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कोरोना सक्सेस स्टोरी से परेशानी का सबब कैसे बन गया-‘बेंगलुरु मॉडल’

बेंगलुरु में 1 जून से 30 जून के बीच कोरोना वायरस के मामलों की संख्या 358 से बढ़कर 4,555 हो गया.

अरुण देव
राज्य
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एक सक्सेस स्टोरी से चिंता का विषय बना बेंगलुरु का COVID-19 सेंटर
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एक सक्सेस स्टोरी से चिंता का विषय बना बेंगलुरु का COVID-19 सेंटर
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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बेंगलुरु में 1 जून से 30 जून के बीच कोरोना वायरस के मामलों की संख्या 358 से बढ़कर 4,555 हो गया. कुल पॉजिटिव केसों की तुलना में अब भी ये महानगर मुंबई (76,294), चेन्नई (86,224) और नई दिल्ली (85,161) जैसे शहरों से काफी पीछे हैं. लेकिन एक महीने में 1083% की बढ़ोतरी ने सरकार को परेशान कर दिया है.

जून में कोरोना वायरस के मामलों में आए स्पाइक को दो स्टेज में बांटा जा सकता है. पहला, 1 से 26 जून के बीच मामलों में धीरे-धीरे लेकिन चिंतित करने वाली बढ़ोतरी और दूसरा, 27 जून के बाद तेजी से बढ़ते मामले.
इलस्ट्रेशन: अर्निका काला/क्विंट हिंदी

'अकाउंटिंग एरर'

बेंगलुरु में जब पहला कोरोना वायरस केस पाया गया था यानी 9 मार्च से 26 जून तक के कोरोना वायरस मामलों की बात की जाए तो औसत संख्या 20 केस हर दिन के हैं. लेकिन लॉकडाउन के नियमों में छूट के बाद 1 जून से 26 जून तक की बात की जाए तो ये औसत 61 केस हर रोज का हो जाता है.

27 जून से 30 जून का औसत 655 केस हर रोज का है.

बीबीएमपी कमिश्नर अनिल कुमार का कहना है कि पॉजिटिव मामलों की गिनती में शुरुआत में जो गड़बड़ी हुई थी उसकी वजह से 27 से 30 जून के बीच में बड़ा स्पाइक देखने को मिला. इस गलती के कारण 1200 से ज्यादा केस( अधिकारियों ने सटीक नंबर नहीं दिया) को जोड़ना पड़ा, जिन्हें पहले जोड़ा जाना चाहिए था.

इन मामलों को कुल आंकड़ों के साथ तब जोड़ा गया जब कोविड वॉर रूम ने बीबीएमपी को बताया कि कई पॉजिटिव मामलों को रिपोर्ट नहीं किया गया है. बीबीएमपी अधिकारियों का कहना है कि किसी भी पैनिक से बचने के लिए अलग-अलग बैच में बचे हुए आंकड़ों को जोड़ा जाता है और पिछले बैकलॉग को कम किया जाता है.

हालांकि, अगर इन 1200 मामलों को कुल मामलों की संख्या में नहीं भी जोड़ा जाता है तो भी कोरोना केस में काफी बड़ा उछाल देखने को मिला है.

26 से 27 जून के बीच, बेंगलुरु में 313.9% की वृद्धि दर्ज की गई, इन 24 घंटों के दौरान नए मामलों की संख्या 144 से बढ़कर 596 हो गई. फिर, अगले तीन दिन तक ऐसा ही ट्रेंड दिखा 783, 738 और 503 मामले इस शहर से सामने आए.

BBMP कमिश्नर ने ये माना है कि जो स्पाइक नजर आ रहा है वो सिर्फ बैकलॉग की वजह से नजर नहीं आ रहा है. इसका एक बड़ा हिस्सा लॉकडाउन के हटाने की वजह से भी है.

एक्सपर्ट के हवाले से BBMP कमिश्नर कहते हैं कि जो स्पाइक नजर आ रहा है वो 15 जुलाई तक दिखेगा.

1-26 जून का 'उछाल' समझिए

27 जून से आए स्पाइक को अलग भी रखा जाए, तो 1 जून से 26 जून के बीच बेंगलुरु में पॉजिटिव केस की संख्या में 402.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई. मई में बढ़ोतरी का ये आंकड़ा 146 फीसदी का था. द क्विंट ने इस स्पाइक को समझने के लिए कई विशेषज्ञों से बात की.

इलस्ट्रेशन: अर्निका काला/क्विंट हिंदी
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लॉकडाउन में छूट बड़ा नुकसान

बेंगलुरु शहर देश के उन हिस्सों में से एक है जहां लॉकडाउन का सख्ती से पालन किया गया था, जिसकी वजह से कोरोना वायरस के केसों के नियंत्रण में काफी हद तक सफलता हासिल हुई थी. हालांकि, 8 जून तक ये शहर लॉकडाउन के पहले वाली स्थिति में आ चुका था.

पूरे दिन गाड़ियों की आवाजाही पर से रोक हटा ली गई थी, प्राइवेस ऑफिस काम करने लगे थे. दुकानें और मार्केट खुल गए थे.

(फोटो/क्विंट हिंदी)

दूसरी दिक्कत-मौसम का बदलना

BBMP के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, बेंगलुरु में कोरोना वायरस के 18 फीसदी मामले इन्फ्लुएंजा (ILI) और सांस से जुड़े संक्रमण (सिवर एक्युट रेस्पिरेटरी इंटफेक्शन-SARI) का नतीजा हैं.

ILI और SARI के मरीज COVID-19 की चपेट में जल्दी आते हैं क्योंकि बुखार और खांसी के कारण उनका इम्युन सिस्टम कमजोर हो जाता है. मणिपाल हॉस्पिटल्स ग्रुप के मेडिकल एडवाइजरी बोर्ड के डायरेक्टर डॉ सुदर्शन बल्लाल के मुताबिक, मानसून के मौसम में बेंगलुरु में ILI के मामलों में वृद्धि देखी जाती है.

“जून और नवंबर के बीच, मौसम में बदलाव के साथ, बेंगलुरु ऐसे मामलों में संख्या में तेजी दिखती है. इस दौरान, डेंगू के मामलों और एच 1 एन 1 जैसी सांस की बीमारी में स्पाइक आता है. अब इस लिस्ट में COVID जोड़ दिया गया है. ”
डॉ सुदर्शन बल्लाल

ILI और SARI के कारण बताए जा रहे 18 फीसदी मामलों के अलावा, बेंगलुरु के 61 फीसदी कोरोना केस में वायरस का कारण पता नहीं लगाया जा सका है या अभी जांच चल रही रही है. सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, 61 फीसदी जैसी बड़ी संख्या में ILI और SARI मामले भी शामिल हो सकते हैं.

संक्रमण का सोर्स पता नहीं चल पाना, ये भी कारण हैं, जिसपर बेंगलुरु के प्रशासन का नियंत्रण नहीं है.
इलस्ट्रेशन: अर्निका काला/क्विंट हिंदी

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, जब एक महामारी कम्युनिटी ट्रांसमिशन स्टेज में होती है, उस वक्त संक्रमण को ट्रेस करने में अक्षमता सामने आती है. बेंगलुरु में स्थिति ये है कि 61 फीसदी केस में वायरस का ओरिजिन पता नहीं चल सका है और हेल्थ केयर वर्कर्स भी मान रहे हैं कि सोर्स ढूंढने में दिक्कत आ रही है.

जबकि सरकार अभी भी इसे औपचारिक रूप से नकार रही है, शहर के कई वरिष्ठ डॉक्टरों ने कहा है कि बेंगलुरु पहले से ही कम्युनिटी ट्रांसमिशन स्टेज में है. कर्नाटक COVID टास्क फोर्स के मेंबर और जयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवास्कुलर साइंसेज एंड रिसर्च के डायरेक्टर डॉ सीएन मंजूनाथ का कहना है,

“हम कम्युनिटी ट्रांसमिशन में हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि प्रकृति हर चीज से आगे है. आप दुनियाभर के देशों को देखिए, तो वहां ये 6 महीने में हुआ था. हम चौथे महीने में हैं. ये दो महीने और चलेगा. ये पीक की शुरुआत की तरह दिखता है. ”

डॉ मंजूनाथ के मुताबिक, चूंकि शहर एक ऐसे स्टेज में पहुंच गया है, जहां हेल्थ वर्कर्स कोरोना संक्रमितों के कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग में असमर्थ हैं, ट्रैवल हिस्ट्री भी पता नहीं लग पा रही है. ऐसे में सरकार को टेस्टिंग पॉलिसी पर फिर से विचार करना होगा. रैंडम टेस्टिंग को तत्काल बढ़ाना चाहिए.

यहां तक कि बीबीएमपी कमिश्नर अनिल कुमार ने स्वीकार किया है कि शहर कम्युनिटी ट्रांसमिशन स्टेज में है. ये स्पाइक कब तक जारी रहेगा, नहीं पता. ऐसे में सरकार बड़ी संख्या में केसों की तैयारी के लिए दो मशहूर इनडोर स्टेडियम को कोविड केयर सेंटर के तौर पर बदल रही है.

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