिकी हुई है.
चुनौती नंबर 5 - मध्यप्रदेश में लगभग 20 सालों से एक ही दल की सरकार है, भाजपा के पास इस कार्यकाल में रिपोर्ट कार्ड पर दिखाने के लिए बहुत कुछ है ऐसा नहीं लगता है. बेरोजगारी, सरकार पर बढ़ता कर्ज, ध्रुवीकरण के मामलों में बढ़ोत्तरी, स्वास्थ व्यवस्थाओं का बुरा हाल समेत कई पहलू हाल के कुछ वर्षों में उजागर हुए हैं लेकिन क्या राहुल गांधी की यात्रा और कांग्रेस वोटरों को इन मामलों पर एक्शन लेने के लिए मना पाएंगे? देखना दिलचस्प होगा.
इसके अलावा, आंतरिक बंटवारा, अलग अलग धड़ों में बंटी प्रदेश की राजनीति समेत जिसका ताजा उदाहरण है कांग्रेस से राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह का बयान जिसमे उन्होंने कहा है कि यात्रा से जुड़े किसी हिस्से में उनका फोटो ना उपयोग किया जाए, सूत्रों की मानें तो इसके भी दो कारण निकल रहे हैं.
पहला तो यह की दिग्विजय बैकग्राउंड में रहना चाहते हैं क्योंकि ग्राउंड पर उनकी इमेज कई बार भाजपा को फायदा पहुंचा देती है. खास तौर पर मालवा निमाड़ का एरिया काफी पोलराइज्ड है और ऐसे में यात्रा की सफलता के लिए को बेहतर लगे वो कर रहे हैं.
दूसरा लेकिन अहम कारण सूत्रों के मुताबिक यह है कि यात्रा जहां से निकलेगी वह अरुण यादव का क्षेत्र माना जाता है और उनके करीबी कार्यकर्ताओं ने पहले भी दिग्विजय की फोटो को लेकर विरोध किया था.
ऐसे ही आंतरिक झगड़ों से जूझ रही मध्य प्रदेश कांग्रेस को इस यात्रा से क्या फायदा मिलेगा और कांग्रेस इन चुनौतियों से निपटने के क्या तरकीब निकालेगी यह भी देखना महत्वपूर्ण होगा.
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