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जीप पर राइफल के साथ बैठी 4 महिलाओं की 2 फोटो सोशल मीडिया पर इस दावे से शेयर की जा रही हैं कि ये फोटो 1971 में हुए मुक्ति आंदोलन के समय की हैं और ये 'महिला स्वतंत्रता सेनानी' हैं. दावे में कहा गया है कि जब ब्लैक एंड व्हाइट फोटो ली गई तब ये महिलाएं हिंदू थीं. लेकिन जब इनकी रंगीन फोटो खींची गई तो ये महिलाएं इस्लाम अपना चुकी थीं.
हालांकि, पड़ताल में हमने पाया कि पहली फोटो 1961 में ली गई थी. जबकि दूसरी फोटो 2017 में ली गई थी. दूसरी फोटो पहली फोटो का रीक्रिएशन थी. ये फोटो रेनान अमहद ने सोशल मीडिया पर शेयर की थीं. अहमद फोटो में दिख रही महिलाओं में से एक के पोते हैं. उन्होंने क्विंट को बताया कि फोटो में दिख रही महिलाएं न तो स्वतंत्रता सेनानी हैं और न ही हिंदू.
‘The Squint’ नाम के फेसबुक पेज पर ये फोटो शेयर की गई थीं. आर्टिकल लिखते समय तक इस फोटो को 4600 से ज्यादा लाइक मिल चुके हैं.
ये फोटो ट्विटर पर भी इसी दावे के साथ शेयर की गई हैं.
विश्व हिंदू परिषद के प्रवक्ता श्रीराज नायर ने भी इन फोटो को इसी दावे के साथ शेयर किया है.
हमने ब्लैक एंड व्हाइट फोटो को रिवर्स इमेज सर्च करके देखा. हमें ये फोटो Pinterest पर मिली, जिसका कैप्शन था, ''Women are posing with gun in a village trip. Bangladesh (1965) Photo courtesy- Renan Ahmed.
हिंदी अनुवाद- गांव की ट्रिप में महिलाएं बंदूक के साथ पोज दे रही हैं. बांग्लादेश (1965) फोटो कर्ट्सी - रेनान अहमद
कीवर्ड सर्च करने पर हमें ये फोटो ‘Bangladesh Old Photo Archive’ नाम के फेसबुक पेज पर मिली. इसका कैप्शन भी वही था जो Pinterest में लिखा गया था.
इसके बाद, हमने फेसबुक पर रेनान अहमद की प्रोफाइल देखी. हमने पाया कि उन्होंने भी ओरिजिनल फोटो को शेयर किया था. इसका कैप्शन था, '1961'.
अहमद ने क्विंट की वेबकूफ टीम को मैसेज करके बताया कि ये फोटो 1961 में ली गई थी. उन्होंने बताया कि फोटो में दिख रही ''सभी महिलाओं के पति जाने-माने बिजनेसमैन थे. जब वे शिकार करके वापस लौटे तब इन्होंने राइफल के साथ पोज देते हुए फोटो खिंचाई.''
उन्होंने आगे बताया कि रंगीन फोटो, ओरिजिनल फोटो का रीक्रिएशन थी. यानी फिर से वैसा ही माहौल और पोज बनाकर फोटो खींची गई थी. इस फोटो को साल 2017 में लिया गया था. उन्होंने बताया कि सबसे आगे बाईं ओर बैठी महिला उनकी दादी रोकैया अहमद हैं.
अहमद ने अपने परिवार के बारे में बताया की वे अविभाजित बंगाल के कारोबारी लोग थे. इनके दिल्ली, रांची, रायगढ़ और कोलकाता में घर थे. हालांकि, 1947 में हुए बंटवारे के बाद वे बांग्लादेश में आकर बस गए.
उन्होंने अपने दादा और जीप में बैठी दिख रही महिलाओं की और भी फोटो भेजीं. अहमद के दादा ने ही हाल में वायरल हो रही फोटो खींची थी.
हमें बांग्लादेश की दैनिक समाचार वेबसाइट Prothom Alo की एक रिपोर्ट भी मिली. जिसमें इस वायरल हो रहे दावे को खारिज किया गया था.
उन्होंने जीप में बैठी एक महिला की बहू का इंटरव्यू लिया, जिन्होंने इस बात की पुष्टि की कि ये महिलाएं स्वतंत्रता सेनानी नहीं हैं और ये फोटो एक शिकार ट्रिप के दौरान ली गई थी. इन महिलाओं की पहचान आयशा रहमान, रोकैया अहमद, रशीदा अहमद और शाहना अहमद के रूप में की गई है.
मतलब साफ है कि बांग्लादेश की महिलाओं की फोटो गलत दावे से सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही हैं.
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