advertisement
एक साथ तीन तलाक असंवैधानिक, 5 जजों की बेंच का 3-2 से फैसला
जस्टिस नरीमन, कुरियन और ललित ने कहा असंवैधानिक
चीफ जस्टिस खेहर और जस्टिस नजीर ने ठहराया संवैधानिक
ट्रिपल तलाक पर्सनल लॉ का हिस्सा नहीं हो सकता: SC
लॉ कमिशन सरकार को दे सुझाव
ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. इस मामले पर पांच जजों की संवैधानिक पीठ में से 3 जजों ने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक बताया. इस फैसले का मतलब है कि कोर्ट की तरफ से ट्रिपल तलाक को बहुमत के साथ खारिज कर दिया गया है.
ये भी पढ़ें-- शायरा बानो: वो औरत जिसने तीन तलाक को अंजाम मानने से इंकार कर दिया
तीनों जजों ने चीफ जस्टिस खेहर और जस्टिस नजीर की राय से अलग राय रखते हुए कहा कि अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है. कोर्ट ने मुस्लिम देशों में ट्रिपल तलाक पर लगे बैन का जिक्र किया और पूछा कि भारत इससे आजाद क्यों नहीं हो सकता?
सबसे पहले चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने अपना फैसला पढ़ा. उन्होंने कहा कि तीन तलाक संविधान के आर्टिकल 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन नहीं है. उन्होंने कहा कि ये प्रथा 1000 सालों से चली आ रही है.
ये भी पढ़ें- शाह बानो से शायरा बानो तक: मुस्लिम महिलाओं की लड़ाई की कहानी
चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस नजीर ने कहा कि सरकार को इस मुद्दे पर दखल देना चाहिए और 6 महीने में कानून बनाना चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि जब तक कानून नहीं बनता है तब तक तीन तलाक पर स्टे जारी रहेगा. जस्टिस खेहर ने कहा कि सभी पार्टियों को राजनीति से अलग हटकर इस मामले पर फैसला लेना चाहिए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि इस फैसले से महिलाओं को बराबरी की हक मिलेगा.
कोर्ट में याचिका दायर करने वालीं शायरा बानो ने फैसले का स्वागत और समर्थन करते हुए कहा, “मुस्लिम महिलाओं और उनके बच्चों के लिए ये ऐतिहासिक दिन है. इससे उनकी स्थिति में सुधार होगा.”
इस बीच AIMIM के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इसे जमीन पर उतारना एक बहुत बड़ा काम होगा.
बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने ट्वीट कर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “ये फैसला जीत और हार का नहीं है. ये मुस्लिम महिलाओं के समानता के अधिकार और मूलभूत संवैधानिक अधिकार की जीत है”
वहीं, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हमें खुशी है और सरकार जरूर कानून बनाएगी.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से मुस्लिम महिलाओं में खुशी का माहौल है. लखनऊ में मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने मिठाई बांटकर फैसले का स्वागत किया.
जानते हैं परत-दर-परत 'तीन तलाक' और इस केस से जुड़ी हर खास बात:
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 11 मई से इस मामले में सुनवाई शुरू की थी. 6 दिनों तक ये सुनवाई चली. इस दौरान कोर्ट ने ये भी साफ किया था कि वो संभवत: 'बहुविवाह' के मुद्दे पर विचार नहीं करेगा और कहा कि वो केवल इस विषय पर गौर करेगा कि तीन तलाक मुस्लिमों द्वारा ' 'लागू किए जाने लायक ' ' धर्म के मौलिक अधिकार का हिस्सा है या नहीं.
अब इस मामले का फैसला मंगलवार को आना है. कोर्ट की संविधान पीठ में 5 अलग-अलग धर्म के जज शामिल हैं.
तीन बार तलाक कहने पर तलाक को मान्यता देने वाली इस परंपरा के खिलाफ आवाजें काफी सालों से उठती चली आई हैं. लेकिन, इसका नया 'दौर' 7 अक्टूबर, 2016 को शुरू हुआ. इसी दिन राष्ट्रीय विधि आयोग ने 16 सवालों की एक सूची प्रकाशित की, जिसमें भारत के लिए एक समान नागरिक संहिता की जरूरत पर लोगों की राय मांगी गई है.
सभी धर्मों में प्रचलित निजी कानूनों में लोगों की लैंगिक (Gender) समानता के संबंध में राय जानने के अलावा एक सवाल ‘तीन तलाक’ के संबंध में भी पूछा गया. जनता से पूछा गया है कि क्या ट्रिपल तलाक की प्रथा को जारी रखना चाहिए या खत्म करना चाहिए या फिर इसमें संशोधन करना चाहिए.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड नाराज
‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ ने कानूनी पैनल के इस प्रयोग की आलोचना की. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि विधि आयोग स्वतंत्र रुप से काम नहीं कर रही, जिसने उसी दिन सुप्रीम कोर्ट में ट्रिपल तलाक कानून का विरोध किया. इस मुद्दे पर दायर याचिका के जवाब में केंद्र ने कहा है कि इस प्रथा को धर्म के अहम हिस्से के रुप में नहीं माना जा सकता है.
जानकारी:
2015: इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के हालात के बारे में चिंता जाहिर की, साथ ही कहा कि मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक, निकाह हलाला जैसी प्रथाओं पर सुनवाई होनी चाहिए. इसके बाद अब तक सिर्फ तीन तलाक के मुद्दे पर ही सुनवाई हो सकी है.
30 मार्च, 2017: तीन तलाक से जुड़ी कुल 7 याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई को संविधान पीठ को सौंप दिया. 7 याचिकाओं में से 5 याचिका मुस्लिम महिलाओं ने दायर की थी, जिनमें मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देते हुए इसे असंवैधानिक बताया गया. इस याचिका को समानता की खोज vs जमात उलेमा-ए-हिंद नाम दिया गया है.
ये भी पढ़ें: तीन तलाक का मामला SC ने संवैधानिक पीठ को सौंपा
11 मई-18 मई, 2017: सुप्रीम कोर्ट में लगातार 6 दिन सुनवाई चली, दोनों पक्षों को अपनी-अपनी बात रखने का समय दिया गया. जानते हैं दोनों पक्षों के कुछ खास दलीलों के बारें में:
पहले दिन सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्ष के सामने रखे दो सवाल
जानकारी:
22 अगस्त, 2017: सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाने जा रहा है कि तीन तलाक कानूनन जाएज है या नहीं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)