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दिल्ली की एक कोर्ट ने साल 2012 में प्रधानमंत्री आवास के सामने कथित दंगा करने के एक मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आरोप-मुक्त कर दिया. अदालत ने कहा कि विरोध मार्च शांतिपूर्ण था और किसी नागरिक को हथियारों के बगैर शांतिपूर्ण तरीके से इकट्ठा होने और भाषण एवं अभिव्यक्ति की अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करने का ‘‘मौलिक अधिकार'' है.
एडिशनल मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल ने केजरीवाल और अन्य को इस मामले में उस वक्त राहत दी. जब उन्होंने पाया कि सीआरपीसी की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू करने के पुलिस के आदेश में कोई वजह नहीं बताई गई थी और बाद में बताए गए कारणों में कोई आपात स्थिति नजर नहीं आ रही थी कि निषेधाज्ञा लागू करने की जरूरत पड़ी हो.
अदालत ने कहा, ‘‘यह अभियोजन का मामला नहीं था कि जिन नागरिकों पर मुकदमा चलाया जाना है, उनके पास हथियार थे या उनके इकट्ठा होने के पीछे कोई आपराधिक मंशा थी. अभियोजन का मामला यह भी नहीं था कि यातायात की कोई समस्या हुई या सड़क पर आ-जा रहे लोगों को कोई असुविधा हुई.'' जज ने कहा, ‘‘वहां जो भी हंगामा हुआ वह पुलिस के बल प्रयोग और प्रदर्शनकारियों की ओर से इसके जवाब में उठाए गए कदम की वजह से हुआ.''
अभियोजन पक्ष के मुताबिक, 26 अगस्त 2012 को इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ताओं ने कोयला घोटाले के खिलाफ प्रधानमंत्री आवास पर प्रदर्शन किया था और उन्हें रोकने के लिए पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया गया था. इसके बाद कार्यकर्ता हिंसक हो गए थे. पुलिस ने कई बार आंसू गैस के गोले दागे और कार्यकर्ताओं को खदेड़ा था. इसके बाद कुछ उपद्रवियों ने झंडे के डंडों से पुलिस पर हमला कर दिया था. इस घटना में कुछ पौधे और बैरीकेड को नुकसान पहुंचा था. पुलिस ने इस मामले में केजरीवाल, बनवारी लाल शर्मा, दलबीर सिंह, मुकेश कुमार, मोहन सिंह, बलबीर सिंह, जगमोहन गुप्ता, आजाद कसाना, हरीश सिंह रावत और आनंद सिंह बिष्ट के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी.
(इनपुट: भाषा)
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