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सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता और उनके परिवार के सदस्यों के फोन टैप कराने की छत्तीसगढ़ सरकार की कार्रवाई पर कड़ा रुख अपनाया है. छत्तीसगढ़ से इस फोन टैपिंग मामले में सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'किसी के लिए कोई निजता बची ही नहीं है. इस देश में आखिर क्या हो रहा है?'
जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने राज्य सरकार को सारे मामले में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा कि इसमें ये भी स्पष्ट किया जाए कि फोन की टैपिंग का आदेश किसने दिया और किन कारणों से दिया?
पीठ ने सुप्रीम कोर्ट में आईपीएस अधिकारी का प्रतिनिधित्व कर रहे एडवोकेट के खिलाफ अलग से एफआईआर दायर किए जाने पर भी नाराजगी व्यक्त की और एडवोकेट के खिलाफ जांच पर रोक लगा दी. पीठ ने कहा कि इस मामले में अगले आदेश तक कोई कदम नहीं उठाया जाएगा.
पीठ ने आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी से कहा कि इस मामले में छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नाम घसीट कर इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जाए.
कोर्ट ने निर्देश दिया कि याचिका में पक्षकारों की लिस्ट से मुख्यमंत्री का नाम हटा दिया जाए. सीनियर आईपीएस अधिकारी ने अपनी याचिका में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को भी एक डिफेंडेंट बनाया है.
आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता साल 2015 में नागरिक आपूर्ति घोटाले की जांच के दौरान गैरकानूनी तरीके से फोन टैपिंग और भारतीय टेलीग्राफ कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने के आरोपी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 25 अक्टूबर को राज्य सरकार को गुप्ता और उनके परिवार के टेलीफोन सुनने या टैप करने से रोक दिया था और आईपीएस अधिकारी को उसके खिलाफ दर्ज मामलों में गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया था.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन एफआईआर को रद्द करने से इंकार कर दिया था. इनमें से एक मामला एक ट्रस्ट की ओर से एफसीआरए के उल्लंघन के बारे में हैं. ये ट्रस्ट आंख का एक अस्पताल चलाता है जिसकी स्थापना गुप्ता के पिता ने की थी.
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