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NDTV से इस्तीफे के बाद रवीश कुमार (Ravish Kumar Resigns NDTV) का पहला वीडियो सामने आया है. इस वीडियो में रवीश NDTV में बिताए अपने दिनों को याद कर रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने दर्शकों का भी आभार जताया है, जो इस यात्रा में उनके साथ थे. इसके साथ ही उन्होंने टीवी पत्रकारिता के बदलते स्वरूप पर भी चर्चा की है. वीडियो की शुरुआत में रवीश कहते हैं
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस देश में अलग-अलग नाम वाले अनेक चैनल हो गए हैं. मगर सब हैं तो गोदी मीडिया ही. उसका परिवेश, उसका इको सिस्टम पत्रकारिता का और माहौल, सब खत्म कर दिया गया है. मगर पत्रकारिता करने और कराने का दावा भी सब कर रहे हैं. खासकर वो भी कर रहे हैं जो उसी सत्ता का हिस्सा माने जाते हैं, उसी के रूप में देखे जाते हैं. जिसकी ताकत से हर दिन पत्रकारिता इस देश में कुचली जा रही है.
अगस्त 1996 में रवीश कुमार NDTV से औपचारिक रूप से अनुवादक के रूप में जुड़े थे. लेकिन इससे पहले वो कई महीनों तक NDTV में चिट्ठियां छांटने का काम किया करते थे. इसके बाद रवीश ने रिपोर्ट की जिम्मेदारी संभाली. फिर कारवां बढ़ता गया और वो NDTV में ग्रुप एडिटर बने. दर्शकों से मिलने वाले मैसेज और चिट्ठियों पर बात करते हुए रवीश कहते हैं,
इसके साथ ही रवीश कहते हैं कि जिन चिट्ठियों से NDTV में मेरी शुरुआत हुई उनका आना-जाना आज भी जारी है और आगे भी जारी रहेगा. लेकिन इतने सारे सुझावों, जवाबों, अपेक्षाओं, शिकायतों और डांट के बीच सोना, जागना और जीना मैं आपके हवाले करता चला गया. मैं खुद के पास तो रहा ही नहीं. इसके साथ ही रवीश कहते हैं,
रवीश ने अपने इस वीडियो में इशारों-इशारों में पीएम मोदी पर भी तंज कसा है. उन्होंने कहा कि जब भी मेरे बारे में मूल्यांकन करें, इस बात की सहानुभूति मुझसे न रखें कि मैं चिट्ठी छांटता था. मैं उनकी तरह नहीं हूं कि अचानक चाय बेचने की बात करने लग जाएं. उतर रहा हूं जहाज से, बात कर रहा हूं चाय बेचने की. सहानुभूति के लिए या अपने संघर्ष को महान बताने के लिए मैं ऐसा नहीं करना चाहता.
अपने दर्शकों को संबोधित करते हुए रवीश ने कहा कि, "आप वाकई में लाजवाब हैं. दर्शक ही मेरे नियमित संपादक हैं. निरंतर संपादक हैं आप दर्शक मेरे." इसके साथ ही उन्होंने कहा कि "आप दर्शकों के होने में ही किसी रवीश कुमार का होना है."
देश की जनता और दर्शकों को संबोधित करते हुए रवीश कुमार ने कहा कि "आपकी सक्रियता में ही भारत का लोकतंत्र धड़कता है. शाहीनबाग और किसान आंदोलन की जिद्द में मुझे सूरज की रौशनी दिखाई देती है." इसके साथ ही उन्होंने कहा,
उन्होंने आगे कहा कि, "अब जन का कोई मोल नहीं. मीडिया को खत्म कर विपक्ष और जनता को खत्म किया जा चुका है. ऐसा सही भी है. मगर यही शाश्वत नहीं है. एक ना एक दिन, जब लोग अपनी नफरतों से जर्जर हो जाएंगे, उनकी नफरतें उनकी शरीर से दरकने लग जाएंगी, तब उन्हें किसी नई जमीन की तलाश होगी. किसी पत्रकार की याद आएगी. नफरत की गुलामी से बाहर आने का रास्ता आप ही बनाएंगे. आपको ही बनाना है."
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