advertisement
हाथरस कांड को जिस तरीके से प्रशासन ने संभालने की कोशिश की है. उसकी मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर खूब किरकिरी हो रही है. पत्रकार, अफसरों को 'गुंडा-मवाली' तक बताने में संकोच नहीं कर रहे. कुल मिलाकर अपराध मुक्त प्रदेश का दम भरने वाली यूपी की योगी सरकार इस हाथरस कांड के बाद 'दबाव' में दिख रही है और 'डैमेज कंट्रोल' की जुगत में हैं. गुरुवार रात को राज्य के ब्यूरोक्रेसी में बड़े प्रशासनिक फेरबदल के साथ अतिरिक्त मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी से सूचना विभाग का प्रभार ले लिया गया और अतिरिक्त मुख्य सचिव MSME नवनीत सहगल को 'मीडिया मैनेजमेंट' बेहतर करने के लिए सूचना विभाग का प्रभार थमा दिया गया है.
ये वही नवनीत सहगल हैं जिन्होंने मायावती और अखिलेश सरकार में भी सूचना विभाग का जिम्मा बखूबी संभाला था. संजय प्रसाद को सूचना विभाग का प्रधान सचिव बनाया गया है, जो नवनीत के अंडर काम करेंगे.
क्विंट हिंदी से बातचीत में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल तीनों ही तरह की मीडिया में काम कर चुके पत्रकार विक्रांत दुबे कहते हैं कि नवनीत सहगल की खासियत ये है कि जब-जब अलग-अलग पार्टियों की सरकारों को बेहतर कम्युनिकेशन को लेकर दिक्कत देखने को मिलती है तो वो नवनीत सहगल पर ही भरोसा करते दिखते हैं.
2007 से साल 2012 तक नवनीत सहगल बीएसपी सरकार के सूचना विभाग में प्रमुख सचिव थे. उस वक्त सहगल यूपी सरकार-प्रशासन के सबसे शक्तिशाली शख्सियतों में से एक थे. इस कार्यकाल में ही लखनऊ का डॉक्टर सचान हत्याकांड खूब सुर्खियों में आया था. प्रदेश के पत्रकार पूरी तरह से सरकार के खिलाफ हो गए थे और प्रदर्शन भी चला. ऐसे में इस केस में जिस तरह से मीडिया मैनेज कर डैमेज कंट्रोल किया गया, उसमें नवनीत सहगल की अहम भूमिका रही.
विक्रांत दूबे कहते हैं कि डॉक्टर सचान हत्याकांड में चल रहे हो हल्ले के वक्त ही उनके साथी पत्रकार शलभ मणि त्रिपाठी को पुलिस ने उठा लिया था, जिसके बाद सैंकड़ों की संख्या में पत्रकार हजरतगंज थाने में जमा हो गए, पत्रकारों के सड़क पर उतरने से पुलिस प्रशासन से लेकर सरकार तक पर दबाव बन गया था. उस वक्त नवनीत सहगल ही थे, जिन्होंने ये पूरा मुद्दा संभाला था.
ऐसे में नवनीत सहगल को मीडिया विभाग देने से बचती क्यों रही यूपी सरकार? साल 1988 बैच के IAS ऑफिसर नवनीत सहगल अपने 'काम' के लिए जाने जाते हैं, चाहे सरकार कोई भी हो. बीएसपी सरकार के भरोसेमंद होने के टैग के वजह से अखिलेश सरकार की शुरुआत में उन्हें कम अहम समझी जाने वाली (धर्मार्थ कार्य विभाग) जिम्मेदारी सौंपी गई लेकिन उनके काम को अखिलेश सरकार ज्यादा दिन तक नजरंदाज नहीं कर पाई और फिर उन्हें अखिलेश यादव यूपी इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट अथॉरिटी (यूपीडा) का CEO बनाया, बड़ी जिम्मेदारी थी यमुना एक्सप्रेस वे बनाना. यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव अपने इस ड्रीम-प्रोजेक्ट्स का अकसर जिक्र करते रहते हैं. इसे रिकॉर्ड समय में पूरा करने का श्रेय नवनीत सहगल को ही जाता है.
बीजेपी के लालजी टंडन के साथ भी नवनीत सहगल के काफी करीबी रिश्ते थे. इस लिहाज से कई सरकारों और नेताओं के करीबी होने के ‘टैग’ की वजह से कुछ विवाद भी पीछे पड़ ही जाते हैं. ऐसे में बीजेपी की योगी सरकार सहगल को सूचना विभाग जैसी अहम जिम्मेदारी देने से बचती रही कि कहीं मायावती-अखिलेश के साथ योगी सरकार को नवनीत सहगल की जरूरत पड़ी, ऐसा ठप्पा राज्य सरकार पर न लग जाए. तीन साल तक बचते रहने के बाद अब हाथरस कांड ने योगी सरकार की जो नकारात्मक छवि बनाई है और अघोषित इमरजेंसी लगाने का टैग जो लगाया जा रहा है. उसके बाद नवनीत सहगल को छवि सुधारने के लिए सूचना विभाग का जिम्मा दिया गया है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)