Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019States Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019DRG जवानों के पीछे क्यों पड़े रहते हैं नक्सली, कब और क्यों गठित की गई थी यूनिट?

DRG जवानों के पीछे क्यों पड़े रहते हैं नक्सली, कब और क्यों गठित की गई थी यूनिट?

Chhattisgarh Naxal Attack: DRG की एक महिला यूनिट भी है, जिसका नाम दंतेश्वरी लड़ाका है.

FAIZAN AHMAD
राज्य
Published:
<div class="paragraphs"><p>DRG जवानों के पीछे क्यों पड़े रहते हैं नक्सली, कब और क्यों गठित की गई थी यूनिट?</p></div>
i

DRG जवानों के पीछे क्यों पड़े रहते हैं नक्सली, कब और क्यों गठित की गई थी यूनिट?

(फोटोः क्विंट हिंदी)

advertisement

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के दंतेवाड़ा में बुधवार 26 अप्रैल को एक मिनीवैन को IED ब्लास्ट कर उड़ा दिया गया, जिसमें 10 पुलिसकर्मियों और गाड़ी चला रहे एक प्राइवेट गांड़ी के ड्राइवर की मौत हो गई. बताया जा रहा है कि ये जवान माओवादियों के खिलाफ ऑपरेशन करके लौट रहे थे तभी दोपहर करीब दो बजे हमला किया गया. लेकिन, सवाल है कि आखिर नक्सलियों के निशाने पर सबसे ज्यादा DRG के जवान क्यों रहते हैं? DRG का गठन क्यों किया गया था? इनका मकद क्या है? इस आर्टिक में ये सभी सवालों के जवाब जानेंगे.

बता दें, इलाके में विस्फोट हुआ वह राज्य की राजधानी रायपुर से करीब 450 किलोमीटर दूर है. इस हमले में मारे गए 10 जवान, DRG के जवान थे.

'सन ऑफ द सॉइल' के नाम से जाने जाते हैं DRG

DRG का मतलब होता है जिला रिजर्व गार्ड (DRG), जो छत्तीसगढ़ पुलिस का एक विशेष बल है. जिसमें, ज्यादातर स्थानीय आदिवासी शामिल किए जाते हैं, जिन्हें माओवादियों से लड़ने के लिए ट्रेन किया जाता है. वामपंथी उग्रवाद के केंद्र बस्तर में विद्रोहियों के खिलाफ कई सफल अभियानों में DRG की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

  • छत्तीसगढ़ के बस्तर में 7 जिलों में नक्सलियों से मुकाबले के लिए DRG का गठन 2008 में किया गया था.

  • DRG जवानों को सबसे पहले कांकेर और नारायणपुर जिलों में तैनात किया गया था.

  • साल 2013 में बीजापुर और बस्तर में और 2014 में सुकमा और कोंडागांव के बाद 2015 में दंतेवाड़ा में डीआरजी को नक्सलियों से लड़ने के लिए तैनात किया गया.

  • दंतेश्वरी लड़ाके, जिला रिजर्व गार्ड की महिला कमांडो इकाई है.

  • मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक DRG में अधिकारियों समेत जवानों की कुल संख्या 1700 के करीब है.

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक DRG के सबसे ज्यादा 482 कर्मी उग्रवाद प्रभावित सुकमा में तैनात हैं, इसके बाद इसके पड़ोसी जिले और इतने ही खतरनाक बीजापुर 312 में हैं.

डीआरजी के जवानों को 'सन ऑफ द सॉइल' कहा जाता है. क्योंकि, इसके जवानों में स्थानीय युवा और सर्रेंडर कर चुके नक्सलियों को शामिल किया जाता है.

DRG के जवान अक्सर नक्सलियों को कड़ी टक्कर देते हैं. उसकी मुख्य वजह इनका खुद का स्थानीय जुड़ाव होता है. लोकल होने की वजह से यह उस इलाके की संस्कृति, जंगल-पहाड़ों के रास्ते और भाषा समेत तमाम चीजों से अच्छी तरह परिचित होते हैं. यह अक्सर नक्सलियों को आसानी से झांसे में लेकर ऑपरेशन को अंजाम देने में सफल रहते है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

2018 से खूनी संघर्ष जारी

आंकड़ों के मुताबिक DRG ने 2015 में 644 नक्सल विरोधी अभियान चलाए. व्यक्तिगत रूप से भी और अन्य राज्य बलों और अर्धसैनिक बलों के साथ कोर्डिनेशन में भी. इस दौरान उन्होंने 46 नक्सलियों को मार गिराया.

साल 2018 के जुलाई महीने में अकेले DRG और अन्य बलों के साथ संयुक्त रूप से चलाए गए 144 अभियानों में 25 माओवादी मारे गए थे और सुरक्षाबल का कोई भी जवान हताहत नहीं हुआ था.

नक्सलियों और डीआरजी के बीच यह मुठभेड़ डीआरजी के गठन से जारी है. इस मुठभेड़ में डीआरजी समेत अन्य बलों के जवान भी शहीद हुए हैं.

गृह मंत्रालय ने अप्रैल 2021 में लोकसभा में बताया था कि पिछले 2011 से लेकर 2020 तक यानी 10 सालों में छत्तीसगढ़ में 3 हजार 722 नक्सली हमले हुए. इन हमलों में 489 जवान शहीद हो गए.

छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित इलाके

गृह मंत्रालय द्वारा जारी 2021 के रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में 8 जिले नक्सल प्रभावित हैं.

  1. बीजापुर

  2. सुकमा

  3. बस्तर

  4. दंतेवाड़ा

  5. कांकेर

  6. नारायणपुर

  7. राजनंदगांव

  8. कोंडागां

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT