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"छोटी-छोटी गलतियां बड़ी जनहानि का कारण बन रही हैं..." छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुए बड़े नक्सली हमले के बाद द क्विंट से बातचीच में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा. बता दें कि बुधवार, 26 अप्रैल को नक्सली हमले में 10 जवानों और एक सिविलियन ड्राइवर की मौत हो गई थी.
अधिकारी ने आगे कहा, "किसी समस्या के सामने केवल अपनी आंखें बंद कर लेने से वह दूर नहीं हो जाती है या इससे समस्या कम नहीं होती है."
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (CM Bhupesh Baghel) ने गुरुवार, 27 अप्रैल को दंतेवाड़ा में शहीदों को श्रद्धांजलि दी. वहीं अधिकारियों ने हमले को लेकर कई सवाल उठाए हैं, कैसे इस हमले को अंजाम दिया गया, और क्या वो संभावित गलत कदम थे जिसकी वजह से हमला हुआ.
क्या जंगलों से सैनिकों की आवाजाही के दौरान मानक संचालन प्रक्रियाओं (SOP) का पालन किया गया था?
वे कौन-सी ऑपरेशनल विफलताएं थीं जिसके परिणामस्वरूप एक सिविलियन ड्राइवर सहित 11 लोगों की जान चली गई?
माओवादी दो सुरक्षा कैंप के बीच एक IED विस्फोट की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में कैसे सक्षम थे?
सुरक्षा बलों ने इस बार ऐसा क्या अलग किया जिससे माओवादियों को हमला करने का मौका मिल गया?
अगर माओवादियों के खिलाफ लड़ाई वास्तव में "अपने अंतिम चरण में" है, तो वो अपने शिविरों के इतने करीब सैनिकों पर कैसे हमला कर सकते हैं?
द क्विंट से बातचीत में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि माओवादी विरोधी अभियानों की संख्या में कमी और सुरक्षा बलों को उनके शिविरों या जिला मुख्यालयों तक सीमित करने से माओवादियों का मनोबल बढ़ा है.
26 अप्रैल को हुए हमले के बाद बस्तर के पुलिस महानिरीक्षक पी सुंदरराज ने - इस सवाल का जवाब देते हुए कि क्या SOPs का पालन किया गया था और DRG कर्मियों के काफिले को वापस लाने से पहले रोड ओपनिंग पार्टी सक्रिय हो गई थी - कहा कि वो "सभी कड़ी को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं."
अधिकारियों को चिंतित करने वाला एक और तथ्य यह है कि हमले की जगह सुरक्षा बलों के दो शिविरों के बीच स्थित है - एक अरनपुर में और दूसरा समेली में. इसके अलावा, अरनपुर पुलिस स्टेशन लगभग 700 मीटर की दूरी पर है.
आईजी ने यह भी खुलासा किया कि IED को 150-200 मीटर की दूरी से ट्रिगर किया गया था, और माओवादी अरनपुर की ओर से आने वाली सड़क के बाईं तरफ छिपे हुए थे.
सूत्रों ने द क्विंट को बताया कि अगर सुरक्षा बलों को इलाके में अपनी पकड़ बनाने, तलाशी और जब्ती जैसे कामों के लिए बाहर भेजा जाता तो माओवादियों को सुरक्षा शिविरों के इतने करीब हमला करने का मौका नहीं मिलता.
एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने द क्विंट को बताया:
एक अन्य बात जो सवालों के घेरे में है, वो है- DRG कर्मियों को लाने-ले जाने के लिए निजी वाहनों के इस्तेमाल का, जो अक्सर मोटरसाइकिल का उपयोग करते हैं और छोटे समूहों में यात्रा करते हैं.
द क्विंट से बात करते हुए छत्तीसगढ़ के पूर्व विशेष पुलिस महानिदेशक आरके विज ने कहा कि डीआरजी कर्मियों को अधिक सावधान रहना चाहिए था और वाहनों का उपयोग करने से बचना चाहिए था, खासकर तब जब माओवादी सामरिक जवाबी अभियान (TCOC) का पालन कर रहे हैं– जैसा कि वो हर बार साल अप्रैल और जुलाई के बीच करते हैं.
विज ने आगे कहते हैं कि, "सैनिकों की आवाजाही के दौरान SOP यह सुनिश्चित करने के लिए है कि दोनों तरफ कोई संदिग्ध तत्व न हो."
एक 'रोड ओपनिंग पार्टी' यह सुनिश्चित करती है, क्योंकि IED का पता लगाने के लिए 'बम डिटेक्शन' टीम भी तैनात की जाती है.
बस्तर, जहां माओवादियों की उपस्थिति अधिक है, वहां काम कर चुके एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सुरक्षा बलों के ढीले-ढाले अप्रोच की वजह से निर्णय लेने में लापरवाही हुई है, जिसका फायदा उठाकर माओवादी ने सुरक्षा बलों को निशाना बनाया.
छत्तीसगढ़ सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2019 से जून 2022 के बीच मुठभेड़ों की संख्या में गिरावट देखी गई है. 2019 में 54 मुठभेड़ हुए. वहीं 2020 में 57 एनकाउंटर दर्ज किए गए, जो कि 2022 में 43 तक पहुंच गई.
इसके साथ ही, नक्सली घटनाओं की संख्या भी 2019 में 165 और 2020 में 159 से घटकर 2022 में 131 हो गई.
बस्तर की अपनी हालिया यात्रा में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी दावा किया कि माओवादियों के साथ लड़ाई "अपने आखिरी चरण में है और जल्द ही खत्म हो जाएगी."
शाह ने कहा था:
हालांकि, पूर्व विशेष डीजीपी विज ने कहा कि वामपंथी उग्रवाद में गिरावट आई है, लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगी कि माओवादी अपने अंत के करीब हैं.
बस्तर में तैनात पुलिस अधिकारियों का रुख भी ऐसा ही है. उन्होंने द क्विंट को बताया कि जमीनी स्तर पर स्थिति वैसी नहीं होती, जैसी दिखती है.
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