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राजस्थान में गहलोत के मंत्रियों और अफसरों के बीच खींचतान बढ़ गई है. ब्यूरोक्रेसी की ACR भरने को लेकर प्रदेश में बयानबाजी का दौर अभी थमा भी नहीं था कि बीकानेर शहर में एक कार्यक्रम के दौरान ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री रमेश मीणा ने मंच पर ही कलेक्टर को फटकार लगा दी. हालांकि, ये पहला मामला नहीं है जब मंत्री और अफसर के बीच तल्खी देखी गई. इससे पहले अशोक चांदना, राजेंद्र यादव और प्रताप खाचरियावास समेत कई मंत्री अफसरशाही को लेकर नाराजगी जता चुके हैं. हालांकि आईएएस लॉबी ने भी अपना विरोध जताया है.
मंत्री रमेश मीणा सोमवार को बीकानेर के रविंद्र रंगमंच पर एक कार्यक्रम में महिलाओं को संबोधित कर रहे थे. मंच पर जिला कलेक्टर भगवती प्रसाद कलाल सहित अन्य लोग मौजूद थे. अपने संबोधन के दौरान मंत्री की नजर कलेक्टर पर पड़ी, जो अपने मोबाइल फोन में व्यस्त थे.
मंत्री रमेश मीणा ने घटना को लेकर बताया कि कलेक्टर लगातार अपने फोन में व्यस्त थे और उनके संबोधन के दौरान उठाए गए मुद्दों को नहीं सुन रहे थे. प्रदेश का एक मंत्री कलेक्टर को कुछ महत्वपूर्ण बात बता रहा है और कलेक्टर अपने फोन में व्यस्त हैं. उन्होंने कहा,
मंत्री रमेश मीणा के व्यवहार को लेकर IAS एसोसिएशन ने नाराजगी जताई है. IAS एसोसिएशन ने मुख्य सचिव उषा शर्मा को ज्ञापन दिया है. इसमें इस प्रकरण में कार्रवाई की मांग करते हुए कहा गया कि,
IAS एसोसिएशन ने सीएम गहलोत से इस प्रकरण में जरूरी कार्रवाई की मांग करते हुए यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है कि भविष्य में ऐसे प्रकरण दोहराए ना जा सकें. ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि कि सीएम ऐसे प्रकरणों की सार्वजनिक निंदा करें तो यह प्रशंसनीय होगा, क्योंकि राजस्थान ऐसे राज्य के रूप में जाना जाता है जहां अफसरों और नेताओं में तालमेल और अंडरस्टैंडिंग है. सीएस उषा शर्मा ने आईएएस अधिकारियों की भावना से सहमति जताते हुए सीएम के आने के बाद इस बारे में बात करने का आश्वासन दिया है.
राजस्थान के खेलमंत्री अशोक चांदना भी प्रदेश में अफसरशाही के खिलाफ नाराजगी जता चुकें. उन्होंने तो सीएम गहलोत को ट्वीट कर अपने पद से मुक्त करने का आग्रह तक कर दिया था. चांदना ने मई में एक ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने लिखा था कि “मुख्यमंत्री जी मेरे सारे विभाग लेकर मुझे इस जलालत भरे पद से मुक्त कर दें. मेरे सारे विभागों का चार्ज कुलदीप रांका मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव को दे दिया जाए. वैसे भी मेरे विभाग के मंत्री कुलदीप रांका हैं.”
डूंगरपुर से कांग्रेस विधायक गणेश घोघरा भी अफसरों के रवैये से नाराज होकर अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भेज चुके हैं. सीएम अशोक गहलोत के सलाहकार संयम लोढ़ा ने भी मई महीने में गृह विभाग और राजस्व विभाग के अफसरों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव दिया था. सीएम के सलाहकार का दो विभागों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पेश करना भी ब्यूरोक्रेसी पर निशाना था.
प्रदेश में अफसरशाही के खिलाफ धीरज गुर्जर ने ट्वीट किया था कि “अधिकारी कभी किसी सरकार के नहीं होते. वो सत्ता के और खुद के होते हैं. जब अपनी कुर्सी को बचाकर रखने के लिए विपक्षी दलों से हाथ मिला लेते हैं तब वो सरकार की कब्र खोद रहे होते हैं. समय पर इनकी पहचान न करने से किसी भी सरकार को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं.”
बेगूं से कांग्रेस विधायक राजेंद्र बिधूड़ी ने अफसरशाही के खिलाफ लंबे समय से मोर्चा खोल रखा है. बिधूड़ी सार्वजनिक रूप से अफसरों पर आरोप लगाते रहे हैं. प्रदेश में अफसरशाही के खिलाफ बोलते हुए बिधूड़ी ने कहा था कि कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं हो रही है. कांग्रेस कार्यकर्ता की थानेदार तक नहीं सुनता.
सवाल ये है कि नेताओं और अफसरों के बीच बढ़ती खाई का असर प्रदेश के कामों पर पड़ेंगे. उन योजनाओं पर पड़ेगा जो जनता के बीच लागू की जानी हैं. उन जनहित के मुद्दों पर पड़ेगा, जिसका क्रियान्वयन अफसरों को करना है. नेताओं और अफसरों की लड़ाई में सबसे ज्यादा नुकसान जनता का है. ऐसे में प्रदेश में होने वाले इन विवादों को जल्द से जल्द रोके जाने की जरूरत है.
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