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सोशल मीडिया पर सिलेसिलेवार तरीके से साल 2008 से लेकर 2020 तक की टाइमलाइन दिखाता एक टेक्स्ट वायरल है. इस टाइमलाइन में 2008 से लेकर 2020 तक किस साल कितने फिलिस्तीनी मारे गए, इसका आंकड़ा दिया हुआ है.
दावा किया जा रहा है कि ये आंकड़े दिखाते हैं कि इस दौरान हर साल इजरायल (Israel) ने फिलिस्तीन (Palestine) के कितने लोगों को मारा है.
सच क्या है?: वायरल मैसेज में दिए आंकड़े भ्रामक हैं.
संयुक्त राष्ट्र के Office for the Coordination of Humanitarian Affairs (OCHA) के आंकड़ों के अनुसार, दावे में जो संख्या दी गई है, असल में ये सिर्फ उनकी संख्या नहीं है जिसमें इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष की वजह से मारे गए लोग ही शामिल हैं. बल्कि इसमें वो लोग भी शामिल हैं जो इस संघर्ष के दौरान घायल हुए.
मतलब ये कि इसमें मारे गए और घायल हुए दोनों तरह के आंकड़ों को जोड़कर बताया गया है.
हमने सच का पता कैसे लगाया?: जरूरी कीवर्ड्स का इस्तेमाल कर, हमने संयुक्त राष्ट्र (UN) के बताए गए आंकड़ों की तलाश की, ताकि पता कर सकें कि इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष की वजह फिलिस्तीन में कितनी मौतें दर्ज की गई हैं.
हमें संयुक्त राष्ट्र की OCHA वेबसाइट पर पहुंचे, जहां ऑक्युपाइड फिलिस्तीन क्षेत्र (OPT) में इजरायल और फिलिस्तीनीं दोनों तरफ के मारे गए और घायल हुए लोगों का डेटा रखा जाता है.
यहां जो आंकड़े दिए गए हैं, उनके मुताबिक हर साल फिलिस्तीनी मौतों की संख्या दावे में बताई गई संख्या से काफी कम थी.
यहां इस बारे में भी जानकारी दी गई है कि हर साल इजरायल की ओर से कितने लोग घायल हुए और कितनी मौतें हुईं.
वेबसाइट के मुताबिक, OCHA के फील्ड स्टाफ ने ये आंकड़े इकट्ठा किए हैं और सिर्फ उन लोगों की संख्या शामिल है जो इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष की वजह से हताहत हुए हैं.
इसमें बताया गया है कि इसमें उन लोगों से जुड़ा डेटा शामिल नहीं किया गया है तो ''हथियारों के लापरवाह इस्तेमाल'' और ''सुरंगों के ढहने'' की वजह से मारे गए. घायल लोगों में मनोवैज्ञानिक सदमे का इलाज करा रहे लोग शामिल नहीं हैं.
संदर्भ के लिए यहां एक टेबल भी है जिसमें वायरल दावे में बताए गए आंकडों की तुलना में संयुक्त राष्ट्र की ओर से दर्ज की गई फिलिस्तीनियों की मौतों और घायलों से जुड़ी जानकारी है.
निष्कर्ष: साफ है कि 2008 से लेकर 2020 तक हर साल इजरायली हमले में मारे गए फिलिस्तीन के लोगों की जो संख्या वायरल दावे में बताई गई है वो सही नहीं है. संयुक्त राष्ट्र के आंकडों के मुताबिक, इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है.
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