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मुंबई के BMC निकाय चुनाव को लेकर महाराष्ट्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. उद्धव सरकार की कैबिनेट ने BMC पर प्रशासक नियुक्त करने के लिए मौजूदा मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन एक्ट 1888 में संशोधन करने की मंजूरी दे दी है, जिससे BMC के चुनाव में देरी हो सकती है.
BMC के निर्वाचित पार्षदों का कार्यकाल 7 मार्च को खत्म हो रहा हैं. ऐसे में राज्य चुनाव आयोग ने सरकार को सभी महानगर निगमों के कार्यकाल समाप्ति पर प्रशासक नियुक्त करने के निर्देश दिए, जिसके बाद मुंबई BMC समेत अन्य 10 महानगर निगमों के चुनाव पर भी असर होगा.
दरअसल, कोविड की पबंदियों की वजह से BMC के वार्ड पुनर्रचना प्रक्रिया पूरी करने में देरी हो गई हैं. मौजूदा 227 वार्ड से अब मुंबई में वार्ड की संख्या बढ़ाकर 236 कर दी गई हैं. चुनाव आयोग ने वार्ड संरचना का ड्राफ्ट जारी कर दिया हैं. 14 फरवरी तक उनपर जनता से सुझाव और आपत्तियां आमंत्रित की गई हैं. राज्य चुनाव आयोग एक समिति नियुक्त करेगा, जो 16 से 26 फरवरी तक नागरिकों की सुनवाई करेगी. इसके बाद समिति की सिफारिशों के साथ एक विस्तृत रिपोर्ट 2 मार्च को चुनाव आयोग के सामने पेश करनी होगी.
राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य सरकार ने राज्य चुनाव आयोग से आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण लागू करने का अनुरोध किया है. हालांकि, चुनाव आयोग ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही आरक्षण लागू किया जा सकता है. इसीलिए तय समय सीमा में BMC समेत सभी निकाय चुनाव लेना मुश्किल हो गया है.
कानून विशेषज्ञ उल्हास बापट का कहना है कि नगर निगम में प्रशासक नियुक्त करने के बाद उसका सदन बर्खास्त हो जाता है, जिससे जनप्रतिनिधियों का कामकाज में हस्तक्षेप करने का अधिकार खत्म हो जाता है. सारा कामकाज प्रशासक के हाथ में चला जाता है. वैकल्पिक रूप से, ये राज्य सरकार के अधिकार में चला जाता है.
ऐसे में कार्यकाल समाप्ति के बाद जनप्रतिनिधियों के फंड्स का उपयोग, टेंडरिंग प्रक्रिया, कमेटी सदस्यों के अधिकार और सभी महत्वपूर्ण निर्णय प्रशासक की तरफ से लिए जाते हैं, क्योंकि पहले स्टैंडिंग कमेटी के जरिये सर्व सहमति से मंजूर होते थे. हालांकि, ऐसी स्थिति में सभी प्रथाओं और नियमों का पालन होता है या नहीं, ये संशोधन का विषय है.
विपक्षी पार्टी बीजेपी के विधायक आशीष शेलार का कहना है कि, "चुनाव का नियोजनबद्ध कार्यक्रम करने में सरकार असफल रही. 21वीं सदी में BMC जैसे सबसे बड़ी और अमीर महानगर निगम पर प्रशासक नियुक्ति की नौबत आना बेहद खेदजनक है. हालांकि, सरकार का इसके पीछे का उद्देश्य प्रामाणिक होगा, ऐसा हमें नहीं लगता."
वरिष्ठ पत्रकार सचिन धांजी का कहना हैं कि राज्य में सत्ताधारी शिवसेना को BMC में प्रशासक नियुक्त करने के कई मायने हो सकते है. एक तरफ BMC पर अप्रत्यक्ष रूप से सीएम उद्धव ठाकरे और मंत्री आदित्य ठाकरे का नियंत्रण रह सकता हैं, जिससे कई विकास कामों को सदन में बहस के बिना प्रशासक के जरिये चुनाव से पहले पूरा किया जा सकता हैं. लेकिन दूसरी तरफ शिवसेना को विकास कामों का श्रेय लेने का मौका नहीं मिलेगा.
BMC के पिछले सभी चुनाव समय सीमा के भीतर हुए थे. इसलिए प्रशासक नियुक्त करने का समय कभी नहीं आया. विधानसभा चुनाव और आरक्षण के मुद्दे पर 1984 में निगम का कार्यकाल समाप्त हो गया. 1 अप्रैल 1884 से 9 मई 1985 तक मुंबई नगर निगम में एक प्रशासक नियुक्त किया गया था. उस समय जमशेद कांगा मुंबई नगर निगम के प्रशासक थे. इतने सालों के बाद मुंबई नगर निगम में प्रशासक की नियुक्ति हुई है.
चुनाव आयोग ने सभी प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए 2 मार्च की समय सीमा दी है. इस प्रक्रिया को पूरा करने के बाद मार्च के दूसरे या तीसरे सप्ताह में वार्ड के आरक्षण की घोषणा हो सकती हैं, जिसके बाद चुनाव अप्रैल में होने की संभावना है.
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