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तमिलनाडु (Tamil Nadu) के श्रम विभाग ने अंतरराज्यीय प्रवासी (ISM) मजदूरों और अंतर्राज्यीय निर्माण मजदूरों की गणना के लिए एक व्यापक सर्वेक्षण करने का फैसला किया है. आधिकारिक अनुमान के अनुसार, तमिलनाडु में ISMऔर अंतर्राज्यीय निर्माण मजदूरों की कुल संख्या 67.74 लाख है.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस (TNIE) की रिपोर्ट के अनुसार, जो संस्थान पांच या अधिक प्रवासी मजदूरों को रोजगार देते हैं, उन्हें अंतरराज्यीय प्रवासी कामगार (रोजगार और सेवाओं की शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1979 के तहत लाइसेंस लेना होगा.
तमिलनाडु श्रम विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि "हालांकि निर्माण कार्य, कारखानों, कपड़ा मिलों, स्कूलों, कॉलेजों और आतिथ्य क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों के रिकॉर्ड उपलब्ध हैं, लेकिन किराने की दुकानों, चाय की दुकानों और भोजनालयों में कार्यरत लोगों के लिए ऐसा कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है."
तमिलनाडु अपने संपन्न उद्योगों, विविध रोजगार अवसरों, विशेष रूप से निर्माण, विनिर्माण, टेक्सटाइल, सर्विसेज और मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए जाना जाता है. देश के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर यहां आते हैं.
बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के साथ-साथ तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों से प्रवासी श्रमिक बेहतर आजीविका की तलाश में यहां आते हैं. अंतरराज्यीय और अंतर्राज्यीय दोनों तरह के प्रवासी मजदूरों ने राज्य के विकास को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हालांकि, इन श्रमिकों को अक्सर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उनके सामाजिक-आर्थिक कल्याण में बाधा बनती हैं.
कई कानून हैं जैसे:
अंतरराज्यीय प्रवासी कामगार (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1979
तमिलनाडु मैनुअल श्रमिक (रोजगार और काम की शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1982
भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (विनियमन) रोजगार और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1996
न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948,
तमिलनाडु दुकानें और प्रतिष्ठान अधिनियम, 1947
ये कानून देश में प्रवासी कार्यबल की रक्षा के लिए हैं. इसके बावजूद मजदूरों को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
नवंबर 2018 में चक्रवात गाजा के बाद, विशेष रूप से उत्तरी राज्यों के प्रवासियों को तमिलनाडु में राहत शिविरों तक पहुंचने में कठिनाइयों का सामना करने की खबरें मिलीं. कुछ प्रवासियों ने कथित तौर पर आरोप लगाया कि भाषा बाधाओं और भेदभाव के कारण उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया गया या सीमित सहायता ही मुहैया कराई गई.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 में चेन्नई में एक 11 मंजिला निर्माणाधीन इमारत ढह गई, जिसमें कम से कम 47 लोगों की मौत हुई थी. मृतकों में प्रवासी मजदूर भी शामिल थे.
2020 में कोरोना महामारी और लॉकडाउन के दौरान, तमिलनाडु में कई प्रवासी मजदूरों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. नौकरी छूटने और आवाजाही पर प्रतिबंध के कारण, उन्हें आवश्यक सेवाओं, पर्याप्त भोजन और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने के लिए संघर्ष करना पड़ा. आय में अचानक कमी और समर्थन न मिलने के कारण कई मजदूरों को अपने गृह राज्यों तक पैदल ही लंबा सफर करना पड़ा. विशेषकर शहरी क्षेत्रों में मकान मालिकों और प्रवासी किरायेदारों के बीच संघर्ष के कई मामले सामने आए, जिनमें अनुचित बेदखली, अत्यधिक किराया वृद्धि और उनकी प्रवासी स्थिति के आधार पर भेदभाव शामिल है.
तमिलनाडु श्रम विभाग के अधिकारी ने बताया कि "प्रवासी मजदूरों से उनके आवास, स्वास्थ्य सुविधाएं, नौकरियों के प्रकार, खाद्य सुरक्षा, जीवन स्तर, बैंक डिटेल्स और आधार की जानकारी जुटाई जाएगी. डाटा का उपयोग प्रवासी मजदूरों के कल्याण और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत फैसलों के लिए किया जाएगा.
इसके अलावा, इन राज्यों के प्रवासी मजदूर अक्सर असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं, जहां शोषण, असुरक्षित तरीके से काम की परिस्थिति और कम मजदूरी प्रचलित है. इसके साथ ही स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की सीमित पहुंच भी असुरक्षा का भाव बढ़ा देती है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले प्रवासी मजदूरों के पास शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट की सीमित पहुंच होती है, जिसकी वजह से उन्हें कम वेतन वाली नौकरियां और शोषण का शिकार होना पड़ता है. आवास की भी एक समस्या है, जिसकी वजह से प्रवासी मजदूर भीड़भाड़ और कम सुविधा वाले जगहों पर रहने को मजबूर हैं. शहरी क्षेत्रों में उनके पास मजबूत सामाजिक समर्थन नेटवर्क का भी अभाव है, जिससे उनके शोषण का खतरा और बढ़ जाता है.
सर्वेक्षण से प्रवासी मजदूरों की जरूरतों और आकांक्षाओं का पता चलेगा, जिससे सरकार लक्षित नीतियां तैयार कर सकेगी.
सर्वेक्षण से सरकार के साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने में सक्षम होने की भी उम्मीद है. यह नीति निर्माताओं को सटीक और अप-टू-डेट डेटा प्रदान करेगा, जिससे साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने में सुविधा होगी. इस डेटा आधारित अप्रोच से संसाधनों के उपयोग, प्रभावी सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों को डिजाइन करने और फंड के बेहतर इस्तेमाल में मदद मिलेगी. इसके साथ ही सर्वेक्षण से प्रवासियों के सामने आने वाली सामाजिक बाधाओं को समझने में मदद मिलेगी और स्थानीय समुदायों में उनके एकीकरण को बढ़ावा देने, अपनेपन की भावना को बढ़ावा देने और भेदभाव पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी.
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