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Etah: 50 गांवों में पेयजल संकट, योजनाएं फेल- उद्योगों पर पानी खारा करने का आरोप

एटा के अधिकतर गांवों में खारा पानी आता है जो दूर दूर जा कर लाना पड़ता है, जल संकट की वजह से लोग पलायन को मजबूर.

शुभम श्रीवास्तव
न्यूज
Updated:
<div class="paragraphs"><p>Etah: 50 गांवों में पेयजल संकट, योजनाएं फेल- उद्योगों पर पानी खारा करने का आरोप</p></div>
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Etah: 50 गांवों में पेयजल संकट, योजनाएं फेल- उद्योगों पर पानी खारा करने का आरोप

फाइल फोटो

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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के एटा (Etah) के करीब 50 गांव भयानक पेयजल संकट का सामना कर रहे हैं. इन गावों में कई सालों से पीने के पानी की भारी समस्या है. कुछ गांवों में पानी तो है लेकिन खारा पानी है. आज भी लोगों को कई किलोमीटर दूर जाकर पानी लाना पड़ता है. गांव वालों का आरोप है कि कुछ फैक्ट्रियों के कारण पानी खारा हुआ है. इसके बाद कई परेशान लोगों ने पलायन किया कुछ अब पलायन को मजबूर हैं.

क्विंट हिंदी की टीम ने इन गावों में जाकर पड़ताल की और लोगों से बातचीत की है.

ऐटा के जलेसर क्षेत्र के शकरौली, तखावन, नगला अन्नी, शाहनगर टिमरुआ, नगला मोहन समेत कई ग्राम पंचायतें हैं, जहां के करीब 50 गांवों में लोगों को सालों से परेशानी उठानी पड़ रही है. यहां तक कि समस्या की वजह से कई लोग पलायन करने पर मजबूर हैं. पेयजल संकट को दूर करने के लिए योजनाएं तो हैं लेकिन वो इस गांव तक नहीं पहुंच पाई है जो पहुंची वो योजनाएं अधूरी पड़ी हैं.

ग्राम पंचायत शकरौली के 12 गांव, तखावन ग्राम पंचायत के 11 गांव, नगला अन्नी के दो गांव समेत एटा, हाथरस, फिरोजाबाद और आगरा के कुल लगभग 50 गांव आज भी पेयजल संकट से जूझ रहे हैं.

रजानगर गांव में 40 घरों में से 10 घरों से लोग पलायन कर चुके हैं

पेयजल संकट के बीच से कई गांवों से लोगों ने पलायन किया है, आज भी लोग इस परेशानी की वजह से पलायन को मजबूर हैं. राजनगर गांव के 60 वर्षीय रामनाथ सिंह जो गांव में अपना खेत देखने आए थे उन्होंने क्विंट को बताया कि, "हमने 1990 में ही अपना गांव छोड़ दिया था. लगभग 32 साल हो गए लेकिन अब तक गांव में न पीने के लिए पानी है, ना सड़क है, बिजली नहीं है. बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी, खारा पानी पी कर हम बीमार पड़ रहे हैं, बच्चे भी कुपोषण का शिकार हो रहे हैं.

"अभी मेरी शादी 6 जुलाई को हुई है हम तो शादी की वजह से गांव में आए हैं, अब हम और हमारी पत्नी वापस आगरा चलें जायेंगे, यहां पर पीने के लिए खारा पानी मिलता है वो भी बड़ी मुश्किल से, यहां पर पीने का मीठा पानी तक नहीं है तो हम यहां रहकर क्या करते. अगर ये परेशानी हम शादी से पहले अपनी पत्नी को बताते तो हमारी शादी कैसे होती, अब आगरा चले जाएंगे, हमारे गांव में 40 घर है उनमें से 10 परिवार तो गांव छोड़ कर चले गए हैं.
धीरज सिंह, 20 वर्ष, रजानगर, एटा
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जलेसर क्षेत्र का पानी खारा क्यों हो रहा है?

मोहनपुर के फूल सिंह ने क्विंट हिंदी को बताया-

''यहां पर आज से 40 साल पहले मीठा पानी था, आज के समय मे खारा पानी है, जिसका एक कारण हो सकती हैं यहां पर चलने वाली फैक्ट्रियां. शोरा फैक्ट्री, तेजाब से यहां पर रसायन बनाये जाते हैं, उसका सारा वेस्टेज जमीन में जाता है, जिससे यहां का पानी खारा हो गया है, अब हम लोग मीठे पानी को लेने के लिए दूसरे गांव की ओर का सफर करते हैं.''

वहीं पर्यावरण के जानकार डॉ देवाशीष बताते हैं कि "जलेसर क्षेत्र में चलने वाली रासायनिक उद्योगों के जरिये जो वेस्टेज होल के माध्यम से धरती में समाहित किया जाता है इससे पानी खारा ही नहीं बल्कि जहरीला भी बनता है. इससे बुढ़ापा भी जल्दी आने लगता है, हड्डियां खोखली हो जाती हैं, बच्चो में कुपोषण फैलने लगता है और विकलांगता के फैलने का खतरा भी होता है."

उन्होंने कहा कि, "अगर ये चीजें समय रहते नहीं रोकी गई तो आने वाले समय मे इस क्षेत्र में स्थितियां भयावह हो जाएंगी, प्रशासनिक अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, जिससे धरती के अंदर का जल दूषित/जहरीला होता जा रहा है."

ताजमहल के असपास के 10400 स्कायर किमी के क्षेत्र में कोई ऐसा उद्योग नहीं लगाया जा सकता है जिससे जमीन या आसमान के जरिये प्रदूषण फैले. ये क्षेत्र तो वैसे भी ऐसी फैक्ट्रियों और ईंट भट्ठों के लिए प्रतिबंधित है. अगर एटा के जलेसर क्षेत्र में ऐसी फैक्ट्रियां चल रही हैं तो वो गलत हैं, हम एटा जिला प्रशासन से बात करेंगे.
विश्वनाथ शर्मा-रीजनल हेड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड,आगरा
एटा के नगला मन्धा की रीना देवी ने कहा कि, हम लोग शौचालय का प्रयोग नहीं करते हैं. हम लोगों को पानी देखने के लिए तो नसीब तक नहीं होता है तो हम लोग शौचालय में पानी का प्रयोग कैसे कर सकते हैं. हमें रोज दूर-दूर से पानी खोज करके लेकर आना पड़ता है. खारे पानी को पीकर ही हम अपनी प्यास बुझा रहे हैं.

पेयजल को लेकर सरकारी योजनाओं का क्या हुआ?

किसान गौ सेवा दल के प्रदेश अध्यक्ष सतेंद्र सिंह ने कहा कि, योजनाओं के नाम पर सरकारी धन का दुरुपयोग हुआ है. तखावन ग्राम पंचायत के 10 गांवों में लगभग 24 टंकियां हैं, शकरौली पंचायत में 30 टंकिया समेत पूरे क्षेत्र में लगभग 100 से ज्यादा टंकियां बनवाई गई थी जिसमें एक पानी की टंकी में लगभग दस हजार लीटर पानी भर जाता है, बनी हुई ये पानी की टंकिया एक बार चली तक नहीं. टंकियो में अभी तक जमीन से पाइप की फिटिंग नहीं हुई.

गांव की महिला अनीता ने बताया कि, नेता केवल चुनाव के समय वोट लेने के लिए ही आते हैं, लेकिन उस समय सभी कह देंते है हम कराएंगे, लेकिन चुनाव खत्म और नेता आना बंद हो जाते हैं और बात वहीं के वहीं खत्म हो जाती हैं. हम लोग कई बार क्षेत्रीय विधायक संजीव दिवाकर के पास जाते हैं तो विधायक जी घर पर मिलते ही नहीं है, अगर मिल जाएंगे तो कह देते है अगले महीने से काम शुरू करवा देंगे लेकिन होता कुछ नहीं है.

जब जलेसर के एसडीएम अलंकार अग्निहोत्री से बात की तो उन्होंने कहा कि, "हमारे पास तो कोई शिकायत नहीं आई है, आपके पास क्या सबूत है. हमारा काम राजस्व का है आप बीडीओ से बात करिए, ग्राम पंचायतों की समस्या हमारे अधीन नहीं आती हैं."

"हम नलों के पास में वाटर रीचार्ज पॉइंट बनवाएंगे, नालों और तालाबों को साफ करवा कर जल संचयन करवाएंगे. हमने कई बार ये बात जिला स्तरीय बैठक में उठाई है, जल निगम से बात करके पत्र के माध्यम से इस बार हम फिर से अनुरोध करेंगे, जिससे क्षेत्र को लोगों को मीठा जल मिल सके.
बीडीओ महेश चंद्र

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Published: 13 Jul 2022,03:31 PM IST

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