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स्वास्थ्य विभाग की एक टीम 17 फरवरी को उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के गोरखपुर (Gorakhpur) जिले के इशू अस्पताल (Ishu Hospital) पहुंचती है. वहां का नजारा देखकर अधिकारी दंग रह जाते हैं. एक झोलाछाप फार्मासिस्ट और स्टाफ नर्स के सहारे पूरा अस्पताल चल रहा था. वहां कोई भी डॉक्टर मौजूद नहीं था.
गंभीर बीमारी से जूझ रहे 3 लोगों का इलाज चल रहा है. उसमें एक मरीज वेंटिलेटर पर है. कुछ शक होने पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी आशुतोष कुमार दुबे ने उस मरीज के ईसीजी करने का निर्देश दिया. रिपोर्ट में एक सीधी लाइन आती है यानी वह मरीज मर चुका था. पैसे कमाने का ऐसा गोरखधंधा की मृत मरीज को वेंटिलेटर पर रखकर परिजनों से पैसे वसूले जा रहे थे. इस मामले में हुई जांच में अस्पताल मालिकों, डॉक्टर और दलालों के गठजोड़ की ऐसी कहानी सामने आई है जो इंसानियत को झकझोर कर रख देगी.
प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों की जिंदगी से हो रहे खिलवाड़ और उनके परिजनों से "लूट" की कहानी की शुरुआत होती है गोरखपुर के सरकारी बीआरडी मेडिकल कॉलेज से. यहां पर गोरखपुर समेत आसपास के जिले, जैसे कि महाराजगंज, कुशीनगर, संत कबीर नगर, बस्ती, देवरिया और अन्य प्रांत जैसे कि बिहार और नेपाल से रोज सैकड़ों मरीज गंभीर बीमारियों का इलाज करने पहुंचते हैं. दूर-दराज से एंबुलेंस में आए मरीजों के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में गेट में दाखिल होते ही दलाल सक्रिय हो जाते हैं.
दलालों के मॉडस ऑपरेंडी के बारे में वो आगे बताते है, "एक बार जब वह (दलाल) मरीज और उनके परिजनों को अपने एंबुलेंस में बिठा लेते थे तो रास्ते में फिर इधर-उधर फोन कर मरीज के परिजनों से कहते थे कि फातिमा और गुरु गोरखनाथ में भी बेड खाली नहीं है. अपने परिचित का अस्पताल बताकर दलाल मरीजों को ऐसे प्राइवेट अस्पताल लेते जाते थे जहां पहले से सांठ-गांठ थी."
कुछ ऐसा ही हुआ देवरिया के रहने वाले शिव बालक प्रसाद के साथ. गंभीर बीमारी से जूझ रहे शिव बालक को उनके परिजन 17 फरवरी को बीआरडी मेडिकल अस्पताल लेकर आए. वहां मौजूद दलालों ने शिव बालक के परिजनों को अपने झांसे में ले लिया और बीआरडी से उसे इशू अस्पताल ले कर आए. शिव बालक की मौत के बावजूद अस्पताल उसे वेंटिलेटर पर रखे हुए था. जब स्वास्थ्य विभाग की टीम वहां पहुंची तो वहां पर कोई भी डॉक्टर मौजूद नहीं था. एक स्टाफ नर्स विनीता यादव और फार्मासिस्ट कृष्णा के सहारे पूरा अस्पताल चल रहा था. जिस डॉक्टर के नाम पर अस्पताल पंजीकृत था वह भी मौके पर नहीं था. स्वास्थ्य विभाग ने इस मामले में मुकदमा दर्ज करा कर अस्पताल को सील कर दिया है.
शिव बालक प्रसाद के बेटे रामाज्ञा बताते हैं कि जैसे ही उन्होंने अपने पिता को इशू अस्पताल में भर्ती कराया, उनसे पैसों की मांग शुरू हो गई.
रामाज्ञा ने आगे बताया कि बिहार से आया एक मरीज इशू अस्पताल में उनके पिता के साथ भर्ती था. बातचीत के दौरान रामाज्ञा को पता चला कि उस परिवार ने दो दिन में एक लाख से ज्यादा रुपए अस्पताल प्रशासन को दवा और जांच के नाम पर जमा करा दिए थे.
इशू अस्पताल में मृत व्यक्ति के इलाज के नाम पर हो रही ठगी और अन्य अनियमितताओं को लेकर स्वास्थ्य विभाग की तरफ से भारतीय दंड संहिता की धारा 417, 420, 386, 188, 342, 336, 406 और 120 बी के अंतर्गत 10 नामजद और अन्य लोगों के खिलाफ गोरखपुर के रामगढ़ ताल थाने में मुकदमा दर्ज कर लिया गया है. इसमें अस्पताल के संचालक, डॉक्टर, स्टाफ नर्स, फार्मासिस्ट, दलाल एंबुलेंस ड्राइवर और बीआरडी अस्पताल में स्ट्रेचर खींचने वाले व्यक्ति समेत 8 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.
इलाज के नाम पर गंभीर मरीजों को इन प्राइवेट हॉस्पिटलों में भर्ती कराया जाता था जहां पर दवा और इलाज के नाम पर लाखों रुपए मरीज के परिजनों से वसूले जाते थे. इसी पैसे का बाद में बंदरबाट होता था.
गोरखपुर की इशू अस्पताल में मृत मरीज को वेंटिलेटर पर रखकर परिजनों से पैसे ऐंठने का मामला प्रकाश में आने के बाद पूरे स्वास्थ्य विभाग में हड़काम सा मचा हुआ है. प्राइवेट अस्पतालों में लगातार स्वास्थ्य विभाग की छापेमारी चल रही है. पिछले कुछ दिनों में हुई कार्रवाइयों में स्वास्थ्य विभाग ने दो और अस्पतालों को सील कर दिया है. स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाइयों के बारे में बातचीत करते हुए गोरखपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी आशुतोष कुमार दुबे ने बताया कि अनियमितताओं और मानकों की अनदेखी के कारण पिछले 1 साल में 700 से ज्यादा अस्पतालों के पंजीकरण निरस्त किए गए हैं. इसके अलावा 30 से 35 अल्ट्रासाउंड सेंटर भी सील किए गए हैं.
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