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झारखंड विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद भारतीय जनता पार्टी में भले ही मायूसी छायी है, लेकिन पड़ोस में बिहार की सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) के नेताओं के चेहरों पर खुशी साफ दिख रही है. जेडीयू नेताओं के मुताबिक इस हार के बाद बीजेपी आलाकमान की आंखें खुलेंगी और सहयोगियों की बात भी सुनी जाएगी. दूसरी तरफ, इस जीत ने विपक्षी एकता को भी नया बल दिया है.
बिहार में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि यह चुनाव जेडीयू के मुखिया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. हालांकि, पार्टी के कई ‘फायरब्रैंड’ नेता इसे लेकर खुश नहीं हैं. लोकसभा चुनाव में सूबे की 40 में से 39 सीटों पर एनडीए के कब्जा जमाने के बाद वे अब कुमार के “पर” भी कतरना चाहते हैं. इसीलिए वे जेडीयू से अगर ज्यादा नहीं, कम से कम तो बराबरी के दर्जे की मांग कर रहे हैं. यह कुमार को मंजूर नहीं है.
पार्टी के एक दिग्गज नेता ने भगवा पार्टी के नेताओं के घमंड को बीजेपी की हार की वजह बताया. उन्होंने कहा, “लोकसभा चुनाव में जबरदस्त जीत के बाद बीजेपी नेता अपने-आप को अजेय समझने लगे थे. चाहे महाराष्ट्र हो या हरियाणा या फिर झारखंड, पार्टी नेता सहयोगियों से पूरी तरह से कटे हुए थे. बीजेपी अगर आजसू, जेडीयू औऱ लोक जनशक्ति पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ती, तो शायद झारखंड में नतीजे अलग होते.“
पार्टी के एक सांसद ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, “इस चुनाव में महागठबंधन ने ओबीसी आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 करने का वादा किया. साथ ही, आदिवासी आबादी के लिए सरना कोड को लागू करने की बात कही और हर परिवार को रोजगार का भी वादा किया. आदिवासी नेतृत्व को आगे किया. वहीं, बीजेपी ने क्या किया? राम मंदिर, नागरिकता कानून और एनआरसी जैसी बातों को तरजीह दी. एक आदिवासी राज्य में गैर आदिवासी के हाथों में कमान दे दी. यहां तो लड़ाई शुरू से पहले ही खत्म हो गई थी. लेकिन बिहार में ऐसा नहीं होगा.”
पड़ोस में जीत के बाद बिहार में अब विपक्षी दलों का उत्साह भी दोगुना हो गया है. सोमवार को जीत के ऐलान के साथ ही पटना में राबड़ी देवी के आवास पर आरजेडी कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाया. नारे भले ही तेजस्वी यादव के लिए लगाए जा रहे थे, लेकिन इस जीत के पीछे असल चेहरा लालू प्रसाद का बताया जा रहा है. पार्टी नेताओं के मुताबिक झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस को साथ लाने में रांची अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में सजा काट रहे लालू ने अहम भूमिका निभाई. उनकी कोशिशों की वजह से आईपीएस अधिकारी से नेता बने रामेश्वर ओरांव को झारखंड कांग्रेस की कमान मिली. कांग्रेस ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व को भी उन्हीं के प्रयास की वजह से स्वीकारा. साथ ही, महागठबंधन की चुनावी रणनीति में भी लालू प्रसाद ने बड़ी भूमिका निभाई.
इस जीत से आरजेडी को हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी जैसी छोटी सहयोगियों पर नकेल कसने में मदद मिलेगी, जो खुद के लिए अलग राह बनाने की जुगत में हैं. वहीं, पार्टी को चतरा जैसी अहम सीट भी मिली, जो बिहार के गया और औरंगाबाद जिलों से लगती है. यहां लंबे वक्त से बीजेपी का कब्जा रहा है. वहीं, झारखंड में कांग्रेस की 16 सीटों पर जीत से बिहार कांग्रेस की भी बाछें खिल गई हैं.
भले ही जेडीयू इस हार के लिए पूरी बीजेपी को जिम्मेदार बता रही है, लेकिन बीजेपी के नेता इसके लिए कतई तैयार नहीं है. बिहार बीजेपी ने इसे स्थानीय नेतृत्व की हार करार दे दिया है. साथ ही, उनके मुताबिक बिहार से लगते इलाकों मे भगवा पार्टी की जीत ने बीजेपी के लिए समर्थन को साफ दिखा दिया है. दरअसल, इस चुनाव में बिहार की सीमा पर स्थित 20 विधानसभा सीटों में से बीजेपी को 12 में जीत मिली है. इनमें राजमहल, गोड्डा, देवघर, कोडरमा, हजारीबाग और छत्तरपुर जैसी अहम सीटें शामिल हैं.
बीजेपी के एक सांसद ने कहा, “हर चुनाव अलग होता है और उसमें अलग फैक्टर काम करते हैं. अगर झारखंड के नतीजों से बिहार के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता, तो हमें पूरा भरोसा है कि हम अपने बूते पर बिहार में सरकार बना लेंगे. हमें वहां 33 फीसदी वोट मिले हैं. रही बात उन लोगों की जो कह रहे हैं कि उन्हें साथ लेकर हम सरकार बना सकते थे, तो ऐसे लोगों को नोटा से भी कम वोट मिले हैं. उनके बारे में क्या बात करनी.”
झारखंड में जेडीयू को कुल मतों में से महज 0.73 फीसदी वोट मिले, जबकि एलजेपी के खाते में 0.3 फीसदी वोट ही आए. वहीं, 1.36 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा बटन को दबाया.
(निहारिका पटना में जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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