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वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम
देशभर में कोरोना की दूसरी लहर से हजारों लोगों की मौत हो रही है. दिल्ली से लेकर मुंबई तक श्मशानों पर शवों की कतार लगी हुई है. ऐसे में श्मशान घाट पर कमर्चारी दिन रात काम कर रहे है. हालांकि मुंबई की स्थिति काबू में आती दिख रही है. लेकिन क्विंट हिंदी ने मुंबई की श्मशान भूमि पर इन कर्मचारियों से बात कर जमीनी हालात समझने की कोशिश की.
चौबीसों घंटे जल रही चिताओं के बीच कर्मचारी कम संख्या में काम करते नजर आते हैं. वर्ली श्मशान भूमि पर दिन में 16 से 17 शव आते हैं. लकड़ी पर एक शव को जलने में कम से कम तीन से चार घंटे का समय लगता है. ऐसे में यहां सिर्फ चार कमर्चारियों का स्टाफ है.
चिता को साफ कर अस्थियां निकाल रहे सुधीर का कहना है कि, "हम दो लोग लकड़ी पर और एक गड्ढे में दफनाने का काम करता है. लेकिन हमने कभी किसी को नाराज नहीं किया. उन्हें चिता वक्त में निकालकर देते हैं. हम अपना काम अच्छे से कर रहे है. कोई तकलीफ नहीं है."
वहीं इलेक्ट्रिक फर्नेस पर ऑपरेटर का काम कर रहे कर्मचारियों का कहना है कि,"पानी की किल्लत की वजह से मशीन ठंडी नहीं हो पाती. जिस वजह से हम दिन में सिर्फ आठ शव जला सकते हैं. इससे ज्यादा जलाएं तो मशीन में अधिक तापमान की वजह से विस्फोट हो सकता है. 800℃ तापमान में शवों का दहन होता है. लेकिन दूसरा शव लेने में दो घंटे लग जाते हैं. ताकि मशीन का तापमान 600℃ तक आ सके. ऐसे में कतार में खड़ी भीड़ को संभालना काफी मुश्किल भरा काम हो जाता है."
इन समस्याओं से जूझ रहे श्मशानकर्मियों की तरफ महानगर निगम बीएमसी प्रशासन को ध्यान देने का फिलहाल बिल्कुल वक्त नहीं है. क्योंकि पूरी कोशिश कोविड को रोकने के मिशन पर लगी हुई है. ऐसे में अमानवीय स्थिति में काम कर रहे कर्मचारियों के पास इसी तरह काम करने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं है.
दादर स्थित श्मशान भूमि के कर्मचारी सुधीर इस बात से संतुष्ट है पिछले साल भर में उन्होंने 40 से 45 कोविड शवों का दाह संस्कार किया लेकिन अभी तक उन्हें कोई बीमारी नहीं हुई है. उनका मानना है कि ये लोगों की दुआ और भगवान की मेहरबानी है.
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