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देश में बाल मजदूरी बढ़ रही है. ये बात सरकार ने संसद में मानी है. श्रम और रोजगार मंत्री रामेश्वर तेली (Rameshwar Teli) ने लोकसभा में बताया है कि पिछले चार साल से हर साल ज्यादा बाल मजदूरों को रेस्क्यू किया जा रहा है. लोकसभा में ही ये भी बताया गया कि पिछले साल कोरोना (Coronavirus) के कारण 24 करोड़ बच्चों की पढ़ाई छूट गई. इसके कारण और ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी में झोंक दिए गए.
सरकार ने जो आंकड़े बताए हैं उसके मुताबिक इन चार सालों में बाल मजदूरी से बचाए गए बच्चों की संख्या बढ़ती गई.
2017-18 -47,635 बच्चे
2018-19 -50284 बच्चे
2019-20 -54894 बच्चे
2020-21 -58289 बच्चे
हर साल बाल मजदूरी से बचाये गये बच्चों का बढ़ता नंबर साफ तौर पर ये बताता है कि देश में अभी बाल मजदूरी कम नहीं हो रही बल्कि साल दर साल बाल मजदूरी के जाल में और बच्चे फंस रहे हैं.
भारत में 10.1 लाख बच्चे बाल मजदूरी करते हैं जिसमें 5 साल से 18 साल के बच्चे शामिल हैं. हर साल हजारों बच्चों को बाल मजदूरी की कैद से छुड़ाया जाता है लेकिन फिर भी ये संख्या लगातार बढ़ रही है और पिछले दो सालों में तो कोरोना ने इसे और बढ़ा दिया. यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में 2022 तक 9 लाख नए बच्चे बाल मजदूरी करने के लिए मजबूर हो जाएंगे.
कोरोना ने बड़ों की नहीं छोटे बच्चों की जिंदगी भी बदल दी है. इस महामारी में बच्चे पैन पेंसिल पकड़ने की बजाय काम के दलदल में फंस रहे हैं.
कोरोना की वजह से शहरों से मजदूरों का पलायन हुआ और उनकी रोजी रोटी छिन गयी और इसलिए छोटे-छोटे बच्चों को अपने मां-बाप का हाथ बंटाने के लिये काम में लगना पड़ा.
पलायन के चलते शहरों में मजदूरों की कमी हो गई जिससे स्लम में रहने वाले बच्चे बाल मजदूरी की चपेट में आ गए.
कोरोना में माता-पिता या किसी परिवारवाले की मौत की वजह से नौनिहाल बचपना भूलकर मेहनत मजदूरी के बोझ तले दब गए.
डेढ़ साल से स्कूल बंद होने से पढ़ाई-लिखाई पूरी तरह ठप हो गई जिसकी वजह से बाल मजदूरी ने और पैर पसारे हैं. 2020-21 में 24 करोड़ से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई छूटी.
इन सबके ऊपर देश में बढ़ती गरीबी-बेरोजगारी, सर्व शिक्षा अभियान का पूरी तरफ सफल ना होना
बच्चों के प्रति फैली इस सामाजिक बुराई को जड़ से खत्म करना हमारे देश का ही नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र का भी एक सबसे बड़ा मिशन है, जिसमें अबी तक दुनिया फेल है. इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक बाल मजदूरी में पिछले 10 सालों में करीब 38 फीसदी कमी तो आयी है लेकिन फिर भी दुनिया भर में अब भी 15.2 करोड़ बच्चे काम करने के लिए मजबूर हैं.
बाल श्रम ( प्रतिबंध और नियमन) 1986 में साल 2016 में संशोधन किया गया है जिसके मुताबिक 14 साल के कम उम्र के बच्चे से किसी भी तरह का काम कराना अपराध की श्रेणी में आता है. 14 से 18 साल के बच्चों से किसी खतरनाक इंडस्ट्री जैसे ज्वलनशील, कैमिकल और विस्फोटक में काम कराने पर रोक है. हालांकि पहले जहां इस नियम में 83 इंडस्ट्रीज को शामिल किया था अब नये कानून में उनकी संख्या घटकर बस तीन रह गयी है.
14 साल से कम के बच्चे अपने परिवार या परिवार के रोजगार में हाथ बंटा सकते हैं इस क्लॉज की आड़ में लोग अपने छोटे बच्चों को साथ काम पर ले जाते हैं और उनसे खेतों में और फैक्ट्रियों में काम कराते हैं. इसके अलावा उद्योग में बाल मजदूरी को रोकने के लिये कड़े नियम ना होने की वजह से भी बच्चे बाल मजदूरी की चपेट में आ जाते हैं. किसी फैक्ट्री में अगर 50 से कम वर्कर हों तो वो निरीक्षण की श्रेणी में नहीं आती और इस चक्कर में ऐसे छोटी फैक्ट्री या कंपनियों में लोग छुपाकर छोटे बच्चों से काम कराते हैं.
एक्सर्ट्स का मानना है कि बाल मजदूरी को रोकने का पहला कदम है कि हर बच्चे को शिक्षा देना जरूरी है ताकि वो बचपन में काम के बोझ में ना दब जाये. इसके अलावा मजदूरों के लिये सामाजिक सुरक्षा पर ज्यादा खर्च करने की जरूरत है ताकि उनके बच्चे बचपन में काम करने की बजाय पढ़-लिख सकें.
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