Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019States Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019दिल्ली के रोहिंग्या मुसलमानों के जख्म पर नमक बनकर आए CAA प्रदर्शन

दिल्ली के रोहिंग्या मुसलमानों के जख्म पर नमक बनकर आए CAA प्रदर्शन

नागरिकता कानून को लेकर हो रहे प्रदर्शन के बीच रोहिंगया रेफ्यूजी का ये समुदाय अपने आप को फंसा हुआ महसूस कर रहे है

अश्विनी शुक्ला
राज्य
Published:
कालिंदी कुंज स्थित रोहिंग्या कैंप में खेलते बच्चे  
i
कालिंदी कुंज स्थित रोहिंग्या कैंप में खेलते बच्चे  
(फोटो: अश्विनी शुक्ला/ द क्विंट) 

advertisement

साउथ दिल्ली के झुग्गी में रहने वाले फैजुल कलाम के पास पिछले 2 महीनों से कोई काम नहीं हैं. रोहिंग्या रेफ्यूजी फैजुल का एक बच्चा बीमार है, इलाज के लिए पैसे की बात ही छोड़िए, परिवार का पेट पालना भी मुश्किल हो रहा है.

“20 नवंबर 2019 को मेरा तीसरा बच्चा हुआ. मैंने जो भी कमाया था वो सब लगा दिया इलाज में. अब तो राशन का भी पैसा नहीं बचा है. क्या करें कुछ समझ नहीं आ रहा है. मैं इस हालात में मजबूर हूं कि बस शर्म के चलते भीख नहीं मांग रहा नही तो वो भी करता.”
फैजुल कलाम
कैंप में सब्जी बेचता एक शख्स (फोटो: अश्विनी शुक्ला/ द क्विंट) 

कालिंदी कुंज के पास इस झुग्गी में रोहिंग्या मुसलमानों के 65 परिवार रहते हैं. बांस, तिरपाल से बनी इस अस्थाई झुग्गी में 250 से ज्यादा लोगों की आबादी है और ज्यादातर या तो कबाड़ी का काम करते हैं या फिर वो दिहाड़ी मजदूर हैं. बीते कुछ दिनों से उनके लिए ये काम भी मुश्किल हो गया है. हालात ये है की ज्यादातर लोगों के पास राशन तक के पैसे नहीं है.

फैजुल बताते हैं कि नागरिकता कानून के खिलाफ चल रहे प्रदर्शनों के बाद उनके हालात और भी खराब हुए हैं. UNHRC दफ्तर के चक्कर लगाकर भी थक गए हैं, मगर कोई मदद नहीं मिल रही है.

रिक्शा चलाने का काम था, सब ठप पड़ा है, 13 दिसंबर के बाद हमारे पास कोई काम नहीं है.
फैजुल कलाम
UNHRC ID कार्ड दिखाते फैजुल कलाम (फोटो: अश्विनी शुक्ला/ द क्विंट) 
प्रदर्शनों के बीच रोहिंग्या मुसलमानों के ये परिवार अपनी झुग्गियों तक ही सीमित रह गए हैं, फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं. इस कैंप से महज 2 किलोमीटर की दूरी पर शाहीन बाग में पिछले कुछ महीनों से धरना प्रदर्शन चल रहा है.
अपने कैंप में घूमती एक बच्ची  (फोटो: अश्विनी शुक्ला/ द क्विंट) 

कैंप में रहने वाले एक रोहिंग्या ने दावा किया कि उनके खिलाफ धमकी भरे वीडियो सोशल मीडिया पर चलाया जा रहा है, जिसमें कहा जा रहा है की वो CAA प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे हैं. इस पर वहां मौजूद एक शख्स कहते हैं,

“जब हमारे पास खाने के पैसे नहीं है तो हम प्रोटेस्ट कैसे करेंगे.”

हाल ये है कि जब से दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में प्रदर्शन शुरू हुए हैं, इन झुग्गियों के लोगों ने कमोबेश बाहर जाना छोड़ दिया. यहां के लोग कहते हैं कि बाहर निकलने में डर लगता है, अगर कोई बाहर जाता भी है तो शाम से पहले वापस आ जाता है.

(फोटो: अश्विनी शुक्ला/ द क्विंट) 

उन्होंने कहा सरकार सिर्फ रोहिंग्या मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि दूसरे इंडियन के लिए भी ऐसी ही भाषा बोलते है जो उनके विचारधारा के खिलाफ है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

सब कुछ जलने के बाद...

कैंप जलने के बाद की तस्वीर  (फोटो : PTI)

बता दें कि म्यांमार के रखाइन में लंबी यातना झेल कर साल 2012 में ये लोग इन झुग्गियों में आए हैं. इससे पहले कालिंदी कुंज में ही ये लोग जहां रहते थे वहां साल 2018 में इनके कैंप में आग लग गयी थी जिसमें इनका सब कुछ जल कर राख हो गया था. इसके बाद से ये रोहिंग्या मुसलमान इस इलाके में बसे हैं. अब तक इस बात का पता नहीं चल सका है कि ये आग खुद लगी थी या किसी ने लगाई थी. हालांकि, इस कैंप में रहने वाले ज्यादातर लोग मानते है कि इनके कैंप में जानबूझकर आग लगाई गयी थी.

अब करीब 2 साल बाद इन्हें डर है कि कहीं ये अपना दूसरा अशियाना भी न खो दें.

“हम में से कुछ लोग रात में कैम्प की रखवाली करते है. जब ये प्रोटेस शुरू हुआ तब 8, 9 दिन तक कैम्प में कोई सोया नहीं. सबने रात भर जागकर कैम्प को प्रोटेक्ट किया.”

नेताओं के ऐसे बयान, इन्हें और डराते हैं...

इन झुग्गियों में रहने वालों के डर कुछ नेता अपनी बयानबाजी से ही बढ़ाते नजर आते हैं. हाल ही में देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि ‘अवैध घुसपैठिये दीमक की तरह होते हैं. वो खाना खा रहे हैं जो कि हमारे गरीबों को जाना चाहिए और वे हमारी नौकरियां भी ले रहे हैं. ये हमारे देश में विस्फोट कराते हैं जिसमें बहुत सारे लोग मारे जाते हैं.’

ऐसे बयान पर दिल्ली यूनिवर्सिटी में हिस्ट्री के प्रोफेसर फरहत हसन कहते हैं कि दुनिया के किसी हिस्से में कोई समाज या कोई व्यक्ति ने इतनी यातना नहीं झेली है, और ऐसे समुदाय को दीमक कहना या घुसपैठिये कहना उदासीनता और असंवेदनशीलता है.

दिल्ली के रोहिग्या कैंप में एक बच्ची (फोटो: अश्विनी शुक्ला/ द क्विंट) 

हालांकि, घुसपैठियों को देश से बाहर करना बीजेपी के मेनिफेस्टो का हिस्सा है, पर कैंप की एक रोहिंग्या महिला ने कहा कि, " म्यांमार वापस जाने के बजाय मैं यहीं मरना पसंद करूंगी."

दशकों पुरानी है रोहिंग्या मुसलमानों के उत्पीड़न की समस्या

रोहिंग्या मुसलमानों के उत्पीड़न की समस्या दशकों पुरानी है. मगर 2017 में म्यांमार की सेना ने रखाइन प्रान्त में बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान शुरू किया. जिसे यूनाइटेड नेशन ने टेक्स्टबुक एग्जाम्पल ऑफ जेनोसाइड करार दिया था .

राशन लेते रोहिंग्या शरणार्थी(फोटो: AP)

UNHRC के मुताबिक, भारत में रोहिंग्या मुसलमानों की रजिस्टर्ड संख्या 18 हजार से भी अधिक है लेकिन कुछ दूसरे संगठनों के आंकड़ों से पता चलता है कि यह संख्या लगभग 40 हजार के करीब है जो अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं.

रोहिंग्या मुसलमान मुख्य रूप से भारत के जम्मू, हरियाणा, हैदराबाद, दिल्ली, राजस्थान के आस-पास के इलाकों में रहते हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT