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राजस्थान सरकार (Rajasthan Govt) अपने सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले के तहत आने वाले दिनों में सवर्ण जातियों के उत्थान और प्रगित के लिए नई योजनाएं लागू कर सकती है. पहले चरण में सरकार का फोकस ब्राह्मणों (Brahmin Community) पर है. विप्र कल्याण बोर्ड ने ब्राह्मण समाज की आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक स्थिति जानने के लिए आमजनता से जानकारी और सुझाव मांगे हैं. इसके लिए बाकायदा विज्ञापन भी जारी किया गया है.
विप्र बोर्ड दो महीने तक आमजनता से सुझाव जुटाने के बाद इसकी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपेगा. इसके बाद सरकार के स्तर पर ब्राह्मण समाज से जुड़ी समस्याओं और जीवनशैली में सुधार को लेकर कार्ययोजना तैयार की जाएगी. राज्य सरकार की तरफ से पहली बार इस तरह की जातिगत योजना तैयार की जा रही है.
ब्राह्मण समाज से विप्र बोर्ड की तरफ से रोजगार, शिक्षा और सामाजिक कुरीतियों को लेकर सुझाव मांगे गए हैं. विप्र बोर्ड ने ब्राह्मणों को धार्मिक कार्यों में लिप्त जाति मानते हुए उसी के हिसाब से सुझाव देने को कहा है. इसमें मंदिरों में पूजा-अर्चना, कर्मकांड की जानकारी भी मांगी गई है. सुझाव 10 सितंबर तक दिए जा सकेंगे. सुझाव मिलने पर उसका विशेषज्ञों से अध्ययन भी करवाया जाएगा.
प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों का अलग वर्चस्व है. कई विधानसभा सीटों को यह जाति सीधे-सीधे प्रभावित करती है. अब तक ब्राह्मण और वैश्य समाज को बीजेपी का वोट बैंक माना जाता है. कहा जा रहा है कि सरकार के इस प्रयोग के पीछे बड़ा राजनीति एजेंडा छुपा हुआ है. राजस्थान में दस प्रतिशत से ज्यादा मतदाता इस जाति के है. जो कभी कांग्रेस से जुड़े हुए थे.
परंपरागत रूप से ब्राह्मण समुदाय कांग्रेस का वोटर रहा है, लेकिन हिंदुत्व और बीजेपी के उभार के साथ इस समुदाय ने भी अपना पाला बदल लिया. पिछले कुछ चुनावों से यह समुदाय मुख्य रूप से बीजेपी को वोट करता रहा है, लेकिन जटिल जातीय समीकरण में ये बीजेपी में भी फिट नहीं बैठ पा रहा है. अब एक बार फिर से कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इस जाति को वापस लुभाने की कवायद शुरु कर दी है.
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