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महाराष्ट्र में कोरोना महामारी एक बार फिर अपने चरम पर है. इस बीच मुंबई और मुंबई महानगर क्षेत्र (MMR) में काम करने वाले हजारों प्रवासियों को किसी भी समय अपने गृह नगर लौटने की संभावना के बीच एक बार फिर से अपने बैग पैक करने को मजबूर होना पड़ रहा है.
महाराष्ट्र में रात में कर्फ्यू लगाया गया है, जबकि दिन में काम से बाहर निकलने वाले लोगों के लिए कड़े प्रतिबंध और नियम निर्धारित किए गए हैं. इसके अलावा राज्य भर में सप्ताहांत के दौरान लॉकडाउन की घोषणा हो चुकी है. इस स्थिति को देखते हुए भारत के विभिन्न हिस्सों के प्रवासियों में एक बार फिर से अपने पलायन को लेकर डर पैदा हो गया है.
इनमें से अधिकांश कुशल और अर्ध-कुशल श्रमिक हैं जो कि मुख्य तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात, तेलंगाना और ओडिशा से संबंध रखते हैं. पिछले साल लगाए गए लॉकडाउन के बाद नौकरी या अन्य काम नहीं मिलने के कारण अधिकांश प्रवासी मजदूर अपने गृह नगर लौट गए थे.
यह प्रवासी मजदूर लाखों छोटे या मध्यम उद्योगों के अलावा छोटे कारखानों, कार्यशालाओं, गोदामों, होटलों, रेस्तरां, डिलीवरी चेन, बड़े और छोटे कार्यालयों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और यहां तक कि बड़ी खुदरा दुकानों, शॉपिंग सेंटरों और ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों में कार्यरत थे.
जब चीजें सामान्य हुई तो प्रवासी मजदूरों ने करीब छह महीने पहले फिर से राज्य में लौटना शुरू कर दिया था और उन्हें अब ऐसा ही भय सताने लगा है कि राज्य में पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा हुई तो उन्हें दोबारा से अपने घर लौटना पड़ सकता है.
विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे), आम आदमी पार्टी (आप) और अन्य विपक्षी दलों ने सेमी-लॉकडाउन के लिए महा विकास अघाडी (एमवीए) सरकार की आलोचना की है और कहा है कि प्रदेश सरकार लोगों की आजीविका के साथ खिलवाड़ कर रही है.
धारावी गारमेंट्स मैन्युफैक्च र्स एसोसिएशन के प्रवक्ता और कांग्रेस बीएमसी नगर निगम कॉर्पोरेटर हाजी बब्बू खान ने कहा कि इस साल कोविड-19 की स्थिति 2020 की तुलना में कई गुना खराब दिखाई दे रही है.
खान ने आईएएनएस से कहा कि पिछले साल तो प्रवासी मजदूरों की मदद करने वाले कई लोग एवं संगठन थे, जो उन्हें भोजन, आश्रय, दवाइयां आदि की सुविधा दे रहे थे. मगर इस साल वह भी गायब हैं, क्योंकि गैर-सरकारी संगठन और धर्मार्थ संगठन भी अपने संसाधनों को समाप्त कर चुके हैं. यही वजह है कि अब स्थिति 2020 की तुलना में और भी गंभीर है.
राजेश, खान और अन्य लोगों का कहना है कि धारावी का अनुमानित 80 प्रतिशत श्रम बल अक्टूबर तक वापस आ गया था, मगर अब उनमें से आधे से अधिक लोग अगले कुछ दिनों में फिर से अपने गृह नगर या गांव लौटने की तैयारी कर रहे हैं.
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