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वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान
पुलवामा हमले से लेकर CAA के खिलाफ ‘हल्ला-बोल’ तक और आम चुनाव से लेकर कश्मीर पर लगी बंदिशों तक. साल 2019 में फर्जी खबरों का कारोबार खूब चला. लेकिन खबरों के शोरशराबे के बीच जो फेक न्यूज का शिकार बनें उनकी टीस ना जाने कब दूर होगी? वे लोग बुरे हालातों का सामना कर जीने को मजबूर है.
जेएनयू की फीस में बढ़ोतरी को लेकर छात्रों के विरोध-प्रदर्शन के बीच पंकज मिश्रा को 43 साल का मोइनुद्दीन बताकर दुष्प्रचार किया गया. वो कहते हैं कि आज भी वो सिर ढंककर और चेहरा छिपाकर सफर करते हैं. उन्हें जेएनयू स्टूडेंट के तौर पर जानकर लोगों के बातचीत का अंदाज उग्र हो जाता है.
ठीक इसी तरह जादवपुर यूनिवर्सिटी कैंपस में बीजेपी सांसद बाबुल सुप्रियो के साथ बदसलूकी करने वाले छात्रों के तौर पर गलत तरीके से शिल्पी का नाम उछाला गया.
आफरीन अब भी डर महसूस करती हैं. वो कहती हैं- सोशल मीडिया पर मुझे रेप, मारने की धमकी मिली. ऐसे कमेंट्स थे कि मैं पढ़ नहीं पा रही थी.
बेंगलुरु के पुलिसकर्मी मंजूनाथ की पत्नी आज भी दुख से उबर नहीं पाईं हैं. मंजूनाथ पर शराब पीकर गाड़ी चलाने का इल्जाम लगा. मीडिया में खबरें चलाई गईं. जबकि मंजूनाथ फ्ल्कचुएटिंग बीपी से जूझ रहे थे. सितंबर में कार्डियक अरेस्ट की वजह से मृत्यु हो गई.
कोलकाता के एनआरएस हॉस्पिटल के जूनियर डॉक्टर परिबाहा मुखर्जी को सोशल मीडिया पर फैलाए गए फेक पोस्ट में मृत घोषित कर दिया गया था. उन्हें कई न्यूज चैनल से कॉल आए. वे लोग यही कंफर्म करना चाहते थे कि डॉ. परिबाहा जीवित हैं या नहीं. परिबाहा इससे काफी परेशान हुए.
सिर्फ इतना ही नहीं 2019 में बच्चा चोरी की अफवाहों ने भी खूब जोर पकड़ा और कई लोग इसके शिकार बने. बिहार के फ्रीलांसर लियाकत अली इसका शिकार बने. वो बताते हैं कि उनके घरवाले सदमे में हैं. लेयाकत से भीड़ बर्दाश्त नहीं होती. यहां तक कि छोटे बच्चे, स्कूल से निकलते बच्चों की भीड़ से भी उन्हें दहशत हो गई है. अली ने एक एफआईआर दर्ज कराई और कानूनी कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं लेकिन उनका कहना है कि बगैर पुष्टि के फैलाई गई खबरों ने उन्हें असल नुकसान पहुंचाया.
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