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Rahul Gandhi Disqualified: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की एक बेंच ने 2016 में (तत्कालीन) तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता से कहा था, "यदि आप एक मशहूर शख्सियत हैं, तो आपको आलोचना की आदत डालनी होगी." कोर्ट ने यह डीएमडीके नेता विजयकांत के खिलाफ जयललिता द्वारा दायर मानहानि के मामले में सुनवाई के दौरान कहा था.
कोर्ट ने इस टिप्पणी से एक महीने पहले, मुख्यमंत्री से कहा था: "यह (मानहानि कानून) बोलने की आजादी पर अंकुश लगाने के बराबर है. आलोचना के लिए सहिष्णुता होनी चाहिए. मानहानि कानून को राजनीतिक काउंटर हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है."
लेकिन 2023 में सूरत की एक अदालत बीजेपी के पूर्णेश मोदी द्वारा दायर एक आपराधिक मानहानि के मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को दोषी ठहराती है और उन्हें लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है.
दरअसल राहुल गांधी ने 2019 में कहा था, “सारे चोरों के नाम में मोदी ही क्यों होता है, चाहे वह नीरव मोदी हो, ललित मोदी या फिर नरेंद्र मोदी?” इसी आधार पर राहुल गांधी को मानहानि मामले में दोषी ठहराया गया और आईपीसी की धारा 499 (मानहानि) और 500 (मानहानि के लिए सजा) के तहत दो साल की कैद और 15,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया.
ध्यान रहे, इस अपराध के लिए अधिकतम दो साल की कैद की सजा ही दी जा सकती है.
कोर्ट के फैसले के ठीक एक दिन बाद, लोकसभा सचिवालय यह सूचित करता है कि राहुल गांधी को संसद के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया है, संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (ई) के तहत जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 के तहत कार्रवाई हुई है.
उन्होंने ये भी सवाल खड़ा किया कि, किस आधार पर उन्हें अधिकतम सजा दी गई है. राहुल गांधी को दो साल से कम की सजा भी मिल सकती थी जिससे कि वे अपनी सदस्यता गंवाने से बच जाते.
लेकिन राहुल गांधी को अयोग्य क्यों घोषित किया गया है? अगर इस फैसले पर ऊपरी अदालत द्वारा रोक लगने से पहले चुनाव आयोग उनकी सीट (वायनाड) पर उपचुनाव करवाता है तो क्या होगा? और राहुल गांधी अब क्या कर सकते हैं?
अनुच्छेद 102 (1) (ई) के अनुसार, किसी भी सदन के सदस्य को संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून (इस मामले में, जनप्रतिनिधित्व कानून) के तहत अयोग्य ठहराया जा सकता है.
जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत, अगर किसी भी सदन के सदस्य को दो साल या इससे ज्यादा की सजा मिलती है तो उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाती है.
सजा की तारीख के दिन से ही सदस्य को अयोग्य कर दिया जाएगा और उसकी रिहाई के बाद छह साल तक अग्योता जारी रहेगी.
2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले (लोक प्रहरी बनाम भारत निर्वाचन आयोग) के अनुसार, "अगर मानहानि मामले पर कोई ऊपरी अदालत रोक लगा दे तो राहुल गांधी की अयोग्यता वापस हो सकती है."
इसका मतलब यह है कि, मानहानि मामले में सजा पर रोक लगती है तो राहुल गांधी अयोग्य नहीं माने जाएंगे. लेकिन चीजें इतनी आसान भी नहीं हैं.
सिंह ने लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल के मामले से यह मामला स्पष्ट किया. उन्होंने लिखा कि, लोकसभा अध्यक्ष ने फैजल की सजा के दो दिन बाद 13 जनवरी को अयोग्य घोषित किया था और चुनाव आयोग ने एक प्रेस नोट जारी कर घोषणा की थी कि 18 जनवरी को फैजल के निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव कराए जाएंगे.
वहीं 25 जनवरी को केरल उच्च न्यायालय ने फैजल की सजा पर रोक लगाई - लेकिन यह फैसला चुनाव आयोग द्वारा पहले ही उनकी सीट को खाली घोषित किए जाने के बाद आया था. हालांकि लक्षद्वीप (Lakshadweep) के एनसीपी नेता मोहम्मद फैजल (Mohammad Faizal) की लोकसभा सदस्यता फिर बहाल कर दी गई है. लोकसभा सचिवालय ने एक अधिसूचना जारी की है.
एक और मामले में, जब समाजवादी पार्टी के आजम खान ने अपनी अयोग्यता के बाद उपचुनाव की घोषणा करने वाले चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी थी, तब यह तर्क दिया गया था कि अगर खान की सजा पर रोक लग भी गई हो तो भी वह सदन के सदस्य नहीं रह पाएंगे. लेकिन वे चुनाव लड़ने के योग्य थे.
जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उपचुनावों को 24 घंटे के लिए टाल दिया था, ताकि वह अधिवक्ता पारस नाथ सिंह के अनुसार अपनी सजा पर रोक लगाने का प्रयास कर सकें. इसके अलावा, हम यह निश्चित रूप से नहीं जानते हैं कि चीजें कैसे आगे बढ़ती अगर आजम खान की साजा पर वास्तव में रोक लगा दी जाती, लेकिन अदालत ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था.
द क्विंट से बातचीत में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन लोकुर ने कहा:
“मान लीजिए कि चुनाव आयोग राहुल गांधी की सीट पर उपचुनाव कराता है और फिर चुनाव के नतीजे भी घोषित कर देता है तो जीतने वाले शख्स की सदस्यता नहीं छिनी जा सकती फिर भले ही राहुल गांधी की सजा पर उपचुनाव के नतीजे आने के बाद रोक लग जाए.
पूर्व जस्टिस लोकुर ने कहा, "ऐसी स्थिति में क्या होता है? कानून में एक गैप है, और गैप को भरना होगा. ऐसा लगता है कि किसी ने अभी तक इसका उत्तर नहीं दिया है."
जैसा कि पारस नाथ सिंह ने लिली थॉमस बनाम भारत संघ (जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि दो या दो से अधिक साल की सजा होने पर सदन से अयोग्य माना जाएगा) केस में वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन ने तर्क दिया था कि दोषी विधायक/सांसद को ऊपरी अदालत में जाने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए.
फरासत ने आगे समझाया, "ऐसा इसलिए क्योंकि यदि सजा पर रोक लगा दी जाती है, तो राहुल गांधी के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध हट जाएगा; और अगर अयोग्यता पर रोक लगा दी जाती है तो वह सांसद के रूप में अपनी सीट पर वापस आ सकते हैं."
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