Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019CAA: UP सरकार को लौटाना होगा वसूली के करोड़ों रुपए, SC के इस फैसले की वजह?

CAA: UP सरकार को लौटाना होगा वसूली के करोड़ों रुपए, SC के इस फैसले की वजह?

द क्विंट ने दो साल पहले ही बताया था कि यूपी सरकार का वसूली करना अवैध है.

वकाशा सचदेव
न्यूज
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<div class="paragraphs"><p>सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला</p></div>
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सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

फोटो- IANS

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यूपी सरकार को सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन (CAA Protest) करने वाले लोगों से की गई वसूली लौटाना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने वकील परवेज आरिफ टीटू की दायर याचिका के बाद ये फैसला लिया. हालांकि कोर्ट ने यूपी सरकार के नए कानून (उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की भरपाई अधिनियम, 2020) के तहत कार्रवाई की आजादी दी है. द क्विंट ने 2 साल पहले दिसंबर 2019 में ही बता दिया था कि योगी सरकार का CAA के खिलाफ विरोध करने वाले लोगों से वसूली करना गैर कानूनी है.

यूपी सरकार ने 274 नोटिस भेजे थे

दिसंबर 2019 में केंद्र के विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ प्रदर्शनकारियों को योगी आदित्यनाथ सरकार ने 274 नोटिस भेजे थे, जिसमें विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रदेश में सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान के लिए मुआवजे की मांग की गई थी.

जबकि यूपी सरकार ने उस समय दावा किया था कि ये वसूली नोटिस 2009 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले (साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट के बाद के आदेश) के मुताबिक थे. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसा नहीं था.

इस मामले में पहले हुए सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि अपने 2009 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान के मुआवजे का आदेश देने के लिए क्लेम ट्रिब्यूनल स्थापित करने की अनुमति दी थी, लेकिन इनका नेतृत्व ज्यूडिशियल ऑफिसर, रिटायर्ड या सिटिंग जजों के जरिए किया जाना था.

हालांकि, यूपी सरकार ने दिसंबर 2019 में भेजे गए 274 नोटिसों के नुकसान का आकलन करने वाले क्लेम ट्रिब्यूनल्स का नेतृत्व करने के लिए एडिशनल डिस्ट्रीक्ट मजिस्ट्रेट यानी प्रशासनिक सेवा अधिकारियों को नियुक्त किया था. कोर्ट ने कहा,

आप हमारे आदेशों को दरकिनार नहीं कर सकते. आप एडीएम की नियुक्ति कैसे कर सकते हैं, जब हमने कहा था कि यह ज्यूडिशियल ऑफिसर्स के जरिए किया जाना चाहिए? दिसंबर 2019 में जो भी कार्यवाही की गई वह इस कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के विपरीत थी.
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, 11 फरवरी
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वसूली करना शुरू से ही अवैध लग रहा था

25 दिसंबर 2019 को द क्विंट ने बताया था कि कैसे नोटिस सुप्रीम कोर्ट के 2009 के फैसले के मुताबिक नहीं थे.

क्लेम ट्रिब्यूनल में नॉन ज्यूडिशियल ऑफिसर के स्टेट के उपयोग के अलावा, यूपी सरकार के नोटिसों ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि मुआवजे के किसी भी आदेश की पुष्टि एक रिलवेंट हाईकोर्ट द्वारा क्लेम ट्रिब्यूनल से रिपोर्ट मिलने के बाद की जानी चाहिए.

यूपी सरकार ने अपने दावे का सपोर्ट करने के लिए 2011 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का उपयोग करने की भी मांग की, लेकिन जैसा कि उस समय द क्विंट में बताया गया था, यह आदेश राजनीतिक रूप से भड़काई गई हिंसा का रिफरेंस देता है.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा था कि हाईकोर्ट के आदेश का मतलब सुप्रीम कोर्ट के 2009 के फैसले का सप्लीमेंट्री होना था, और इसलिए इसका इस्तेमाल राज्य के कामों को सही ठहराने के लिए नहीं किया जा सकता था.

सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में ही कहा था कि लायबिलिटी तभी हो सकती है जब व्यक्ति के एक्शन और संपत्ति के नुकसान के बीच संबंध स्थापित हो जाए. एग्जीक्यूटिव ऑफिसर ने मुआवजे के नोटिस भेजने और फिर दावों की वैधता तय करने का मतलब था कि सरकार शिकायतकर्ता, प्रॉसिक्यूटर और निर्णायक बन गई थी.

जिन लोगों को ये नोटिस लाखों रुपए में भेजे गए थे, उनमें से कई गरीब रिक्शा चालक, फेरीवाले और दिहाड़ी मजदूर थे. कुछ की उम्र 90 साल से अधिक थी. एक व्यक्ति को नोटिस भेजा गया, जिसकी 6 साल पहले मौत हो चुकी थी.

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