Home News Uttarakhand में लगातार हो रही त्रासदियों को लेकर सवाल उठाना कब से गुनाह हो गया?
Uttarakhand में लगातार हो रही त्रासदियों को लेकर सवाल उठाना कब से गुनाह हो गया?
उत्तराखंड HC में जो लोग लगाने गए थे गुहार, उन्हीं पर क्यों प्रहार?
करन त्रिपाठी & मधुसूदन जोशी
न्यूज
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चमोली जिले में तपोवन सुरंग पर जारी रेस्क्यू ऑपरेशन, 8 फरवरी 2021 की तस्वीर
(फोटो: PTI)
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हमें ऐसा लगा जैसे किसी ने सरे राह हमारे कपड़े उतार दिए हों. हमें अपमानित किया गया. अदालत ने न केवल हमारी याचिका खारिज कर दी, बल्कि इस फैसले ने हमारी गरिमा भी छीन ली.
अतुल सती, पर्यावरण कार्यकर्ता और याचिकाकर्ता
14 जुलाई को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिसमें हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स को दी गई पर्यावरण मंजूरी यानी इन्वायर्नमेंटल क्लियरेंस को रद्द करने की मांग की गई थी. खारिज की गई याचिका में यह तर्क दिया गया था कि फरवरी 2021 में इस क्षेत्र में आई भयावह बाढ़ के बाद ये पर्यावरण स्वीकृतियां बेमानी या अर्थहीन हो गई थीं.
कोर्ट ने न सिर्फ याचिका को खारिज किया बल्कि जिस तरीके से खारिज किया उससे याचिकाकर्ता स्तब्ध रह गए.
कोर्ट ने याचिका खारिज करने के साथ ही, याचिकाकर्ताओं पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया.
रैनी गांव में बाढ़ से पैदा हुई आपदा का दृश्य
फोटो : अतुल सती के फेसबुक से
कोर्ट ने मामले की मेरिट पर फैसला देने के बजाय याचिकाकर्ताओं की विश्वसनीयता पर ही सवाल उठाकर याचिका को खारिज कर दिया. चार पैराग्राफ का एक आदेश में अदालत ने याचिकाकर्ताओं को 'सामाजिक कार्यकर्ता' के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया, उनकी याचिका को 'अत्यधिक प्रेरित' बताया गया और कहा गया है कि वे जनहित याचिका दायर करने के अधिकार का दुरुपयोग कर रहे हैं.
हाईकोर्ट के आदेश में तथ्यात्मक विश्लेषण के बजाय क्रोध या आवेश ज्यादा था. अतुल सती उन पांच याचिकाकर्ताओं में से एक हैं जिन्होंने इस मामले में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. क्विंटको अतुल ने बताया कि अदालत ने इस बात की भी जहमत नहीं उठाई कि वह याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए दावों की सत्यता का परीक्षण कर ले या निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले धैर्यपूर्वक उनकी (याचिकाकर्ताओं) सुनवाई कर ले.
यह याचिका अत्यधिक प्रेरित यानी हाईली मोटीवेटेड प्रतीत हो रही है. ऐसा लग रहा है जैसे कि यह किसी अज्ञात व्यक्ति के इशारे पर दायर की गई है. वह अज्ञात व्यक्ति या जो कोई भी है वह याचिकाकर्ताओं को फ्रंट के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है. इनकी आड़ लिया जा रहा है. इसलिए ऐसे में याचिकाकर्ता किसी अज्ञात के हाथों की कठपुतली मात्र हैं.
उत्तराखंड हाई कोर्ट
उत्तारखंड की इकोलॉजी को बहाल करने की याचिका
जिन पांच याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में अपील की थी उनके नाम हैं; संग्राम सिंह, सोहन सिंह, भवन राणा, अतुल सती और कमल रतूरी. ये सभी चमोली जिले के रैनी और जोशीमठ गांव के रहने वाले हैं. यह वह क्षेत्र है जो लंबे समय से पारिस्थितिक असंतुलन से प्रभावित रहा है. याचिकाकर्ताओं का दावा है कि हाइड्रोपावर प्रोजेक्स विकसित करने के कारण यहां ऐसा हो रहा है.
फरवरी 2007 में रैनी और जोशीमठ के लोगों को ऋषि-गंगा और धौली-गंगा बेसिन की बाढ़ के सबसे बुरे प्रकोप का सामना करना पड़ा था. उस घटना को कई लोग 'चमोली आपदा' भी कहते हैं, उस बाढ़ ने कम से कम 200 लोगों की जान ले ली थी और उसकी वजह से कई लोग विस्थापित भी हो गए थे.
तब से लेकर अब तक चमोली जिले विस्थापित ग्रामीण बाढ़ प्रभावित लोग पुर्नवास व मुआवजे की मांग के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं. लेकिन ऋषि-गंगा और धौली-गंगा घाटियों में हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स पर पुनर्विचार करने में सरकार एक इंच भी पीछे नहीं हटी.
चमोली जिले के प्रदर्शनकारी
फोटो : अतुल सती के फेसबुक से
इतना सबकुछ होने के बाद भी जब कुछ हाथ नहीं लगा तो याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप की आस में हाई कोर्ट का रुख किया. याचिकाकर्ताओं ने तपोवन-विष्णुगढ़ और ऋषि-गंगा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स को दी गई पर्यावरण मंजूरी को रद्द करने और बाढ़ में अपने प्रियजनों को खोने वाले परिवारों के लिए पर्याप्त मुआवजा देने की मांग की थी.
इसके साथ ही याचिकाकर्ताओं ने उत्तराखंड सरकार को प्रभावित क्षेत्रों की इकोलॉजिकल यानी परिस्थितिकीय बहाली के साथ-साथ बाढ़ग्रस्त नदी घाटियों में ब्लास्टिंग और नदी के किनारे खनन पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ रैनी गांव के निवासियों के सुरक्षित पुनर्वास को सुनिश्चित करने के लिए एक निर्देश देने की भी मांग की थी.
याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में यह भी कहा कि एनटीपीसी और ऋषि-गंगा हाइड्रो प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड को 'हानिकारक और अवैज्ञानिक' निर्माण को जारी रखने के लिए आपराधिक लापरवाही मानना चाहिए साथ ही उन्हें ब्लैकलिस्टेड कर दिया जाना चाहिए.
जानबूझकर स्थानीय पारिस्थितिकी को अपूरणीय क्षति पहुंचाने और विभिन्न पर्यावरणीय मानदंडों और सुप्रीम कोर्ट के विशेषज्ञ निकाय द्वारा की गई सिफारिशों के उल्लंघन के लिए एनटीपीसी और ऋषि-गंगा हाइड्रो प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड को हाइड्रोपावर क्षेत्र से ब्लैकलिस्टेड कर दिया जाना चाहिए.
याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर की गई याचिका में पर्यावरण कार्यकर्ता
"वर्षों के संघर्ष को कोर्ट ने मिटा दिया"
याचिकाकर्ताओं का मानना है कि हाई कोर्ट का संवैधानिक कर्तव्य था कि वह मामले के तथ्यों पर फैसला सुनाए न कि उनके चरित्र पर जिन्होंने याचिका दायर की है.
इससे फर्क नहीं पड़ता कि याचिका दायर करने वाला व्यक्ति सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिक नेता या आम आदमी है, अदालत को मामले के विभिन्न पहलुओं के आधार पर अपना फैसला देना चाहिए.
यह कोई पहला मौका नहीं है जब एक्टिविस्टों ने राज्य में हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स को चुनौती देते हुए अदालत का रुख किया है. इससे पहले की बात करें तो इन मामलों में आदलतें डेवलवमेंट प्रोजेक्ट्स को रोकने की हद तक चली गई थीं, लेकिन हमारे मामले में अदालत ने हमारी ईमानदारी पर सवाल उठाने के साथ-साथ हमारी याचिका को अस्वीकृत करने का फैसला किया है.
अतुल सती, याचिकाकर्ता
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याचिकाकर्ता कोर्ट द्वारा उन पर किए गए संदेह, उनकी ईमानदारी और एक्टिविज़्म पर उठाए गए सवाल को लेकर आश्चर्यचकित हैं. उन्होंने क्विंट को बताया कि अपनी पहचान और काम का हलफनामे में सबूत देने के बावजूद अदालत ने उन्हें कार्यकर्ता या 'वास्तविक याचिकाकर्ता' मानने से इनकार कर दिया.
रैनी गांव के प्रदर्शनकारी
फोटो : अतुल सती के फेसबुक से
हम पांच में से 3 याचिकाकर्ता खुद रैनी गांव के रहने वाले हैं. ये वही गांव है जो बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था. रैनी गांव की ग्राम सभा द्वारा लिए गए सर्वसम्मत फैसले के अनुसार ही याचिका को बढ़ाया गया था. हम में से एक (भवन सिंह) ग्राम सभा का मुखिया है और दूसरा (संग्राम सिंह) पंचायत का एक पूर्व सदस्य है, जो पहले भी ऋषि-गंगा हाइड्रो प्रोजेक्ट के खिलाफ इसी हाई कोर्ट में गए थे, लेकिन तब अदालत को उसकी मंशा पर शक क्यों नहीं हुआ?
अतुल सती, याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ताओं का मानना है कि अदालत ने उनके वर्षों के आंदोलन को पूरी तरह से नकार दिया, लेकिन इससे पहले इसी कोर्ट के सामने इनकी याचिकाएं शामिल की गई थीं. अदालत ने उन्हें किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा नियंत्रित की जाने वाली 'कठपुतली' भी कहा. यह उल्लेख किए बिना कि यह व्यक्ति कौन हो सकता है ऐसे में यह बहुत ही गंभीर आरोप है.
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र माने जाने वाले देश का आम नागरिक सोचता है कि वो इंसाफ के लिए अदालत जा सकता है. ऐसे में यह आवश्यक है कि इस तरह के हतोत्साहित करने वाले फैसलों पर पुनर्विचार किया जाए.
संग्राम सिंह, याचिकाकर्ता
हम लड़ते रहेंगे
भले ही याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे अपमानित और विश्वासघात महसूस कर रहे हैं, लेकिन वे रैनी गांव की पारिस्थितिक बहाली के लिए अपनी लड़ाई को जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं. क्विंट को उन्होंने बताया कि उन्हें सैकड़ों ग्रामीणों की वजह से ताकत मिलती है.
रैनी गांव की ग्राम सभा की महिला सदस्य
फोटो : अतुल सती के फेसबुक से
जब हमने कोर्ट के आदेश के बारे में गांव वालों को बताया तो वे इससे इतने आहत हुए कि रोने लगे. उन्हें लगा कि उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाकर 'कुछ गलत' कर दिया और अब सरकार उनका पुनर्वास कभी नहीं करेगी. हालांकि, गांव की महिलाओं ने सभी को एक साथ किया और फिर से सभी को लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया.
अतुल सती, याचिकाकर्ता
इन महिलाओं से प्रेरित होकर अतुल सती कहते हैं कि याचिकाकर्ताओं ने अपनी इस लड़ाई को अगले स्तर तक ले जाने का निर्णय लिया.
याचिकाकर्ताओं ने उत्तराखंड हाई कोर्ट द्वारा याचिका खारिज करने और जुर्माने लगाने वाले आदेश को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करने का फैसला किया है. मुकदमेबाजी में होने वाले खर्च के लिए धन जुटाने का काम भी याचिकाकर्ताओं ने शुरू किया है और इसके लिए समुदाय को प्रेरित भी किया जा रहा है.
रैनी गांव के लोग अब सुप्रीम कोर्ट जाएंगे
फोटो : अतुल सती के फेसबुक से
याचिकाकर्ता अतुल सती का मानना है कि अदालत का एक आदेश उनके वर्षों के संघर्ष को नहीं रोक सकता है. अभी और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है. इसके साथ ही उन्होंने क्विंट से कहा कि न्याय मिलने तक वह रुकेंगे नहीं.