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दिल्ली में एक साल पहले भड़की जिस हिंसा ने लगभग 50 लोगों की जान ली और हजारों को बेघर किया, दिल्ली हिंसा और इससे जुड़े मुद्दों पर ही बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने न्यूज वेबसाइट द वायर से बात की.
51 मिनट लंबे इंटरव्यू में कपिल मिश्रा ने CAA विरोधी प्रदर्शन और मौजपुर ट्रैफिक सिग्नल पर उनके भाषण के बारे में सवाल पूछे गए. लेकिन इंटरव्यू के दौरान भी कपिल लगातार वह दावे करते रहे जिन्हें कई फैक्ट चेकर्स झूठा साबित कर चुके हैं.
कपिल मिश्रा ने 23 फरवरी, 2020 को दिल्ली में CAA के समर्थन में निकाली गई रैली का नेतृत्व किया था. कपिल ने प्रशासन को बयान दिया था कि अगर प्रदर्शनकारियों को नहीं हटाया गया, तो वे और उनके लोग खुद सड़कों पर उतरेंगे.
द वायर की पत्रकार इस्मत आरा और अजय आशीर्वाद ने कपिल के कई दावों को इंटरव्यू के दौरान सही भी करने की कोशिश की. इंटरव्यू के दौरान कपिल मिश्रा द्वारा किए गए ऐसे झूठे दावों का सच जानिए.
कपिल मिश्रा से जब सवाल किया गया कि वे सिर्फ एक ही समुदाय की मदद क्यों कर रहे हैं? तो जवाब में उन्होंने कहा कि वे उस समुदाय की मदद कर रहे हैं जिसे सबने इग्नोर किया. कपिल मिश्रा ने आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार सिर्फ वक्फ बोर्ड के जरिए मुस्लिमों की मदद कर रही है.
हालांकि द क्विंट की पड़ताल में सामने आया कि कपिल मिश्रा का यह बयान तथ्यों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता. हिंसा के बाद ही दिल्ली सरकार ने बिना किसी समुदाय विशेष का उल्लेख किए पीड़ितों के परिवार के लिए मुआवजे की घोषणा की थी..
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दिल्ली दंगों के 2.221 के पीड़ितों को कुल 26 करोड़ रुपए का मुआवजा दिया गया है. हालांकि, कुछ पत्रकारों और वकीलों ने पाया कि मुआवजे की प्रक्रिया बहुत धीमी है और कई परिवारों के नाम हितग्राहियों की सूची में है ही नहीं.
वक्फ बोर्ड भी राहत कार्य में शामिल था. लेकिन, सारी मदद सिर्फ वक्फ बोर्ड के जरिए नहीं हो रही है. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने हिंसा के पीड़ितों को मुआवजा उपलब्धा कराने के लिए नवंबर 2020 में नॉर्थ ईस्ट डेली रायट्स क्लेम कमीशन (NEDRCC) का उद्घाटन किया.
इंडियन एक्सप्रेस और द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली कैबिनेट की तरफ से इंटेलिजेंस ब्यूरो के अंकित शर्मा और हैड कॉन्सटेबल रतन लाल ( दंगे के हिंदू पीड़ितों) के परिवार को भी मुआवजा जारी किया गया है.
अपनी पहचान सार्वजनिक न किए जाने की शर्त पर दिल्ली सरकार के राहय कार्यों को बारीकी से ट्रैक कर रहे एक वकील ने हमें बताया कि अब तक धार्मिक आधार पर पक्षपात की कोई सूचना नहीं आई हैं. हालांकि मुआवजे की प्रक्रिया बहुत धीमी है.
पिछले एक साल की कई रिपोर्ट्स दिल्ली सरकार के मुआवजे की योजना की खामियों को उजागर करती हैं. हालांकि, ऐसी कोई विश्वसनीय रिपोर्ट हमें नहीं मिली जिससे धार्मिक आधार पर पक्षपात की बात साबित होती हो.
दिल्ली दंगों के बारे में बात करते हुए रिपोर्टर ने उस वीडियो का जिक्र किया जिसमें पांच जख्मी लोगों से राष्ट्रगान गाने को कहा गया था. कपिल मिश्रा ने जवाब दिया कि फेक स्टोरीज की बात न करें.
पुलिस के जॉइंट कमिश्नर आलोक कुमार ने द क्विंट को बताया कि फैजान की मौत के मामले में एफआईआर दर्ज की गई है. अभी मामला अज्ञात आरोपियों के खिलाफ दर्ज है.
इंडियन एक्सप्रेस में 2 फरवरी, 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली पुलिस ने हाई कोर्ट को बताया कि वीडियो में दिख रहे लोगों की पहचान की जा रही है. आगे बताया गया कि अब तक सिर्फ एक पुलिसकर्मी की पहचान हो सकी है.
कपिल मिश्रा ने दावा किया कि CAA विरोधी प्रदर्शन में शामिल एक्टिविस्ट हर्ष मंदर ने कहा कि संसद हमारी मदद नहीं कर पाएगी, हमें सड़कों पर उतरना होगा.
ये दावा एक अधूरे वीडियो के आधार पर किया गया, जो बीजेपी आईटी सेल के हैड अमित मालवीय ने पिछले साल शेयर किया था. द क्विंट की वेबकूफ टीम समेत कई फैक्ट चेकर्स ने इस दावे को फेक बताया था.
असल में हर्ष मंदर जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के कैम्पस में हुई हिंसा के बाद 16 दिसंबर, 2019 को छात्रों के बीच भाषण दे रहे थे. भाषण में हर्ष ने कहा
हर्ष ने आगे कहा - सड़कों के अलावा एक और जगह है जहां से फैसला होगा. वह जगह है हमारे दिल. मेरा दिल, आपका दिल. अगर वे हमारे दिलों में नफरत भरना चाहते हैं और हम इसका जवाब नफरत से ही देते हैं. तो नफरत सिर्फ गहरी होगी.
जाहिर है हर्ष मंदर के अधूरे बयान को गलत दावे से शेयर किया गया
इंटरव्यू के दौरान कपिल मिश्रा CAA प्रदर्शन के दौरान दिए अपने नफरत भरे भाषण का बचाव भी करते नजर आए. एक मौके पर मिश्रा ने इस बात से इंकार ही कर दिया कि उन्होंने जामिया मिल्लिया के छात्रों पर निशाना साधते हुए नारा लगाया था. हालांकि, जैसे ही उन्हें नारा लगाते हुए उनका वीडियो दिखाया गया, उन्होंने अपनी गलती को सही करने की कोशिश की.
दिल्ली दंगों के दौरान फेक न्यूज और भ्रामक सूचनाओं का इस्तेमाल धार्मिक तनाव को बढ़ावा देने के लिए किया गया. कपिल शर्मा आदतन फर्जी खबरें फैलाते हैं और हिंसा के दौरान उनके दावों को द क्विंट समेत कई फैक्ट चेकिंग वेबसाइट्स ने फर्जी साबित किया था.
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