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वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
'दिल्ली रॉइट्स 2020: दि अनटोल्ड स्टोरी' एक किताब, जिसे मोनिका अरोड़ा, सोनाली चीतलकर और प्रेरणा मल्होत्रा ने लिखी है, जिसने फरवरी में राजधानी में हुई हिंसा के "गहन शोध के एक गंभीर डॉक्यूमेंट" होने का दावा किया है, जिसे "भारत सरकार को गंभीरता से पढ़ने" की जरूरत है.
ये किताब उस वक्त मुश्किल में पड़ गई, जब इसके शुरुआती प्रकाशक ब्लूम्सबरी ने इसके प्रकाशन से अपना हाथ खींच लिया, क्योंकि इसकी सच्चाई को लेकर ऑनलाइन काफी बहस होने लगी थी. हमने, द क्विंट ने, किताब के ब्लूम्सबरी ड्राफ्ट को एक्सेस और स्कैन किया और पाया कि ये "फैक्ट-फाइंडिंग मिशन" से कोसो दूर है. ये फैक्चुअल गलतियों, निराधार दावों और कॉन्सपिरेसी थ्योरी से भरी हुई है.
शुरुआत करते हैं, पहली बड़ी गलती किताब में मुश्किल से 200 शब्दों में ही मिल जाती है, जब पूर्व आईपीएस अधिकारी पीसी डोगरा, अपने प्रस्तावना में, जवाहरलाल नेहरू के एक गलत कोट पर भरोसा करते हुए कहते हैं कि नेहरू ने खुद को "कल्चर से मुसलमान और केवल दुर्घटनावश जन्म से हिंदू बताया" था
तथ्य: ये हिंदू महासभा के एक नेता थे जिन्होंने नेहरू को ऐसा कहा था, न कि नेहरू ने खुद को
इसके बाद, लेखकों का तर्क है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम का भारत के मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है
तथ्य: तर्क तथ्यों पर कम पड़ता है. आसान भाषा में, सीएए भेदभावपूर्ण है क्योंकि ये तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से मुसलमानों को छोड़कर, भारत में नागरिकता के लिए आवेदन करने को लेकर, गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों (जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए थे) के लिए मार्ग प्रशस्त करता है
साथ ही, कुछ कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि ये संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, जो जाति, धर्म, लिंग आदि से अलग समानता का अधिकार देता है
किताब में गलत सूचनाओं के और भी कई हिस्से हैं जिनका पहले ही पर्दाफाश किया जा चुका है: उदाहरण के लिए, एक्टिविस्ट हर्ष मंदर ने कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट पर विश्वास नहीं है, या ये दावा कि शाहीन बाग में 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगाए गए थे
लेकिन, इतना ही नहीं है. लेखक "सीएए विरोधी प्रदर्शनों को वामपंथियों और इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा भड़काया जा रहा है" जैसे बातें बिना किसी फैक्ट के कर रहे हैं
इस साल जनवरी में जेएनयू की हिंसा का उल्लेख करते हुए भी, पुस्तक में एबीवीपी की कथित संलिप्तता के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया है और उसे केवल "सीएए के आसपास का उन्माद" बताया गया है
किताब कई कॉन्सपिरेसी थ्योरी से भरी हुई है. और लेखकों ने जिस पर एक पूरा चैप्टर लिखा है, वो है "शहरी नक्सलवाद और हिंसा के लिए जिहादवाद की कड़ी" ये सिद्धांत ,माओवादी साहित्य के रूप में असमान तत्वों, खिलाफत आंदोलन के विचार और सीरिया और इराक में आईएसआईएस के बीच घूमता है.. और वो भी बिना ये बताए कि ये सब फरवरी में दिल्ली में हुई हिंसा से कैसे संबंधित हैं
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