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सोशल मीडिया पर उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) चुनाव से पहले सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के कार्यकाल को लेकर कई तरह के दावे करता एक मैसेज वायरल हो रहा है. वायरल मैसेज में अखिलेश यादव को हिंदू विरोधी साबित करने की कोशिश की गई है और मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगाए गए हैं.
मैसेज में अखिलेश यादव द्वारा मेरठ में 70 हजार करोड़ रुपए की लागत से हज हाउस बनवाने, 500 हिंदू मंदिर तुड़वाने जैसे कई दावे किए गए हैं. क्विंट की वेबकूफ टीम ने इन सभी दावों की एक-एक कर पड़ताल की है. हमारी पड़ताल में सामने आया कि मैसेज में दिए गए आंकड़े सही नहीं हैं.
वायरल हो रहा मैसेज है - अखिलेश यादव के 5 वर्ष का कार्य देखें
#बडी मेहनत से खोज के लिखा गया है । आग की तरह फैला दो...
मेरठ में 70 हजार करोड़ में हज हाउस बनवाया, जो विश्व का सबसे बड़ा हज हाउस है. अलीगढ़ में 4 मस्जिदें बनवायी, मुजफ्फरनगर में 2
मस्जिदें बनवाई, सुल्तान पुर में 1 आलीशान
मस्जिद बनाई, लखनऊ में 7 मस्जिद बनवाई...
2017 में जीतेंगे तो यूपी के सभी जिलों में बनवाएंगे मदरसे मस्जिद और मौलानाओं को देंगे 25 हजार महीना.
हिन्दुओं के लिए एक भी मंदिर नहीं बनवाया. ऊपर से मंदिर तुड़वाए.
मेरठ में काली माता के मंदिर में घण्टा बजाना
बन्द.
शहर में कई मन्दिरों को तुड़वाया. अपने
शासन में 500 से अधिक मन्दिरों को तुड़वाया.
इतना तो औरंगजेब भी नहीं किया होगा जितना
ये सूअर की औलाद अखिलेसुद्दीन ने किया.
20 रामभक्तों पर गोली चलवाकर मरवाया.
मुजफ्फरनगर दंगे में 2013 में 64 हिन्दुओं को
गोली से मरवाया.
अलीगढ़ दंगे में 73 हिन्दुओं को मरवाया. अदि आदि अत्यचार किया...
अब इसे शेयर भी करो ताकि हर हिन्दू समाज जागे और जाने कि ये 21 सदी का औरंगजेब है...
कई फेसबुक ग्रुप्स में ये पोस्ट वायरल है.
क्विंट की वॉट्सऐप टिपलाइन पर भी कई यूजर्स ने ये पोस्ट पड़ताल के लिए भेजा
वायरल हो रहे मैसेज में किए गए दावों की एक-एक कर हमने पड़ताल की है.
हमने मेरठ में हज हाउस से जुड़ी कई मीडिया रिपोर्ट्स सर्च कीं. ऐसी कोई रिपोर्ट हमें नहीं मिली, जिसमें मेरठ के हज हाउस का जिक्र हो. 2016 की कुछ रिपोर्ट्स हमें जरूर मिलीं, जिनसे पता चला कि अखिलेश यादव ने उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद में हज हाउस का उद्घाटन किया था. इस हज हाउस को 51 करोड़ रुपए की लागत से बनवाया गया था.
लोकसभा में दिए गए एक सवाल के जवाब से पता चला कि उत्तरप्रदेश में दो हज हाउस हैं लखनऊ और गाजियाबाद में. मेरठ में हज हाउस होने का जिक्र इस जवाब में भी नहीं है. अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले हज विभाग की ऑफिशियल वेबसाइट पर भी उत्तरप्रदेश के 2 ही हज हाउस बताए गए हैं. लखनऊ और गाजियाबाद.
हमें इंडियन एक्सप्रेस की जून 2015 की एक रिपोर्ट भी मिली, जिसमें बताया गया है कि अखिलेश यादव सरकार वाराणसी में उत्तरप्रदेश का एक तीसरा हज हाउस बनाने का प्लान कर रही थी. हालांकि, ऐसी कोई रिपोर्ट हमें नहीं मिली जिससे पुष्टि होती हो कि ये परियोजना कुछ आगे भी बढ़ी थी.
हमने वाराणसी के एक स्थानीय पत्रकार से संपर्क किया, उन्होंने बताया कि वाराणसी में एक अस्थाई (temporary) हज हाउस है. 2012 की इस रिपोर्ट में भी इस अस्थाई हज हाउस का जिक्र है. हालांकि मेरठ में हज हाउस होने का कोई प्रमाण हमें नहीं मिला.
ये दावा गलत है कि मेरठ में 70 हजार करोड़ रुपए की लागत से हज हाउस बनवाया गया. असल में मेरठ में कोई हज हाउस है ही नहीं.
यहां दावा किया गया है कि अखिलेश यादव ने 2017 में जीतने पर मदरसे मस्जिद बनवाने और मौलानाओं को 25 हजार रुपए महीना देने का वादा किया था. ये सच है या नहीं? इसकी पुष्टि के लिए हमने अखिलेश यादव यानी सपा का 2017 का चुनावी मेनिफेस्टो देखा. अखिलेश यादव ने 22 जनवरी, 2017 को ये मेनिफेस्टो रिलीज किया था. इस दौरान की किसी भी मीडिया रिपोर्ट में हमें ये जिक्र नहीं मिला कि अखिलेश ने मौलानाओं को 25 हजार रुपए महीने देने का वादा किया था. जाहिर है अगर ये दावा किया गया होता तो ये उस वक्त की बड़ी राष्ट्रीय खबर होती.
न्यूज एजेंसी PTI की 22 जनवरी 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक, लैपटॉप का वितरण, कन्या विद्या धन योजना, समाजवादी पेंशन, पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, जानेश्वर मिश्रा आदर्श ग्राम की स्थापना, पुलिस और महिलाओं की हेल्पलाइन में सुधार अखिलेश यादव के मैनिफेस्टो के मुख्य आकर्षण थे. इस मैनिफेस्टो से जुड़ी किसी भी मीडिया रिपोर्ट में हमें मौलानाओं को 25 हजार रुपए देने जैसे किसी वादे का जिक्र नहीं मिला.
हमें एबीपी न्यूूज के ऑफिशियल यूट्यूब चैनल पर मैनिफेस्टो रिलीज करते हुए उनका 33 मिनट का वीडियो मिला. 16 मिनट के बाद अखिलेश यादव को घोषणापत्र पर बात करते हुए सुना जा सकता है. 21 मिनट पर वह औपचारिक तौर पर मैनिफेस्टो पढ़ना शुरू करते हैं.
भाषण में अब अखिलेश गरीब महिलाओं को प्रेशर कूकर, बच्चों को लैपटॉप, महिला पेंशन सीधे अकाउंट में ट्रांसफर होने, किसान कोष में सुधार. कामकाजी महिलाओं के लिए होस्टल, मजदूरों को मिड-डे मील, समाजवादी स्कूल की स्थापना, मुफ्त इलाज की विशेष योजना, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, अल्पसंख्यकों के स्किल डेवलपमेंट, गरीब बच्चों को हर महीने एक लीटर घी, युवाओं को स्मार्टफोन जैसे कई वादे कर रहे हैं. लेकिन, इस भाषण में कहीं भी मस्जिद बनवाने या मौलानाओं को वेतन देने का जिक्र अखिलेश यादव ने नहीं किया है .
वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए ये रिपोर्ट लिखे जाने तक समाजवादी पार्टी ने मैनिफेस्टो जारी नहीं किया है.
जिस तरह मुख्यमंत्री रहते हुए अखिलेश यादव की हज हाउस का उद्घाटन करने की मीडिया रिपोर्ट्स हैं. उसी तरह मंदिरों का उद्घाटन करते अखिलेश की भी मीडिया रिपोर्ट हमें मिलीं.
NDTV की 17 मई, 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक, अखिलेश यादव ने मथुरा में बन रहे दुनिया के सबसे ऊंचे कृष्ण मंदिर की आधारशिला रखी थी. इस वीडियो रिपोर्ट में अखिलेश मंदिर का एक अच्छे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की बात कहते भी दिख रहे हैं.
अखिलेश यादव 2012 से 2016 के बीच उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. हमने इस दौरान की ऐसी मीडिया रिपोर्ट्स सर्च करनी शुरू कीं, जिनसे पता चल सके कि अखिलेश के नेतृत्व वाली सपा सरकार ने मंदिरों को तोड़ने से जुड़ा कोई आदेश जारी किया था या नहीं.
हमें न्यूज एजेंसी PTI की 11 जून, 2016 की एक रिपोर्ट मिली. इसके मुताबिक इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तरप्रदेश सरकार को ऐसे सभी धार्मिक ढांचे हटाने के निर्देश दिए थे, जब सड़कों पर अतिक्रमण कर बनाए गए हैं.
ये निर्देश हाइकोर्ट ने लखनऊ के 19 स्थानीय निवासियों द्वारा दायर की गई एक याचिका के बाद दिए थे. हालांकि, ऐसी कोई रिपोर्ट हमें नहीं मिली जिससे पुष्टि होती हो कि अखिलेश यादव सरकार ने इस आदेश के बाद भी किसी धार्मिक स्थल को हटाने की कार्रवाई की थी या इससे जुड़ा कोई आदेश जारी किया.
2016 के हाईकोर्ट के आदेश का पालन अखिलेश सरकार के बाद सत्ता में आई योगी सरकार ने किया. 13 मार्च 2021 की रिपोर्ट्स के मुताबिक, उत्तरप्रदेश सरकार ने ये आदेश दिया था कि सड़कों पर 1 जनवरी 2011 के बाद अतिक्रमण कर बनाए गए सभी धार्मिक ढांचों को हटाया जाएगा.
न्यूज एजेंसी PTI की सितंबर 2021 की रिपोर्ट में हमें बीजेपी नेता संगीत सोम का बयान मिला. इस बयान में संगीत सोम ने कहा था कि बीजेपी सरकार उन सभी मंदिरों को दोबारा बनवाएगी, जो मस्जिद बनाने के लिए तोड़े गए. हालांकि, सोम ने बयान में ये स्पष्ट नहीं किया कि वो किस मंदिर की बात कर रहे हैं.
ऐसा कोई प्रमाण या रिपोर्ट हमें नहीं मिली जिससे पुष्टि होती हो कि अखलेश के नेतृत्व वाली सपा सरकार ने मदिर तोड़ने का आदेश जारी किया.
अखिलेश यादव सरकार के वक्त की ऐसी कोई मीडिया रिपोर्ट हमें नहीं मिली, जिसमें राम भक्तों पर गोली चलने जैसा कुछ हो. लेकिन, गूगल पर 'रामभक्तों पर गोली' कीवर्ड सर्च करने से हमें कुछ आर्टिकल मिले जिनसे पता चलता है कि 30 अक्टूबर, 1990 को सपा सरकार में कारसेवकों पर पुलिस ने गोली चलाई थी जिसमे कारसेवकों की मौत हो गई थी. ये जिस वक्त हुआ उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (अखिलेश यादव के पिता) थे. इस घटना के दो साल बाद 6 दिसंबर, 1992 में विवादित ढांचे को गिरा दिया गया था
इंडिया टुडे के यूट्यूब चैनल UP Tak में मुलायम सिंह यादव के इंटरव्यू का वो हिस्सा भी है, जिसमें मुलायम सिंह ये स्वीकार रहे हैं कि उनकी सरकार के सामने गोली चलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.
मुजफ्फरनगर दंगे भड़कने की घटना साल 2013 में हुई. यानी अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए, लेकिन इन दंगों से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट्स या सरकारी आंकड़ों में कहीं भी मरने वाले हिंदू और मुस्लिमों की संख्या अलग-अलग नहीं बताई गई है. अलग-अलग रिपोर्ट्स में दंगों में हुई मौतों की संख्या 62 से 65 के बीच बताई गई है.
द क्विंट की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में 62 लोगों की मौत हुई और सात महिलाओं ने उनके साथ बलात्कार होने का आरोप भी लगाया. क्विंट की ग्राउंड रिपोर्ट में उस पहले विवाद के बारे में विस्तार से बताया गया है, जिसने मुजफ्फरनगर दंगों को जन्म दिया.
मुजफ्फरनगर दंगों की शुरुआत हुई शाहनावाज नाम के मुस्लिम युवक की मारपीट के बाद हुई मौत से. शाहनावाज से मारपीट करने वालों में कथित तौर पर गौरव और सचिन शामिल थे, जिनकी हत्या हो गई. आरोप था कि शाहनावाज सचिन-गौरव की रिश्तेदार युवती के साथ छेड़छाड़ करता था, जहां से विवाद शुरू हुआ.
कुल जमा बात ये है कि मुजफ्फरनगर दंगों में हिंदू-मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोगों की हत्या हुई. पहली हत्या मुस्लिम युवक की हुई. ये दावा सही नहीं है कि दंगों में मरने वाले सभी 64 लोग एक ही समुदाय के थे.
इस डेटा के मुताबिक, साल 2013 में उत्तरप्रदेश में सांप्रदायिक दंगों में 62 लोगों की मौत हुई, जिनमें से 42 मुस्लिम और 20 हिंदू थे.
साफ है कि जिस साल में मुजफ्फरनगर दंगे हुए, उस साल में उत्तरप्रदेश में सांप्रदायिक दंगों में मरने वाले मुस्लिमों की संख्या दंगे में मरने वाले हिंदुओं से लगभग दोगुनी थी. ये दावा गलत है कि मुजफ्फरनगर दंगों में मरने वाले सभी 64 लोग हिंदू समुदाय से थे.
हमें सीएम अखिलेश यादव के कार्यकाल के दौरान की अलीगढ़ में हुए ऐसे किसी दंगे की रिपोर्ट नहीं मिली, जिसमें इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई हो, जैसा मैसेज में दावा किया गया है.
अलीगढ़ में सांप्रदायिक दंगा अप्रैल 2006 में हुआ, जब मुलायम सिंह यादव उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इस दंगे में 3 लोगों की मौत हुई थी और 13 घायल हुए थे. इस दंगे की शुरुआत हुई थी एक मंदिर की सजावट को लेकर हो रहे विवाद से. ये विवाद दो समुदायों के बीच हुआ और फिर इसने दंगे का रूप ले लिया.
हमें टाइम्स ऑफ इंडिया की 30 मई 2006 को छपी एक रिपोर्ट भी मिली, जिसमें बताया गया है कि मामले में बीजेपी नेता की हत्या के बाद अचानक हिंसा बढ़ गई थी.
साफ है कि अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के सीएम रहते हुए ऐसा कोई दंगा अलीगढ़ में नहीं हुआ, जिसमें 73 हिंदुओं की मौत हुई हो.
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