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स्टोरी पढ़ने से पहले आपसे एक अपील है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और असम में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के बीच कोरोना वैक्सीन को लेकर फैल रही अफवाहों को रोकने के लिए हम एक विशेष प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. इस प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर संसाधनों का इस्तेमाल होता है. हम ये काम जारी रख सकें इसके लिए जरूरी है कि आप इस प्रोजेक्ट को सपोर्ट करें. आपके सपोर्ट से ही हम वो जानकारी आप तक पहुंचा पाएंगे जो बेहद जरूरी हैं.
धन्यवाद - टीम वेबकूफ
सोशल मीडिया पर एक महिला का वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वो एक कानूनी मामले से जुड़ी जानकारी को गलत तरीके से पेश कर रही है, ताकि एंटी कोविड वैक्सीन नैरेटिव को बढ़ाया जा सके.
वायरल वीडियो सबसे पहले "Tanya Cure by Nature" नाम के एक यूट्यूब चैनल पर 29 अगस्त को पोस्ट किया गया था. ये वीडियो अब टेलीग्राम और वॉट्सएप पर भी वायरल हो गया है.
हमने पाया कि मुंबई के सत्र न्यायाल में एक विचाराधीन मामले को एंकर ऐसे पेश कर रही है जैसे कि कोर्ट ने फैसला दे दिया हो. वीडियो में दिख रही एंकर एक विचाराधीन मामले की याचिका में बताए गए बिंदुओं को गलत तरीके से बता रही है.
एंकर भारत के सुप्रीम कोर्ट से जुड़े अन्य झूठे दावे भी कर रही है. इसके अलावा, उसे ये भी कहते सुना जा सकता है कि "70-80 प्रतिशत भारतीय COVID-19 के प्रति इम्यून हैं''.
वायरल हो रहे वीडियो का टाइटल है, ''अब किसी पर जबरदस्ती टीका लगाना अपराध है, 5 करोड़ का जुर्माना होगा''.
वीडियो में तान्या नाम की होस्ट मुंबई सत्र न्यायालय में चल रहे मामले की स्थिति पर बोलती देखी जा सकती है. वो एडवोकेट नीलेश ओझा द्वारा दायर एक मामले के बारे में बात करती नजर आ रही है. नीलेश ओझा ने ये केस अपने मुवक्किल की ओर से दायर किया था, जिसे कथित तौर पर मुंबई में जेल अधिकारियों ने जबरन वैक्सीन लगवाई थी.
एंकर को आगे ये भी कहते हुए सुना जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस बात को कोई सबूत नहीं है कि कोविड वैक्सीन पूरी तरह से प्रभावी है.
वो आगे ये भी दावा करती है, ''देश में करीब 70-80 प्रतिशत आबादी पहले से ही इम्यून है.''
इन दावों की जांच करने के लिए हमने Tanya Cure by Nature के यूट्यूब चैनल को चेक किया. हमें इसमें डॉ बिस्वरूप रॉय चौधरी और डॉ तरुण कोठारी जैसे एंटी-वैक्सर्स का कंटेंट मिला. दोनों ही डॉक्टर कोविड और उसके टीकों से जुड़ी गलत जानकारी फैलाने के लिए जाने जाते हैं.
इसके बाद, हम यूट्यूब वीडियो के डिस्क्रिप्शन पर दिए गए लिंक पर गए. ये लिंक 25 अगस्त को ओझा की वेबसाइट पर पब्लिश एक ब्लॉगपोस्ट का था.
ब्लॉगपोस्ट में जाने के बाद हमने पाया कि तान्या ने जो दावे वीडियो में किए थे, वो सही नहीं हैं. ब्लॉगपोस्ट में मुंबई सत्र न्यायालय के उस ऑर्डर का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें ओझा की ओर से दायर याचिका पर मुंबई पुलिस से जवाब मांगा था.
हमने पाया कि एंकर ने ओझा की ओर से दायर याचिका में बताए गए बिंदुओं को लिया और उन्हें कोर्ट के फैसले के रूप में गलत तरीके से पेश किया.
बाद के तान्या के एक और वीडियो में ओझा को मामले से जुड़ी जानकारी देते देखा जा सकता है.
ये साफ है कि वायरल वीडियो में तान्या ने केस से जुड़ी जो जानकारी दी वो सही नहीं है. मामला विचाराधीन है और उस पर अभी सुनवाई बाकी थी.
केस से जुड़ी बात करने के बाद, तान्या ने दावा किया कि भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोविड वैक्सीन प्रभावी नहीं है और इसलिए, लोग दूसरा डोज नहीं लगवाने का विकल्प चुन सकते हैं. भले ही, उन्होंने पहला डोज लगवा लिया हो.
दावे के विपरीत, सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त में वैक्सीनेशन पर जैकब पुलियल की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, अनिवार्य टीकाकरण पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था. जैकब नैशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन के पूर्व सदस्य हैं.
पुलियल ने जनहित याचिक के माध्यम से कोविड वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल के आंकड़ों की जानकारी की मांग की थी और ''अनिवार्य वैक्सीनेशन'' पर भी रोक लगाना चाहते थे.
कोर्ट ने 9 अगस्त को केंद्र और अन्य को नोटिस जारी किया था और चार हफ्तों में इसका जवाब देने को कहा था.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि WHO के मुताबिक, जब तक सबको वैक्सीन नहीं लग जाती, कोई भी तह तक सुरक्षित नहीं है. कोर्ट ने कहा कि मामले की जांच शुरू करने से लोगों के मन में संदेह बढ़ेगा.
हालांकि, मणिपुर हाईकोर्ट ने 15 जुलाई को एक ऑर्डर पास किया जिसमें कहा गया कि किसी के कोविड वैक्सीनेशन की स्थित को उनके रोजगार से जोड़ना अवैध है.
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने कहा है कि कोविड वैक्सीनेशन पूरी तरह से स्वैच्छिक है. हालांकि, भारत भर में कई सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों ने अपने कर्मचारियों को पूरी तरह से वैक्सीनेशन के लिए कहा है, ताकि वो काम पर लौट सकें.
यह भी सच नहीं है कि भारत की 70-80 प्रतिशत आबादी कोविड के प्रति इम्यून हो चुके हैं.
हालांकि, दोबारा संक्रमण और वैक्सीन लगने के बाद हुए संक्रमण के आंकड़े बताते हैं कि एंटीबॉडी की उपस्थिति पूरी तरह से इम्यूनिटी प्रदान नहीं करती है. इसके अलावा, शरीर में बनी एंटीबॉडी की मात्रा भी रोद की गंभीरता और व्यक्ति के इम्यून सिस्टम के आधार पर अलग-अलग हो सकती है.
(ये स्टोरी क्विंट के कोविड-19 और वैक्सीन पर आधारित फैक्ट चेक प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जो खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए शुरू किया गया है. इस अफवाह की जानकारी हमारे साथ इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे संस्थान वीडियो वॉलंटियर ने दी.)
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