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सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो रहा है जिसमें कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन के बीच WhatsApp ग्रुप एडमिन से दो दिनों के लिए ग्रुप बंद करने के लिए कहा गया है. इस मैसेज में आगे कहा गया है कि ग्रुप को इसलिए बंद कर देना चाहिए क्योंकि "अगर वायरस को लेकर मजाक किया गया तो" पुलिस "सेक्शन 68, 140 और 188 के तहत" ग्रुप एडमिन और इसके मेंबर्स के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है.
वायरस मैसेज में आगे कहा गया है कि आज रात (7 अप्रैल) की आधी रात से, देशभर में डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट लागू कर दिया गया है और किसी भी नागरिक को कोरोना वायरस से जुड़ा हुआ कोई फॉरवर्ड पोस्ट या शेयर करने की अनुमति नहीं है. इस मैसेज के साथ LiveLaw का एक आर्टिकल शेयर किया जा रहा है, जिसका टाइटल है, "Centre Seeks SC Direction That No Media Should Publish COVID-19 News Without First Ascertaining Facts With Govt", यानी- केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से दिशा की मांग की कि कोई भी मीडिया संगठन सरकार के साथ पहले तथ्यों के बिना COVID-19 खबर पब्लिश न करे.
कई लोगों ने इस मैसेज को फेसबुक पर शेयर किया और WhatsApp एडमिन से उनका ग्रुप बंद करने के लिए कहा. कुछ लोगों ने केवल मैसेज का पहला हिस्सा शेयर किया, वहीं कुछ ने मैसेज शेयर किया लेकिन LiveLaw के आर्टिकल के बिना.
ये मैसेज ट्विटर पर भी वायरल हो गया है.
सबसे पहले मैसेज के पहले हिस्से पर गौर करते हैं, जिसमें WhatsApp एडमिन से दो दिनों के लिए ग्रुप बंद करने के लिए कहा गया है. इसमें कहा गया है कि पुलिस सेक्शन 68, 140 और 188 के तहत एक्शन ले सकती है. अगर मैसेज के दूसरे हिस्से को देखें तो इसमें डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट की बात कही गई है, जिससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि मैसेज में इसी एक्ट के सेक्शन की बात की जा रही है.
इस एक्ट के बारे में पढ़ने के बाद, हमने पाया कि इसमें सेक्शन 68 है, लेकिन इसमें फेक न्यूज फैलाने और कोरोना वायरस को लेकर मजाक उड़ाने को लेकर कुछ नहीं लिखा है. सेक्शन 68 केवल आदेशों या फैसलों के ऑथेंटिकेशन की बात करता है.
खास बात ये कि इस एक्ट में सेक्शन 140 और 188 हैं ही नहीं.
अब, अगर ये माना जाए कि यहां डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट की बात नहीं हो रही है, तो ऐसा कोई सेक्शन 68 या 140 नहीं है, जिसमें पुलिस के द्वारा WhatsApp एडमिन के खिलाफ एक्शन लेने की बात हो.
हालांकि, सेक्शन 188 का आईपीसी की धारा 188 से मतलब हो सकता है. ये कहता है कि अगर किसी पब्लिक सर्वेंट ने कोई आदेश जारी किया है तो उसे ना मानना दंडनीय अपराध है यानी उस पर सजा हो सकती है.
हाल ही में खबरें आईं थीं कि COVID-19 को लेकर फेक न्यूज फैलाने पर WhatsApp एडमिन और ग्रुप के मेंबर्स को गिरफ्तार किया गया.
लेकिन अगर इस वायरल मैसेज की बात करें, तो लिखे गए सेक्शन के तहत जोक्स के खिलाफ कोई एक्शन नहीं बनता.
इसलिए, ये मैसेज फेक है और सरकार की तरफ से ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया गया है.
मैसेज का दूसरा हिस्सा जो शेयर किया जा रहा है, वो पिछले काफी समय से वायरल हो रहा है. क्विंट इसे पहले भी डिबंक कर चुका है.
मैसेज का ये हिस्सा कहता है कि पूरे देश में ‘आज रात’ से डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट लागू कर दिया गया है, और लोग कोरोना वायरस को लेकर कुछ भी शेयर नहीं कर पाएंगे. लेकिन सच ये है कि:
मैसेज के साथ शेयर हो रहे LiveLaw के आर्टिकल का मैसेज से कुछ लेना-देना नहीं है. आर्टिकल साफ तौर पर मीडिया में COVID-19 से जुड़ी जानकारी दिखाए जाने पर बात कर रहा है.
31 मार्च को पब्लिश हुए इस आर्टिकल में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से निर्देश मांगा था कि कोई भी मीडिया आउटलेट तथ्यों की पुष्टि किए बिना किसी भी COVID -19 खबर को प्रसारित या प्रकाशित न करे और मीडिया संगठनों को ये सुनिश्चित करना होगा कि वो घटना के बारे में सरकार के आधिकारिक अपडेट के आधार पर पब्लिश करें.
LiveLaw ने भी इसे लेकर सफाई दी है.
इसलिए WhatsApp पर वायरल हुए मैसेज से इसका कोई लेना देना नहीं है, और किसी भी नागरिक पर वायरस से जुड़ा कुछ शेयर करने पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है.
(जबसे ये महामारी फैली है, इंटरनेट पर बहुत सी झूठी बातें तैर रही हैं. क्विंट लगातार ऐसी झूठ और भ्रामक बातों की सच उजागर कर रहा है. आप यहां हमारे फैक्ट चेक स्टोरीज पढ़ सकते हैं.)
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