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मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के चीफ जीतनराम मांझी और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के असदुद्दीन ओवैसी दो दिन बाद साथ में मंच साझा करने वाले हैं, इसे लेकर अब तरह-तरह के कयास लगने लगे हैं. बिहार की सियासत में यह बात अभी से हवा में तैरने लगी है कि विधानसभा चुनाव में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा गठबंधन कर मैदान में उतर सकते हैं.
इस मामले में हम के प्रवक्ता दानिश रिजवान कहते हैं कि "29 दिसंबर को दोनों नेता साथ में एक मंच से लोगों को संबोधित करेंगे, लेकिन आनेवाले चुनाव में क्या होगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी. चुनाव के वक्त देखा जाएगा.
फिलहाल कांग्रेस, आरजेडी सहित अन्य दलों के महागठबंधन में शामिल हम के बिहार चुनाव से पहले एआईएमआईएम के साथ आने से राज्य की राजनीति का प्रभावित होना तय माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि चुनाव मैदान में एआईएमआईएम के आने से मुस्लिम वोटों का बिखराव भी होगा, जिसका फायदा जेडूयू और बीजेपी गठबंधन को होगा.
आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने इस समीकरण से बीजेपी को लाभ पहुंचने की बात कही है. उन्होंने कहा, "मांझी जैसे दिग्गज नेता को यह समझना चाहिए कि बिहार के बाहर जहां भी ओवैसी ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं, उन्होंने केवल बीजेपी की मदद की है और अगर मांझी की यही मंशा है तो अच्छा होगा कि वह आरजेडी में वापस चले जाएं.
बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता निखिल आनंद ने ट्वीट कर आरोप लगाया है कि ओवैसी की विभाजनकारी राजनीति पूरी तरह से मुसलमानों के उकसावे पर आधारित है, जो बिहार में सफल नहीं होगी.
इस बीच, हम के एक नेता ने कहा है कि अगर जीतन राम मांझी के साथ ओवैसी का गठबंधन होता है तो दलित और मुस्लिम का एक नया समीकरण बन सकता है, उन्होंने कहा कि इससे जहां बिहार में दलितों और मुस्लिमों के विकास में मदद मिलेगी.
सूत्र बताते हैं कि मुस्लिम समुदाय को आरजेडी का वोटबैंक माना जाता है. ऐसे में बिहार में ओवैसी की पार्टी के मजबूत होने से निश्चित तौर पर आरजेडी को झटका लग सकता है.
उल्लेखनीय है कि हम और एआईएमआईएम दोनों बिहार में अपना जनाधार बढ़ाने में लगे हैं. ऐसे में इन दोनों दलों के साथ आने से बिहार में नए सियासी समीकरण से इंकार नहीं किया जा सकता है.
(IANS इनपुट)
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