Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019States Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019यूपी में कोरोना का जुल्म, ऊपर से सिस्टम का सितम-पूरी क्रोनोलॉजी

यूपी में कोरोना का जुल्म, ऊपर से सिस्टम का सितम-पूरी क्रोनोलॉजी

यूपी में ‘सिस्टम’ किस कदर अपने बनाए नियम खुद बदल रहा है कुछ उदाहरण देखिए...

अभय कुमार सिंह
राज्य
Updated:
लॉकडाउन, CMO लेटर से ऑक्सीजन सिलेंडर... UP के ‘सिस्टम’ का U-टर्न
i
लॉकडाउन, CMO लेटर से ऑक्सीजन सिलेंडर... UP के ‘सिस्टम’ का U-टर्न
null

advertisement

कोरोना से त्राहिमाम के बीच दिल्ली, मुंबई, यूपी, बिहार से लेकर देश के शहर-शहर 'सिस्टम' की चर्चा है. ये 'सिस्टम' मौसम जैसा है, बदलने में देर नहीं लगाता. यूपी में तो 'सिस्टम' की कहानी ऐसी है कि अगर 'हॉरर कहानी' आपने सुना दी और 'सिस्टम' को ये कहानी पसंद नहीं आई तो आप नप भी सकते हैं. लेकिन 'सिस्टम' से यूपी की जनता को शिकायत हैं कि या तो नियम बनाने से पहले लोगों की दिक्कतों के बारे में नहीं सोचा जाता है. या नियम-कानून अपनी मर्जी के हिसाब से कभी बनाए और हटाए जाते हैं.

इस 'सिस्टम' के कुछ उदाहरण समझते हैं

लॉकडाउन को पहले ना, अब हां क्यों?

1 अप्रैल को यूपी में कोरोनावायरस के 2600 डेली केस आए थे. 19 अप्रैल को 28,237 मामले सामने आए. 19 अप्रैल को यूपी पंचायत के दूसरे चरणों के चुनाव भी थे, अभी तीसरा, चौथा चरण होना था. नतीजे भी आने थे.

इसी बीच 19 अप्रैल को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बढ़ते मामलों को देखते हुए यूपी के 5 शहरों में 26 अप्रैल से लॉकडाउन के निर्देश दिए. यूपी सरकार अड़ गई और शाम को ही सुप्रीम कोर्ट पहुंची, अगले दिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. कहा गया कि लोगों की जिंदगी और आजीविका दोनों का ख्याल रखकर यूपी सरकार लॉकडाउन नहीं लगाना चाहती.

इसके बाद नाइट कर्फ्यू का ऐलान हुआ. बाद में ये कर्फ्यू शुक्रवार से मंगलवार तक लगने लगा और इस बार इसे शुक्रवार से लेकर गुरुवार तक बढ़ा दिया गया है. अब इसे 10 मई तक बढ़ा दिया गया है.. पंचायत चुनाव की स्थिति ये है कि अब चारों चरणों के चुनाव हो चुके हैं और नतीजे आ चुके हैं. मतलब चुनाव संपन्न हो चुका है, राज्य में लॉकडाउन है.

CMO के रेफरल लेटर पर सवाल पर सवाल, फिर सफाई पर सफाई

कोरोना वायरस की इस दूसरी लहर में लोग बीमारी से परेशान तो दिखे ही, साथ ही बीमार हेल्थ सिस्टम से भी वो खफा नजर आ रहे हैं. सोशल मीडिया खोलिए आपको तमाम लोग ऐसे मिल जाएंगे जो अस्पतालों में एक-एक बेड के लिए गुहार लगा रहे हैं. मिन्नतें कर रहे हैं, आम जनता ही नहीं नेता, विधायक, गजेटेड ऑफिसर भी ऐसे लोगों की लिस्ट में हैं.

ऐसे में लखनऊ में सीएमओ रेफरेंस लेटर की भी गूंज थी. एक सिस्टम बना था जिसके तहत बिना सीएमओ के लेटर के मरीजों को सरकारी या प्राइवेट अस्पतालों में जगह नहीं मिल रही थी. इस पर प्रियंका गांधी समेत विपक्ष ने खूब सवाल उठाया. साथ ही सत्ताधारी पार्टी के लखनऊ से सांसद कौशल किशोर ने चिट्ठी लिख, ट्वीट कर कहा कि इस सीएमओ रेफरल लेटर की वजह से गंभीर मरीज भी अस्पतालों में एडमिट नहीं हो पा रहे हैं और उन्हें जान गंवानी पड़ रही है.

इन कथित नियमों पर सफाई आई. करीब-करीब एक महीने बाद 22 अप्रैल को इसपर निर्देश आया. सरकार का कहना था कि प्राइवेट हॉस्पिटलों में रेफरल लेटर नहीं, बल्कि इंटीग्रेटेड कोविड कमांड सेंटर पर कॉल करने के बाद भर्ती कराने का नियम था. 22 अप्रैल को नए आदेश में बताया गया कि प्राइवेट अस्पताल कोरोना मरीजों को उनकी पॉजिटिव रिपोर्ट के आधार पर भर्ती कर पाएंगे. अब सिर्फ 10 फीसदी बेड्स को ही इंटीग्रेटेड कोविड कमांड सेंटर के लिए आरक्षित रखा जाएगा.

किरकिरी इसपर जारी रही. फिर 30 अप्रैल को यूपी के अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद का बयान आता है, उनका कहना है कि सीएमओ रेफरल के नाम की कोई चीज नहीं है, ये भ्रामक बात है. शासनादेश के द्वारा जितने भी निजी अस्पताल हैं, वहां किसी भी तरह भर्ती के लिए किसी रेफरेंस की जरूरत नहीं है. जहां भी निजी अस्पताल में बेड है, वहां किसी भी मरीज को भर्ती कराया जा सकता है.जो सरकारी अस्पताल हैं, वहां पर भी जो खाली बेड हैं, 30 फीसदी बेड पर कोविड कमांड सेंटर के रेफरेंस की जरूरत नहीं होती है. केवल जो सरकारी अस्पतालों की जहां पर पूरा खर्च सरकार वहन करती है, ऐसे अस्पतालों की 70 फीसदी सीट को इंटीग्रेटेड कोविड कमांड सेंटर के तहत मरीज की स्थिति का आकलन कर बेड की व्यवस्था की जाती है. साफ है ‘30%’ ही सफाई है.

ऑक्सीजन सिलेंडर पर नियम, मरीज कहां जाए?

ये न्यूज एजेंसी ANI की आज (3 मई) की रिपोर्ट है. राज्य की राजधानी लखनऊ के इस ऑक्सीजन रिफील सेंटर पर लोग सुबह 4 बजे से खड़े हैं. ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहा है.

अस्पतालों में बेड को लेकर मशक्कत है. ऐसे में प्रदेश की योगी सरकार की तरफ से 21 अप्रैल को आदेश आया कि 'अति गंभीर परिस्थिति को छोड़कर किसी भी इंडिविजुअल व्यक्ति को ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं की जाएगी.' इसका मतलब है कि उत्तर प्रदेश में अब हर व्यक्ति को मेडिकल ऑक्सीजन नहीं मिल पाएगी. इस आदेश पर तुरंत सवाल उठने लगे तो डॉक्टर की पर्ची पर सिलेंडर देने की बात सामने आई. लेकिन अब भी न तो लोगों की कतार इन ऑक्सीजन सिलेंडर वाली एजेंसियों के सामने से खत्म हो रही है और न ही ये ऑक्सीजन की किल्लत.

‘अति गंभीर परिस्थिति’ वाली शर्त लगाने के बाद से कई लोगों की शिकायत ये आई कि अपनों की तबीयत जब बिगड़ने लग रही है, ‘ऑक्सीजन लेवल डाउन हो जा रहा है तो पहले किसी से सर्टिफिकेट बनवाएं अति गंभीर परिस्थिति कि इलाज कराएं. बेड नहीं अस्पताल में, तो घर में ऑक्सीजन सिलेंडर का ही सहारा है ना!’
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

सरकार की तरफ से तर्क ये है कि हर किसी को ऑक्सीजन की जरूरत नहीं होती है. ऐसे में डॉक्टर अगर लिखें कि ऑक्सीजन की जरूरत है तब ही ऑक्सीजन मरीज को दिया जाना चाहिए.

कोविड टेस्टिंग में प्राइवेट लैब पर विवाद, बाद में आदेश जारी

हाल ही में ऐसी कई रिपोर्ट्स आईं कि लखनऊ में प्राइवेट लैब कोरोना वायरस की टेस्टिंग से मना कर रहे हैं. क्विंट हिंदी ने 19 अप्रैल को पब्लिश अपनी एक रिपोर्ट में कई प्राइवेट लैब से बात कर इसकी पुष्टि भी की. लेकिन ये लैब साफ-साफ नहीं बता सके कि आखिर इन्हें टेस्ट बंद करने के लिए किसने कहा था. इस पर खूब बहस हुई. 24 अप्रैल को लखनऊ की डीएम प्रभारी रोशन जैकब की तरफ से ये आदेश जारी हुआ कि लखनऊ के प्रमुख 24 अस्पतालों और निजी लैब में कोविड टेस्ट कराए जाएंगे. ये सभी निजी संस्थान और लैब जांच नहीं कर रहे थे.

‘नोएडा में बिना आईडी कार्ड नहीं होगी जांच’

टेस्ट की बात करें तो नोएडा का उदाहरण लोगों की दिक्कतों की तस्वीर दिखाता है. जिला अस्पताल में सिर्फ उन्हीं लोगों का टेस्ट किया जा रहा है, जिन लोगों के पास स्थानीय पहचान पत्र है. ऐसे में कई लोग सूचना के अभाव में टेस्ट सेंटर तो चले आते हैं लेकिन फिर निराश होकर उन्हें लौटना पड़ता है.

पूरी रिपोर्ट यहां पढ़िए-

कोविड टेस्ट के लिए नोएडा जिला अस्पताल में कतार, लोगों की आपबीती

'ऑक्सीजन, जरूरी दवाओं, बेड-अस्पताल की कमी नहीं?'

राज्य सरकार की तरफ से ऐसा दावा लगातार किया गया है कि प्रदेश में ऑक्सीजन, बेड, अस्पताल पर्याप्त मात्रा में हैं. लेकिन इन दावों पर खुद बीजेपी के कई नेता, सांसद, विधायक, मंत्री हैं जो वो लगातार सवाल उठा रहे हैं. ताजा उदाहरण है, 2 मई को रूधौली के बीजेपी विधायक संजय प्रताप जायसवाल का मुख्यमंत्री के नाम खत. इस लेटर में उन्होंने लिखा है कि जिले में रेमेडिसिवर इंजेक्शन, ऑक्सीजन, वैक्सीन, बेड की कमी है. जिस वजह से लोगों को परेशान होना पड़ रहा है और लोगों का भरोसा केंद्र, राज्य सरकारों के प्रति घट रहा है.

  • इससे पहले श्रम कल्याण राज्यमंत्री सुनील भराला मेरठ के अस्पतालों में ऑक्सीजन, बेड और रेमेडिसिवर की कमी को लेकर खत लिख चुके हैं.
  • मेरठ-हापुड़ से सांसद राजेंद अग्रवाल भी अपने इलाके में ऑक्सीजन की खामी पर मुख्यमंत्री को अपनी बात बता चुके हैं.
  • भदोही से बीजेपी विधायक दीनानाथ भाष्कर जिले में हेल्थ सिस्टम की खामी की वजह से बीजेपी नेता की जान जाने की बात मुख्यमंत्री को लेटर के माध्यम से बता चुके हैं.
  • बरेली कैंट से बीजेपी विधायक अपने फेसबुक पोस्ट के जरिए जिले में ऑक्सीजन की कमी पर ध्यान खींच रहे हैं और जल्द मदद की गुहार लगा चुके हैं.
  • लखनऊ के मोहनलाल गंज से बीजेपी सांसद कौशल किशोर कई बार सीएम योगी को चिट्ठी लिखकर कभी लखनऊ के अस्पतालों में बेड की खामियों तो कभी ऑक्सीजन की कमी की बात कह चुके हैं.

कुल मिलाकर 'सिस्टम' जिन हिस्सों से बना है वो मानने को तैयार हैं कि कमी है और तुरंत सुधार की जरूरत है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 03 May 2021,08:11 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT