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मोक्षदायिनी गंगा और नारायणी गंडक के संगम स्थल पर लगने वाले सोनपुर मेला (Sonpur Mela) की पहचान विश्व प्रसिद्ध पशु मेले के रूप में रही है. वर्तमान समय में बिहार का ये मेला अपनी पुरानी पहचान खो रहा है. सोनपुर मेले के विषय में कुछ सालों पहले कहा जाता था कि यहां सुई से लेकर हाथी तक आपको खरीदने को मिल जाता है. सोनपुर मेले में सरकारी कायदे-कानूनों की अत्यधिक दखलंदाजी के कारण अब सिर्फ मेला लगाने की परंपरा का निर्वाह किया जा रहा है.
इस साल सोनपुर मेले में घोड़े तो पहुंचे, लेकिन प्रतिवर्ष मेले में नजर आने हाथी नहीं दिखे. हालांकि मेले में कुछ प्रदेशों के घोड़े आए हैं. कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ होकर एक महीने तक चलने वाले इस मेले में पहले घोड़ा दौड़ और हाथी स्नान का आयोजन होता था, लेकिन इस साल अब तक इसका आयोजन भी नहीं हुआ. मेले का आयोजन ना होने से व्यापारी, किसान और स्थानीय नागरिक निराश हैं.
सोनपुर मेले का उद्घाटन बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने 25 नवंबर को किया था. मेले में इस साल कई आधुनिक झूले और वाटर फिश टनल लगाए गए है, जो लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए है.
हाजीपुर के निवासी और दानापुर जेएनएल कॉलेज के प्रोफेसर अजीत सिंह ने आईएएनएस से कहा कि पशु मेला के रूप में विश्व विख्यात सोनपुर मेला में पहले पर्यटकों के मुख्य आकर्षण का केंद्र हाथी और घोड़ा होते थे. विभिन्न प्रतिबंधों के कारण हाथी-घोड़े लाने पर रोक लगा दी गई है. अब मेले में अन्य राज्यों से आने वाले दुधारू पशुओं पर भी रोक लग गई है.
अजीत सिंह ने यह भी बताया कि पहले अफगानिस्तान के काबुल और मुल्तान से बेशकीमती अरबी घोड़े बिकने के लिए सोनपुर में आते थे. घोड़ा मंडी में घोड़ों की हर प्रजाति मिल जाती थी. घोड़े पालने के शौकीन खरीददार अन्य राज्यों से इन्हें खरीदने के लिए सोनपुर आते थे. उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब से घोड़े खरीदने के लिए लोग आते थे. लेकिन अब प्रदेश सरकार मेले के स्वरूप को ही छोटा करने में लगी है.
इतिहास के पन्नों को देखें तो यह प्रमाण मिलता है कि मुगल सम्राट अकबर के प्रधान सेनापति मान सिंह ने सोनपुर मेला में आकर शाही सेना के लिए हाथी एवं अस्त्र-शस्त्र की खरीदारी की थी. एक समय पर ये मेला जंगी हाथियों का सबसे बड़ा केंद्र था. मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य, मुगल सम्राट अकबर और 1857 में हुई क्रांति के नायक वीर कुंवर सिह ने भी सोनपुर मेले में हाथियों की खरीददारी की थी.
बहरहाल, ऐतिहासिक और पौराणिक सोनपुर मेले का इतिहास काफी पुराना है. आज जरूरत है इस धरोहर को बचाए रखने की जो मेला की संस्कृति को आने वाली पीढ़ियों को भी लोग बता सके.
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