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द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) के राष्ट्रपति बनने के बाद से सोशल मीडिया पर डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) के नाम पर एक बयान वायरल हो रहा है. अंबेडकर का बताकर वायरल हो रहे पोस्ट में लिखा है "जिस दिन कोई आदिवासी महिला भारत के सर्वोच्च पद 'राष्ट्रपति' तक पहुंच जाएगी। देश में आरक्षण ख़त्म कर दिया जाना चाहिए।"
अंबेडकर के भाषण, लेख और संसदीय बहसों का रिकॉर्ड विदेश मंत्रालय की ऑफिशियल वेबसाइट पर उपलब्ध है. यहां हमें उनका ऐसा कोई बयान नहीं मिला, जिससे वायरल दावे की पुष्टि होती हो.
प्रोफेसर हरि ने आगे ये भी कहा कि द्रौपदी मुर्मू का नाम राष्ट्रपति चुनाव के लिे नामित होने से पहले कभी ऐसा कोई दावा नहीं किया गया था.
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा बयान है "जिस दिन कोई आदिवासी महिला भारत के सर्वोच्च पद 'राष्ट्रपति' तक पहुंच जाएगी। देश में आरक्षण ख़त्म कर दिया जाना चाहिए।"
हमने डॉ. अंबेडकर के लेखों और भाषणों से जुड़े सभी उपलब्ध वॉल्यूम खंगाले. किसी में भी हमें ऐसा कोई रेफरेंस नहीं मिला, जिससे साबित होता हो कि अंबेडकर ने आदिवासी महिला के राष्ट्रपति बन जाने के बाद आरक्षण खत्म करने की बात कही थी.
आरक्षण पर अपनी राय रखते हुए तब के बॉम्बे में 27 जनवरी 1919 को साउथ बोरग कमेटी के सामने अपनी राय रखते हुए अंबेडकर ने कहा था कि समुदाय से 2 लोगों का प्रतिनिधित्व होना ''न होने से बेहतर है''.
अपने लिखित बयान में उन्होंने तर्क दिया कि "उच्च जाति के हिंदुओं" की उपस्थिति में समुदाय की स्थिति को बदलने के लिए उनके पास कोई शक्ति नहीं होगी.
डॉ. अंबेडकर ने लगातार ये तर्क देते हुए आरक्षण की वकालत की कि पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित सीटों की एक सांकेतिक (सीमित) संख्या उनकी मदद करने के लिए काफी नहीं.
यूके की संसद यानी लंदन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में जनवरी 1931 में अल्पसंख्यक समुदायों से जुड़ी एक रिपोर्ट पेश करते हुए डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि ''अल्पसंख्यक समुदायों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या उनकी जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से जितनी बनती है, उतनी संख्या में होनी ही चाहिए''
डॉ. अंबेडकर और राव बहादुर आर श्रीनिवासन ने 4 नवंबर 1931 को शोषित तबकों के विशेष प्रतिनिधित्व को लेकर एक मेमोरेंडम भी तैयार किया था. यहां अंबेडकर ने दलितों के आरक्षण को लेकर सीटों की संख्या की बजाए अनुपात के हिसाब से आरक्षण पर जोर दिया था. साथ ही ये भी कहा है कि आरक्षण की सीट निर्धारित होने के बाद भी उन्हें (शोषित तबके के लोगों को) आरक्षण की मांग करने का अधिकार होगा. भले ही जनगणना में ये साबित हो जाए कि उनकी आबादी घट रही है.
अंबेडकर के लेखों में हमें आरक्षण का समर्थन करती उनकी कई दलीलें कई बयान मिले. लेकिन, ऐसा कोई बयान हमें नहीं मिला जिसमें उन्होंने कहा हो कि आदिवासी के राष्ट्रपति बनने पर आरक्षण खत्म किया जाना चाहिए. इस दावे से जुड़े कीवर्ड्स हिंदी और अंग्रेजी में सर्च करने पर भी हमें कोई विश्वसनीय रिपोर्ट या दस्तावेज नहीं मिला.
महाराष्ट्र सरकार ने अंबेडकर के लेखों और भाषणों के संकलन के लिए एक प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी. इसी प्रोजेक्ट के तहत 'Dr Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches' के एडिटर प्रोफेसर हरि नारके से हमने संपर्क किया, ये जानने के लिए कि वायरल मैसेज में कितनी सच्चाई है.
अंबेडकर के भाषणों और लेखों के संकलन का वॉल्यूम 17 और 22 एडिट करने वाले प्रोफेसर नारके ने वायरल मैसेज को फेक बताया. साथ ही ये भी कहा कि वो इस तरह की अफवाहें फैलाने वालों की निंदा करते हैं.
प्रो. नारके ने संविधान के अनुच्छेद 334 का जिक्र किया, जो आरक्षण की सीमाओं पर बात करता है. नारके ने कहा कि अंबेडकर ने ऐसा कोई बयान दिया होता तो वो इसी अनुच्छेद में उसे जोड़ते. लेकिन, यहां ऐसा कहीं नहीं लिखा है.
प्रो. नारके ये भी कहते हैं कि
''एक रिसर्चर के तौर पर मैं तुरंत पहचान कर सकता हूं कि जिस तरह की भाषा में ऐसा दावा किया जा रहा है वो सच है या नहीं. अगर किसी को अंबेडकर के बयान का वाकई रेफरेंस साझा करना है, तो सोर्स या संदर्भ बताना होगा.''
प्रोफेसर नारके ने इस बात पर जोर दिया कि ये पहली बार नहीं है जब अंबेकर को लेकर भ्रामक दावा किया जा रहा है. इससे पहले केंद्र मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, उप राष्ट्रपति वैंकेया नायडू और बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने दावा किया था कि बाबा साहब अंबेडकर जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 के खिलाफ होते, जिसे 2019 में हटा लिया गया.
हालांकि, इन दावों का कोई सुबूत नहीं था. इसके अलावा ये भी दावा किया जा चुका है कि बंगाली मुस्लिमों के वोट की वजह से ही अंबेडकर संविधान सभा का हिस्सा बने.
क्विंट की वेबकूफ टीम ने जब इस दावे की पड़ताल की तो सामने आया कि डॉ. अंबेडकर संविधान सभा के गठन के वक्त जरूर बंगाल से सभा के सदस्य चुने गए थे. लेकिन, जिस क्षेत्र से चुने गए थे, वो विभाजन के बाद पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था.
इसके बाद कांग्रेस ने डॉ. भीमराव अंबेडकर को बॉम्बे निर्वाचन क्षेत्र से सदस्यता स्पॉन्सर की थी. यानी जिस वक्त संविधान बनकर तैयार हुआ, अंबेडकर संविधान सभा में बॉम्बे का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, न की बंगाल का.
मतलब साफ है, डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कभी नहीं कहा कि अगर आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन जाती हैं, तो आरक्षण खत्म कर देना चाहिए. इस दावे को सच साबित करता कोई सुबूत हमें नहीं मिला.
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