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बिहार के बक्सर से दिल दहला देने वाली तस्वीरें और वीडियो सामने आ रही हैं. यहां के चौसा घाट पर गंगा में बहते हुए कई दर्जन लावारिस शव देखे गए हैं. ये खबर सामने आने के बाद से ही आसपास के इलाकों में हड़कंप है. जो वीडियो सामने आए हैं, उनमें नदी में बहते शव, उसके बीच कुत्ते घूमते देखे जा सकते हैं, कुछ शवों को जानवर नोच रहे हैं. मृतक इंसानों के पार्थिव शरीर के ऐसे अपमान को देखकर स्थानीय प्रशासन भी सकते में हैं. प्रशासन की तरफ से 30-40 शव मिलने की बात की पुष्टि की गई है.
बक्सर के जिलाधिकारी अमन समीर ने बताया कि इस घटना के जांच के लिए बक्सर के अनुमंडल पदाधिकारी और अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी को संबंधित क्षेत्र में भेजा गया था. उन्होंने बताया कि जांच के क्रम में यह बात सामने आई है कि गंगा नदी में पाए गए शव तीन से चार दिन पुराने हैं, इस कारण स्पष्ट है कि शव बक्सर जिले के नही हैं. जांच कर लौटे अनुमंडल पदाधिकारी के. के. उपाध्याय ने ग्रामीणों के हवाले से बताया कि शव स्थानीय नहीं हैं, बल्कि एक-दो दिन से गंगा नदी में बहकर अन्य जगहों से आए हैं. उन्होंने कहा कि ये शव गंगा नदी में सीमावर्ती राज्य से बहकर आए हैं.
इस मामले में जिलाधिकारी ने बताया कि सीमावर्ती जिलों के जिलाधिकारियों से इस मामले में बातचीत भी की गई है तथा भविष्य में ऐसी घटना को रोकने के लिए चौकसी करने का निर्देश दिया गया है. उन्होंने कहा कि नौका पर इस क्षेत्र में गश्ती की जाएगी.
पुलिस के अधिकारी ने बताया कि बरामद सभी शवों का पोस्टमार्टम कराया जाएगा. सरकार के दिशा निर्देश के बाद बक्सर जिले में कोविड-19 संक्रमण से संक्रमित मृत व्यक्तियों के अंतिम संस्कार के लिए निशुल्क व्यवस्था की गई है.
ये शव कोरोना से संक्रमित लोगों के हैं या नहीं, कोई भी इस बात की पुष्टि नहीं कर रहा है. न ही ये संभव दिखता है.
न्यूज एजेंसी पीटीआई से बातचीत में चौसा के बीडीओ अशोक कुमार कहते हैं कि कई यूपी के जिले इस इलाके से लगते हैं और गंगा में इन शवों को डाला गया, कारण क्या है ये नहीं बताया जा सकता. हम ये भी पुष्टि नहीं कर सकते कि कोविड-19 से मरने वालों के ये शव हैं या नहीं. लेकिन हम दाह संस्कार करते वक्त हर सावधानी बरतेंगे और सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में बताया गया है कि कई स्थानीय लोग ये भी दावा कर रहे हैं कि बक्सर में भी कई ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण मौतें हुईं लेकिन प्रशासन इसे नकार रहा है. ये स्थानीय घाटों पर लकड़ी और दूसरे चीजों की कमी और वहां पर पैसों की उगाही का भी दावा करते हैं.
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