Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019राफेल पर रिलायंस,‘हमें डसॉल्ट से ठेका मिला,रक्षा मंत्रालय से नहीं’

राफेल पर रिलायंस,‘हमें डसॉल्ट से ठेका मिला,रक्षा मंत्रालय से नहीं’

रिलायंस ने उन आरोपों को खारिज किया जिनमें रक्षा मंत्रालय की ओर से कंपनी को लाभ दिए जाने की बात कही जा रही थी

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मुकेश अंबानी के छोटे भाई अनिल अंबानी (फोटो: Reuters)
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मुकेश अंबानी के छोटे भाई अनिल अंबानी (फोटो: Reuters)
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राफेल डील के कारण मुश्किलों का सामना कर रहे अनिल अंबानी ग्रुप ने अब अपनी सफाई पेश की है. पीटीआई से हुई बातचीत में रिलायंस ने कहा है कि उन्हें रक्षा मंत्रालय से किसी भी तरह का कांट्रेक्ट नहीं मिला और लगाए जा रहे आरोप गलत हैं, जिन्हें महज लोगों को बरगलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.

रिलायंस ग्रुप ने डील से जु़ड़े कई सवालों के जवाब दिए. इनमें अनुभव की कमी से लेकर HAL को डील के लिए नकारे जाने तक के सवाल शामिल थे.

ग्रुप का कहना है कि फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट ने रिलायंस को अपने विदेशी साझेदार के तौर पर चुना है. डील में ठेकेदार कंपनी के विदेशी साझेदारों को चुनने में रक्षा मंत्रालय की कोई भूमिका नहीं है.

HAL के सवाल पर बोला रिलायंस ग्रुप

रिलायंस डिफेंस लिमिटेड सीईओ राजेश धींगरा के मुताबिक,

सरकार से सरकार (फ्रांस से भारत) की हुई डील में सभी 36 हवाई जहाज ‘’उड़ने की स्थिति’’ (पूरी तरह रेडी) में पूरा कर दिए जाने थे. इसका मतलब है उनका निर्यात सिर्फ फ्रांस से होगा, जिसे डसॉल्ट ही करेगा. HAL या कोई और कंपनी उन्हें नहीं बना सकती क्योंकि भारत में कोई हवाई जहाज बनाया ही नहीं जाना है. HAL को 126 मल्टी रोल कॉम्बेट एयरक्रॉफ्ट प्रोग्राम के लिए आगे किया गया था. लेकिन प्रोग्राम पर अभी तक कोई कांट्रेक्ट ही नहीं हुआ. - राजेश धींगरा, सीईओ, रिलायंस डिफेंस लिमिटेड

पढ़ें ये भी: राहुल गांधी का आरोप- राफेल डील अब तक का सबसे बड़ा रक्षा घोटाला

राफेल डील पर आक्रामक है विपक्ष

राफेल डील पर प्रधानमंत्री की फ्रांस यात्रा के समय 2015 में सहमति बनी थी. विपक्ष खासकर कांग्रेस लगातार इस मुद्दे पर सरकार पर हमलावर है. कांग्रेस ने सवाल उठाया है कि कैसे राफेल विमानों की कीमत 540 करोड़ से बढ़कर 1600 करोड़ रुपये प्रति विमान हो गई है.

कांग्रेस का ये भी आरोप है कि इन विमानों को बनाने का ठेका सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को दिया जाना था. लेकिन इसे एक ऐसी कंपनी (रिलायंस डिफेंस लिमिटेड) को दे दिया गया, जिसे रक्षा क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं है.

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