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राजस्थान (Rajasthan) में राइट टू हेल्थ (Right to health) बिल पर बवाल मच गया है. सोमवार, 20 मार्च को इस बिल का विरोध कर रहे डॉक्टर्स की पुलिस से झड़प हो गई. पुलिस ने विधानसभा की तरफ बढ़ रहे डाक्टर्स को रोकने के लिए लाठीचार्ज किया. इसके चलते कई चिकित्सक और मेडिकल स्टॉफ घायल हो गए.
पुलिस के लाठीचार्ज के बाद निजी अस्पतालों के अलावा सरकारी मेडिकल कॉलेज में कार्यरत रजिडेंट डॉक्टर्स भी कार्य बहिष्कार पर चले गए हैं. वहीं अरिस्दा (राजस्थान में सरकारी डॉक्टर्स का संघ) ने भी 2 घंटे पेन डाउन हड़ताल करने घोषणा की. प्रदेश भर के निजी अस्पतालों में डॉक्टर्स ने इमरजेंसी से लेकर मरीजों के इलाज तक हर तरह के काम का बहिष्कार किया. इसके साथ चिकित्सक संगठनों ने जयपुर में धरना प्रदर्शन कर रैली निकाली.
सोमवार को जयपुर मेडिकल एसोसिएशन परिसर में डॉक्टर्स इकट्ठा हुए. यहां से सैकड़ों की संख्या में अलग-अलग चिकित्सक संगठनों के बैनर तले डॉक्टर्स ने विधानसभा के लिए कूच किया. पुलिस ने डॉक्टर्स को स्टेच्यू सर्किल पर बेरिकेटिंग लगाकर रोकने का प्रयास किया, लेकिन वे रुके नहीं और बेरिकेटिंग को तोड़ने की कोशिश करने लगे. इसके बाद पुलिसकर्मियों से झड़प हो गई.
बिल का विरोध कर रहे डॉक्टर्स लाठीचार्ज की घटना के विरोध में सड़क पर डट गए. दोपहर बाद से ही स्टेच्यू सर्किल बैठ प्रदर्शनकारी डॉक्टर्स देर रात तक सड़क पर डटे रहे. शाम को चिकित्सकों ने कैंडल मार्च निकाला, जिसमें सभा कर कहा कि जब तक राइट टू हेल्थ बिल निरस्त नहीं हो जाता है, तब तक वह रातभर यहीं डटे रहेंगे. डॉक्टर्स गद्दे-तकिए लेकर रात को सर्किल पर ही जमे दिखाई दिए.
लाठीचार्ज के बाद जॉइंट एक्शन कमेटी के पांच सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल ने स्वास्थ्य मंत्री प्रसादी लाल मीणा से विधानसभा में मुलाकात की. हालांकि प्रतिनिधिमंडल और स्वास्थ्य मंत्री के बीच ये मुलाकात बनतीजा रही. इसके बाद प्रतिनिधिमंडल वापस सर्किल पर आकर बैठ गया. प्रतिनिधिमंडल में डॉ. विजय कपूर, डॉ. राकेश कालरा, डॉ. विजय पाल यादव, डॉ. कमल सैनी, डॉ. सुनील गर्सा शामिल थे. मामले को बढ़ता देख जयपुर पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव भी मौके पर पहुंचे.
दरअसल गहलोत सरकार राइट टू हेल्थ बिल के जरिए प्राइवेट अस्पतालों को भी मुफ्त इलाज के लिए बाध्य करना चाहती है. सरकार ने इसका ड्राफ्ट तैयार कर लिया और इसके पिछले विधानसभा सत्र में पेश भी कर चुकी है, लेकिन मेडिकल एसोसिएशन इसका विरोध कर रहे हैं.
इसके अलावा बिल में प्रावधान है कि गंभीर बीमारियों में अस्पताल अगक किसी मरीज को रेफर करता है तो एंबुलेंस भी मुहैया कराना होगा, लेकिन अस्पतालों का कहना है कि एंबुलेंस का खर्च कौन देगा ये स्पष्ट नहीं है. अगर सरकार देगी तो किसी तरह का प्रावधान स्पष्ट नहीं है.
एक प्रवाधान ये भी है कि निजी अस्पतालों में महंगे इलाज और मरीजों के अधिकारों की रक्षा को लेकर प्राधिकरण का गठन किया जाएगा. निजी अस्पतालों का कहना है कि इसमें ऐसे विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिए, जो प्राइवेट अस्पतालों की मजबूरियों को भी समझें.
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