Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Sonpur Mela: अपनी पहचान खोता जा रहा सोनपुर का मेला? नहीं दिखे हाथी, घोड़े भी हुए कम

Sonpur Mela: अपनी पहचान खोता जा रहा सोनपुर का मेला? नहीं दिखे हाथी, घोड़े भी हुए कम

Sonpur Mela History: बिहार के स्थानीय लोग सोनपुर मेले की पुरानी छवि लौटाने के लिए राष्ट्रीय मेले का दर्जे की मांग कर रहे हैं.

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<div class="paragraphs"><p> Sonpur Mela: अकबर-चंद्रगुप्त मौर्य भी खरीदते थे हाथी-घोड़े, सोनपुर मेले का गौरवपूर्ण इतिहास</p></div>
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Sonpur Mela: अकबर-चंद्रगुप्त मौर्य भी खरीदते थे हाथी-घोड़े, सोनपुर मेले का गौरवपूर्ण इतिहास

(फोटो: IANS)

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मोक्षदायिनी गंगा और नारायणी गंडक के संगम स्थल पर लगने वाले सोनपुर मेला (Sonpur Mela) की पहचान विश्व प्रसिद्ध पशु मेले के रूप में रही है. वर्तमान समय में बिहार का ये मेला अपनी पुरानी पहचान खो रहा है. सोनपुर मेले के विषय में कुछ सालों पहले कहा जाता था कि यहां सुई से लेकर हाथी तक आपको खरीदने को मिल जाता है. सोनपुर मेले में सरकारी कायदे-कानूनों की अत्यधिक दखलंदाजी के कारण अब सिर्फ मेला लगाने की परंपरा का निर्वाह किया जा रहा है.

बिहार के स्थानीय लोग इस ऐतिहासिक और पौराणिक सोनपुर मेले की पुरानी छवि लौटाने के लिए राष्ट्रीय मेले का दर्जे की मांग कर रहे हैं.

सोनपुर मेले में इस साल  बहुत कम संख्या में घोड़े नजर आए है.

(फोटो: IANS)

मेले में नहीं दिखे हाथी, घोड़ों की भी संख्या में भारी गिरावट

इस साल सोनपुर मेले में घोड़े तो पहुंचे, लेकिन प्रतिवर्ष मेले में नजर आने हाथी नहीं दिखे. हालांकि मेले में कुछ प्रदेशों के घोड़े आए हैं. कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ होकर एक महीने तक चलने वाले इस मेले में पहले घोड़ा दौड़ और हाथी स्नान का आयोजन होता था, लेकिन इस साल अब तक इसका आयोजन भी नहीं हुआ. मेले का आयोजन ना होने से व्यापारी, किसान और स्थानीय नागरिक निराश हैं.

सोनपुर मेले का उद्घाटन बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने 25 नवंबर को किया था. मेले में इस साल कई आधुनिक झूले और वाटर फिश टनल लगाए गए है, जो लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए है.

सोनपुर मेले का उद्घाटन बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने 25 नवंबर को किया था.

(फोटो: IANS)

बिहार सरकार के सहकारिता मंत्री सुरेंद्र यादव ने खुले मंच से भी स्वीकार किया था कि कुछ लोगों की सोच के कारण धीरे-धीरे सोनपुर मेले में गिरावट आ रही है. राजद के एक अन्य मंत्री ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि राजगीर में लगने वाले मलमास मेला में आने वाले लोगों को समस्या नहीं होती लेकिन यहां थियेटर और मौत का कुंआ जैसे सर्कस लेकर आने वाले लोगों को लम्बे इंतजार के बाद लाइसेंस दिया जाता है.
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हाजीपुर के निवासी और दानापुर जेएनएल कॉलेज के प्रोफेसर अजीत सिंह ने आईएएनएस से कहा कि पशु मेला के रूप में विश्व विख्यात सोनपुर मेला में पहले पर्यटकों के मुख्य आकर्षण का केंद्र हाथी और घोड़ा होते थे. विभिन्न प्रतिबंधों के कारण हाथी-घोड़े लाने पर रोक लगा दी गई है. अब मेले में अन्य राज्यों से आने वाले दुधारू पशुओं पर भी रोक लग गई है.

अजीत सिंह ने यह भी बताया कि पहले अफगानिस्तान के काबुल और मुल्तान से बेशकीमती अरबी घोड़े बिकने के लिए सोनपुर में आते थे. घोड़ा मंडी में घोड़ों की हर प्रजाति मिल जाती थी. घोड़े पालने के शौकीन खरीददार अन्य राज्यों से इन्हें खरीदने के लिए सोनपुर आते थे. उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब से घोड़े खरीदने के लिए लोग आते थे. लेकिन अब प्रदेश सरकार मेले के स्वरूप को ही छोटा करने में लगी है.

सोनपुर मेला

(फोटो: IANS)

सोनपुर मेले में चंद्रगुप्त मौर्य और अकबर ने भी खरीदे थे घोड़े

इतिहास के पन्नों को देखें तो यह प्रमाण मिलता है कि मुगल सम्राट अकबर के प्रधान सेनापति मान सिंह ने सोनपुर मेला में आकर शाही सेना के लिए हाथी एवं अस्त्र-शस्त्र की खरीदारी की थी. एक समय पर ये मेला जंगी हाथियों का सबसे बड़ा केंद्र था. मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य, मुगल सम्राट अकबर और 1857 में हुई क्रांति के नायक वीर कुंवर सिह ने भी सोनपुर मेले में हाथियों की खरीददारी की थी.

बहरहाल, ऐतिहासिक और पौराणिक सोनपुर मेले का इतिहास काफी पुराना है. आज जरूरत है इस धरोहर को बचाए रखने की जो मेला की संस्कृति को आने वाली पीढ़ियों को भी लोग बता सके.

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